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- दूसरे टाइप के लेखक!
वे मेरे जैसे लेखक नहीं थे, वे दूसरे टाइप के लेखक थे। मेरा काम लिखना और छपवाना था, उनका इससे दूर-दूर तक का नाता न था। दरअस्ल वे लेखक टाइप बुद्धिजीवी थे, जो गोष्ठियों में गहन विमर्श, उनकी अध्यक्षता और कहीं व्याख्यान देते पाए जाते थे। मुझसे यह सब नहीं हो पाता था। कहीं कोई विचार मंत्रणा होनी होती तो उन्हें बुलाया जाता। कला केन्द्रों में भी उन्हीं की दरकार थी। लिखना और फिर उसे छपवाना, वे इसे हल्की बात मानते थे। उनके कहे आप्त वचन छपते थे समाचार-पत्रों में। उनका कोई सम्मेलन होता और उनकी सूची छपती तो मैं उन नामों को पहचान नहीं पाता। यह दिवालियापन मेरा था, इसमें उनकी तनिक भी गलती नहीं थी। सुना था उन्होंने कभी लिखा था, और इतना प्रभावी लिखा था कि उनका नाम हो गया और वे देश के बौद्धिक वर्ग की शिरकत करने में आगे आ गए थे। मैंने लाख कोशिश की कि मैं उन जैसा दूसरे टाइप का लेखक बन जाऊं, लेकिन एक तो लिखने की आदत नहीं छूट रही थी, दूसरा लोग उन जैसी पहचान मुझे दे भी नहीं पा रहे थे। सत्य तो यही है कि मैं दूसरे टाइप का लेखक बनना चाहता था, परंतु शायद यह मेरे भाग्य में नहीं है।
By: divyahimachal