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- सेना और राजनीति-1
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भारतीय गणतंत्र में लगभग हर वर्ष चुनावी माहौल बना रहता है। लोकसभा चुनाव तो इक_े होते हैं, पर हर 5 वर्ष बाद होने वाले राज्यों के विधानसभा चुनावों का माहौल हर 6 महीने में बना रहता है, जिससे लगभग पूरे साल देश में चुनावी माहौल बना रहता है। अभी 6 महीने पहले हुए गोवा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, असम और पंजाब के चुनावों की चर्चा कम नहीं हुई थी कि अब गुजरात और हिमाचल के चुनावों की वजह से दोबारा राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई हैं तथा फिर से राजनीतिक माहौल बन गया है। 6 महीने पहले पांच राज्यों के चुनावों में से चार जगह तो बीजेपी अच्छे बहुमत के साथ सरकार बनाने में कामयाब हो गई और एक जगह उत्तर भारत के पंजाब में आम आदमी पार्टी ने सबको अचंभित करते हुए अप्रत्याशित जीत दर्ज करके सरकार बना दी, जिससे भारतीय राजनीति में नए समीकरण बनने और दिखने शुरू हो गए हैं।
पिछले आठ साल से भाजपा या एनडीए का चेहरा बने माननीय श्री नरेंद्र मोदी जी के सामने कांग्रेस या अन्य विपक्षी दल या यूपीए का कोई भी सशक्त चेहरा नजर नहीं आ रहा था। थोड़ी बहुत चर्चा में ममता बनर्जी, नीतीश कुमार, शरद पवार और राहुल गांधी जैसे नामों की चर्चा जरूर रही, पर भारतीय जनमानस ने इन सब नामों पर मोहर लगाने में सहमति नहीं दी और भाजपा के खिलाफ 2014 और 2019 में विपक्ष कोई भी सशक्त चेहरा नहीं उतार पाया, पर 6 महीने पहले हुए पंजाब के परिणाम के बाद अचानक चर्चाओं में आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल एक बड़ा सशक्त नाम बनकर बनने लगे हैं। बिहार के मुख्यमंत्री हाल ही में एनडीए को छोडक़र भाजपा के खिलाफ बिहार में सरकार बनाए हैं और उसके बाद उन्होंने विपक्ष को इक_ा करने की जिस तरह से गोलबंदी शुरू की है, उससे 2024 में क्या भारतीय राजनीति में कोई बड़ा परिवर्तन होगा या नहीं, इसका सत्य तो समय के साथ ही बाहर आएगा, पर एक बात तो जाहिर है कि राजनीतिक गलियारों में अभी मोदी बनाम कौन की चर्चा में केजरीवाल के नाम की सुगबुगाहट बड़ी तेजी से बढऩे लगी है। अगर राजनीति की बात करें तो भारत में दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी सेना है जिसमें करीब 14 लाख सैनिक हैं और सेवानिवृत्ति के बाद सैनिकों का राजनीति में रूझान बड़ा कम रहा है।
2019 में 543 लोकसभा सीटों से मात्र तीन ही ऐसे सांसद हैं जो सैन्य पृष्ठभूमि से आते थे तथा 2014 के लोकसभा चुनावों में कुल 8794 उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा था जिनमें मात्र 28 उम्मीदवार ऐसे थे जो सैन्य पृष्ठभूमि से थे, जबकि 2019 में इसकी संख्या और भी कम हो गई। इसके समानांतर अगर हम दुनिया के अन्य देशों की बात करें जहां पर लोकतंत्र है तो अमेरिका में 535 सदस्यों में से 100 सैन्य पृष्ठभूमि के हैं जो उसका कुल 19 फीसदी बनता है जबकि इंग्लैंड में 650 में से 51 जो कि उसका 8 फीसदी सदस्य सैन्य पृष्ठभूमि से आते हैं। भारत की 14 लाख की कुल संख्या की सेना में अगर वोट देने वालों की गिनती की जाए तो देश के करीब 90 करोड़ के वोटरों में मात्र दशमलव 6 प्रतिशत बनता है जो बड़ी ही कम संख्या है। भारत में सेना से सेवानिवृत्त सैनिकों की संख्या पूरे देश की देखी जाए तो कम है, पर उत्तर भारत के कुछ एक राज्य जैसे हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड और राजस्थान ऐसे हैं जहां पर करीब 35 फीसदी लोग या तो सेना में सेवाएं दे रहे हैं या सेवानिवृत्त हैं।
कर्नल (रि.) मनीष
स्वतंत्र लेखक
By: divyahimachal
Rani Sahu
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