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- दिलासा के पुल पर खड़ी...
जो शुरू ही नहीं हुआ, उसे आपने खत्म घोषित कर दिया। आज पूरा देश जैसे माला पहनने और पुष्पित अभिनंदन करवाने की जल्दबाजी में लगा नज़र आता है। यहां तो उनका उद्घाटन और अभिनंदन कर देने की प्रथा एक साथ बनती नज़र आती है। यह केवल स्व नियोजित साहित्य समारोहों में ही नज़र नहीं आता, कि आप अपने पैसे से पुस्तक छपवाएं और उसके लोकार्पण के दिन ही अपना अभिनंदन भी करवा लें। इन किताबों के शीर्षक उछालने में भी कोताही नहीं होती। जुमा जुमा आठ दिन हुए साहित्य से लुकाछिपी खेलते हुए और पुस्तक के आवरण पर शीर्षक जमा दिया, 'इस देश के सर्वश्रेष्ठ लेखक।' इतना ही क्यों, कुछ तो यहां अपने आपको विश्व के चुनिंदा लेखकों में से घोषित करते नज़र आते हैं। तबीयत नहीं भरी तो इससे आगे जा इस सदी, इक्कीस सदी का सरताज लेखक घोषित कर दिया। यह न पूछ लेना कि आपको यह विशेषण घोषित करने का अधिकार किसने दिया। यह किसी ऐसे निर्णायक मंडल के महानुभावों का नाम ले देंगे, जो स्वयं भी बरसों साहित्य की पहचान के चौराहे पर ठिठके-ठिठके व्यतीत हो गए।
सोर्स- divyahimachal