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पूर्व केंद्रीय मंत्री और अब कांग्रेस (Congress) के पूर्व नेता कपिल सिब्बल (Kapil Sibal) ने समाजवादी (Samajwadi Party) पार्टी के समर्थन से एक निर्दलीय के तौर पर उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के लिए अपना नामांकन दाखिल कर दिया है
सैयद मौजिज इमाम
पूर्व केंद्रीय मंत्री और अब कांग्रेस (Congress) के पूर्व नेता कपिल सिब्बल (Kapil Sibal) ने समाजवादी (Samajwadi Party) पार्टी के समर्थन से एक निर्दलीय के तौर पर उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के लिए अपना नामांकन दाखिल कर दिया है. इससे पहले सिब्बल ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया, हालांकि अपने इस्तीफे में सिब्बल ने कांग्रेस के लिए किसी कटु शब्द का इस्तेमाल नहीं किया बल्कि यह कहा कि वह इंक्लूसिव इंडिया के लिए लड़ाई लड़ते रहेंगे. इसके साथ ही कांग्रेस से उनका 31 साल लंबा नाता टूट गया. सवाल उठता है कि क्या उन्होंने सिर्फ राज्यसभा की सदस्यता पाने के लिए कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया या कोई अन्य कारण भी है?
कांग्रेस से नाता तोड़ना आसान नहीं
कपिल सिब्बल कोई परिचय के मोहताज नहीं हैं. अन्य पार्टियां भी हैं जो उन्हें राज्यसभा भेजने के लिए तैयार थीं. हालांकि जब कपिल सिब्बल ने निर्दलीय की शर्त जोड़ी तब ज्यादातर पार्टियों ने अपना हाथ खींच लिया. कपिल सिब्बल ने ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस से भी बात की थी, लेकिन टीएमसी ने पार्टी में शामिल होने की शर्त रख दी. सिब्बल कांग्रेस छोड़कर किसी अन्य दल में नहीं जाना चाहते थे. इसलिए समाजवादी पार्टी के साथ उन्होंने बातचीत शुरू की और एक निर्दलीय के तौर पर पर्चा दाखिल कर दिया. सिब्बल ने कहा कि कांग्रेस के साथ नाता तोड़ना आसान नहीं था.
आजाद आवाज बन कर जनता के मुद्दे उठाएंगे
वह, अब एक आजाद आवाज बन कर संसद में जनता के सरोकार के मुद्दे उठाते रहेंगे. संसदीय प्रणाली पर सवाल उठाते हुए सिब्बल ने कहा कि भारत में व्हिप की परंपरा है जो सही नहीं है, क्योंकि कई अन्य लोकतांत्रिक देशों में व्हिप की कोई परंपरा नहीं है. सिब्बल ने कहा कि उन्होंने 16 मई को सोनिया गांधी को अपना इस्तीफा भेज दिया था और अब वह कांग्रेस के बारे में कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते क्योंकि वह पार्टी में नहीं हैं. विचारधारा के स्तर पर वह विपक्ष के साथ हैं और उन्हीं मुद्दे पर आगे बढ़ते रहेंगे.
"राजनितिक पार्टी में कर्मचारी और प्रबंधन जैसा संबध नहीं होता है. मुझे व्यक्तिगत रूप से तय करना था कि मुझे आगे क्या करना है. संसद में मुझे स्वतंत्र रूप से आवाज उठानी चाहिए और मुझे यह मौका मिल रहा है तो उस मौके को मै लेना चाहता हूं. कुछ लोग मेरे बारे में क्या बोल रहें हैं, मुझे नहीं पता लेकिन मुझे यह जरूर पता है कि मैंने यह फैसला क्यों किया है."
कांग्रेस ने नहीं की तल्ख टिप्पणी
सिब्बल के जाने पर कांग्रेस ने कोई तल्ख टिप्पणी नहीं की. पार्टी के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल ने कहा कि "सिब्बल ने स्पष्ट किया है कि वह विचारधारा की लड़ाई लड़ते रहेंगे और कांग्रेस बड़ी पार्टी है, लोग इसमें आते-जाते रहते हैं". वहीं कांग्रेस के महासचिव रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि, "वह सिब्बल को शुभकामना देंगे कि वह जहां भी रहें विचारधारा की लड़ाई लड़ते रहें." कांग्रेस ने भले ही इस मसले को नजरअंदाज करने की कोशिश की है लेकिन पार्टी को पता है कि सिब्बल के जाने से बीजेपी के विरुद्ध पार्टी की नैतिक लड़ाई कमजोर हुई है.
