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सम्पादकीय
नारीवाद के नाम पर मनमानी: कुछ अलग-अनोखा या सनसनीखेज करने को ही महिला सशक्तीकरण बताना किसी छल से कम नहीं
Gulabi Jagat
8 July 2022 5:22 PM GMT
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नारीवाद के नाम पर मनमानी
डा. ऋतु सारस्वत़: इन दिनों लीना मणिमेकलाई अपनी डाक्यूमेंट्री फिल्म 'काली' के पोस्टर को लेकर चर्चा में हैं। वह खुद को डाक्यूमेंट्री फिल्म निर्माता के साथ प्रबल नारीवादी भी बताती हैं। उनके लिए देवी काली का धूमपान करना महिला सशक्तीकरण का पर्याय है। उन्हीं जैसी नारीवादी छवि वाली नेता महुआ मोइत्रा हैं, जिन्होंने 'काली' के पोस्टर का समर्थन किया है। इसके पहले एक और कथित नारीवादी महिला क्षमा बिंदु चर्चा में थीं, क्योंकि उन्होंने खुद से शादी की थी। कई समाचार पत्रों ने 'नारी-मुक्ति', 'महिला-सशक्तीकरण', 'पितृसत्तात्मक-व्यवस्था के मुंह पर तमाचा' जैसी उपमाओं से क्षमा बिंदु को महिमामंडित भी किया था। ऐसा होना स्वाभाविक है, क्योंकि 'मेरा शरीर-मेरी पसंद' को नारीवादी मुहिम समझने वालों से इससे अधिक की अपेक्षा भी नहीं जा सकती।
अपनी मर्जी के नारीवाद को महिला सशक्तीकरण समझना वर्तमान का दुर्भाग्य बन गया है। इसने नारीवादी आंदोलन के अथक प्रयासों को धूमिल कर उपभोक्तावादी नारीवाद को जन्म दिया है। इसके तहत पोल डांस से लेकर नग्न सेल्फी, सिगरेट और शराब पीने को महिला सशक्तीकरण का पर्याय मान लिया गया है। जो कुछ भी आपको पसंद है, उसे करने के लिए सशक्तीकरण शब्द एक ऐसे आवरण के रूप में उभरा है, जिसकी चकाचौंध के पीछे अशक्त महिलाएं कहीं लुप्त सी हो गई हैं। सशक्तीकरण के इस छद्म रूप की आवाज इतनी तेज है कि उन तमाम महिलाओं के स्वर दब गए हैं, जिन्होंने दशकों से पीड़ा और असमानता के दंश झेले हैं।
प्रथम दृष्टि में मेरी मर्जी वाला नारीवाद नकारात्मक प्रतीत नहीं होता, लेकिन यह एक ऐसा कथित नारीवाद है जो कभी भी महिलाओं की मुक्ति का उल्लेख नहीं करता। यह सामाजिक परिवर्तन की मांग नहीं करता और इसी कारण महिला सशक्तीकरण के अभियान को अप्रत्यक्ष रूप से कमजोर करता है। अगर कोई छद्म नारीवाद की आलोचना करता है तो वह महिला विरोधी-करार दिया जाता है। 'फ्राम शापिंग टू नेकेड सेल्फीज हाउ एंपावरमेंट लास्ट मीनिंग' लेख में हेडली फ्रीमैन लिखती हैं कि बीते दिनों मुझे वे चीजें बताई गईं, जिससे मुझे सशक्त महसूस करना चाहिए, जैसे नग्न सेल्फी लेना, नारीवाद की अपनी मनचाही परिभाषा गढऩा और डिजाइनर कपड़े खरीदना।
हेडली के अनुसार, इसके तहत किसी धनाढ्य, चर्चित या प्रतिष्ठित महिला का धारा से विपरीत कुछ अलग या सनसनीखेज करना ही सशक्तीकरण है। अमेरिकी माडल किम कार्दशियन का टापलेस सेल्फी ट्वीट करते हुए यह दावा करना इस तथ्य की पुष्टि करता है कि वह अपनी कामुकता से सशक्त हो रही हैं और यह दुनिया भर में लड़कियों और महिलाओं के सशक्तीकरण को प्रोत्साहित करने का उनका प्रयास है। उदार नारीवाद की पैरोकार बनीं किम कार्दशियन के इस दर्शन का अगर कोई विरोध करता है तो उसे एक पुराने हारे हुए व्यक्ति के रूप में बताया जाता है, जिसने बाडी शेमिंग (शारीरिक संरचना का मजाक उड़ाना) को प्रोत्साहित किया।
अब 'फ्री द निप्पल कैंपेन' को भी नारीवादी स्वतंत्रता का सशक्त माध्यम माना जाता है। इस बारे में नाओमी स्काफोर खिन्न होकर लिखती हैं, 'संयुक्त राष्ट्र की सद्भावना दूत एम्मा वाटसन जिस मुहिम (फ्री द निप्पल) को आप महिला सशक्तीकरण मान रही हैं, उसपर अगली बार यूएन सद्भावना दूत बनकर भाषण दें, इसे प्रयोग में लाकर देखें और यह पता करें कि कितने लोग आपकी बातों को गंभीरता से लेते हैं?'