मोदी के धुर विरोधी
क्योंकि सिब्बल, प्रधानमंत्री के खिलाफ संसद से लेकर अदालत तक लंबी लड़ाई लड़ते रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट में वह, समाजवादी पार्टी, झारखंड मुक्ति मोर्चा और शिवसेना के अहम पैरोकार थे. जाहिर सी बात है कपिल सिब्बल ने जिस तरह पार्टी के भीतर रहते हुए राहुल गांधी के खिलाफ आवाज उठाई थी, वह पार्टी के नेताओं को रास नहीं आई. खासकर राहुल गांधी के करीबी लोगों को. सिब्बल ने एक इंटरव्यू में कहा था कि गांधी परिवार को अब कांग्रेस के नेतृत्व से हट जाना चाहिए क्योंकि जनता के बीच गांधी परिवार की साख अब पहले जैसी नहीं रही .
कांग्रेस के चुनावी हार से संशय
सिब्बल ने गांधी परिवार के संदर्भ में कहा कि यह आंकलन, 2014 से कांग्रेस की लगातार हो रही चुनावी हार को लेकर किया था. अभी मार्च में आए पांच राज्यों के चुनाव में कांग्रेस का बुरी तरीके से सफाया हुआ है, जिन राज्यों में कांग्रेस की जीत की उम्मीद थी, खासकर गोवा और उत्तराखंड में, वहां पार्टी को पराजय का मुंह देखना पड़ा और गोवा में तीसरी बार और उत्तराखंड में लगातार दूसरी बार भारतीय जनता पार्टी की सरकार बन गई. पंजाब में जहां कांग्रेस की सरकार थी, वहां पर आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस का सफाया कर दिया, जिसका मूल कारण कांग्रेस शासन काल में लिए गए निर्णय थे. पार्टी ने कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटाकर पंजाब में चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाया ताकि वह आम आदमी पार्टी के बढ़ते हुए ग्राफ को कम कर सकें. चन्नी, अमरिंदर सिंह की तरह साख वाले नेता नहीं बन पाए और खुद चुनाव हार गए. पार्टी में इसके बाद कुछ लोगों ने आपत्ति की कि अमरिंदर सिंह को हटाना उचित फैसला नहीं था
नेताओं का अलविदा
कपिल सिब्बल अकेले नेता नहीं है जिन्होंने पिछले एक साल में कांग्रेस को अलविदा कहा है. ऐसे नेताओं की एक लंबी फेहरिस्त है. हाल में ही में हार्दिक पटेल, पूर्व कानून मंत्री अश्वनी कुमार, पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह, पंजाब के पूर्व अध्यक्ष सुनील जाखड़, गांधी परिवार के करीबी समझे जाने वाले जितिन प्रसाद, आरपीएन सिंह जैसे नेताओं ने नए राजनैतिक घर तलाश लिए हैं. हालांकि सिब्बल ने कांग्रेस छोड़कर नया राजनीतिक दल नहीं तलाश किया, बल्कि वह बतौर निर्दलीय समाजवादी पार्टी के समर्थन से संसद पहुंचेंगे, यह कांग्रेस के लिए निश्चित तौर पर एक नैतिक हार है, क्योंकि 2014 के बाद से पार्टी अपने लोगों को एकजुट नहीं रख पा रही है. इस वजह से पार्टी के भीतर एक द्वंद चल रहा है.
टीम राहुल से नाखुश
राहुल गांधी के करीबी लोगों और पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के बीच एक राय नहीं बन पा रही है. 2020 में 23 नेताओं ने सोनिया गांधी को इस सिलसिले में एक पत्र भी लिखा था कि पार्टी के भीतर रिफॉर्म की आवश्यकता है और एक मजबूत नेतृत्व की जरूरत है. इस पर कई दौर की बातचीत हुई लेकिन कोई नतीजा नहीं निकल पाया. हालांकि पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने जी-23 के और लोगों से, गुलाम नबी आजाद, मनीष तिवारी, भूपेंद्र सिंह हुड्डा से बातचीत की लेकिन कपिल सिब्बल को नहीं बुलाया गया. दरअसल, पार्टी के भीतर यह राय बन रही थी कि कपिल सिब्बल की आवाज ज्यादा ही मुखर है और उनकी कोई राजनीतिक जमीन नहीं है, वह जमीन पर मजबूत नेता नहीं हैं .
हालांकि कपिल सिब्बल दो बार चांदनी चौक से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे हैं. वह, मनमोहन सरकार में केंद्रीय मंत्री थे और कई बार संकटमोचक की भूमिका में भी नजर आएं. हालांकि समीकरण तब बदल गए जब उन्होंने सीधे पार्टी के नेतृत्व पर ही तीखा हमला बोल दिया. उन्होंने अपने गुट के लिए कहा था कि वह जी हुजूर नहीं हैं. शायद यही बात कांग्रेस को अखर रही थी और जब राज्यसभा की बारी आई तब पार्टी ने सिब्बल के नाम को सिरे से खारिज कर दिया. 16 मई को इस्तीफा लिखने के बाद भी कपिल सिब्बल से कांग्रेस ने कोई बातचीत नहीं की, अब दोनों की राह अलग है लेकिन निशाना एक है.
सोर्स- tv9hindi.com
Rani Sahu
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