दरअसल ऐसे कठोर शब्दों का प्रयोग हर वह संवेदनशील व्यक्ति करना चाहता है, जो नारीवादी के नाम पर हो रहे आडंबर से आहत है। पत्रकार सारा दितुम ने अपनी मर्जी के नारीवाद को उस खेल के रूप में उजागर किया है जहां समूहगत महिलाओं की पीड़ा या शोषण असल मुद्दा नहीं है। मुद्दा तो उस काल्पनिक नारीवादी आदर्श पर खरा उतरना है, जो ऊंची हील की सैंडल, नग्न सेल्फी और पुरुषों के विरुद्ध खड़े होने के इर्द-गिर्द घूमता है। अपनी मर्जी का नारीवाद वास्तव में केवल विशेषाधिकार प्राप्त अत्यंत मुखर महिलाओं के एक छोटे से समूह को लाभान्वित करता है। यह धारणा कि मनचाही पसंद एक स्वतंत्रता है, जो सभी के पास है, दिखावा मात्र है, क्योंकि अपनी मर्जी का नारीवाद वास्तव में नारीवाद की वास्तविक विचारधारा के विपरीत है।
निम्न मध्यम वर्ग की कोई भी लड़की सशक्तीकरण या अपनी पसंद के नाम पर क्या क्षमा बिंदु की तरह शादी के तामझाम करने का दिखावा कर सकती है? उदार नारीवाद एक भ्रमजाल के रूप में समाज को जकड़ता जा रहा है। इसके चलते वे तमाम मुद्दे, जो आज भी महिलाओं को दोयम दर्जे पर खड़े किए हुए हैं, चर्चाओं से विमुख हैं। इसमें किंचित भी संदेह नहीं कि अपनी मर्जी के नारीवाद ने वास्तविक नारीवाद को कमजोर किया है। महिला उत्पीडऩ की समस्याएं जब यौन मुक्ति के रूप में प्रस्तुत की जाने लगेंगी तो यह समझना पर्याप्त है कि हम किस दिशा भ्रम की स्थिति में हैं।
'फेमिनिज्म फार विमेन: द रियल रूट टू लिबरेशन'पुस्तक की लेखिका जूली का मानना है कि महिलाओं की नग्न छवियां नारीवाद की अभिव्यक्ति नहीं हो सकतीं। नारीवाद सभी महिलाओं की समानता और मुक्ति के लिए एक आवश्यक सामाजिक आंदोलन है, न कि केवल कुछ के लिए मनचाहे विकल्पों के बारे में। यह चिंता का विषय है कि दशकों पूर्व जिस नारीवाद आंदोलन का आरंभ पितृसत्तात्मक व्यवस्था के खात्मे के लिए हुआ था, वह आज उन्मुक्तता और स्वच्छंदता में अपनी राह तलाश रहा है और व्यक्ति विशेष की स्वतंत्रता एवं उन्नति को नारीवाद की सफलता के रूप में प्रस्तुत करने में लगा हुआ है।
(लेखिका समाजशास्त्री हैं)
Gulabi Jagat
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