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हमें प्रख्यात गांधीवादी समाजसेवी अन्ना हजारे के अनशन और लोकपाल के लिए आंदोलन का वह दौर आज भी याद है
By: divyahimachal
हमें प्रख्यात गांधीवादी समाजसेवी अन्ना हजारे के अनशन और लोकपाल के लिए आंदोलन का वह दौर आज भी याद है, जब राजधानी दिल्ली के ऐतिहासिक रामलीला मैदान में और जंतर-मंतर पर जन-सैलाब उमड़ा था। औसत सिर पर गांधी टोपी थी। बड़े-बुजुर्ग अपनी दुकानें और कारोबार छोड़ कर, महिलाएं घर का चूल्हा-चौका छोड़ कर और नौजवान अपनी कॉरपोरेट तथा सामान्य नौकरियों से अवकाश लेकर आंदोलन की ताकत बढ़ाने आते थे। सिर्फ एक ही पहचान थी और एक ही आह्वान था-अन्ना। आंदोलन भ्रष्टाचार और राजनीतिक गंदगी, संकीर्णता के खिलाफ था। लोकपाल का गठन यूं प्रस्तुत किया गया मानो उसके बाद सरकारी और सत्ता के गलियारों में भ्रष्टाचार, दलाली, घूसखोरी आदि अस्तित्वहीन हो जाएंगे! अवकाश के दिन संसद का आकस्मिक सत्र बुलाकर लोकपाल पर चर्चा हुई और प्रस्ताव पारित किया गया कि लोकपाल को प्रशासन में स्थापित किया जाएगा। महिलाएं शराबबंदी और सामाजिक शुचिता को लेकर लामबंद हुई थीं। अन्ना के मानस-पुत्र के तौर पर केजरीवाल को प्रस्तुत किया गया। उन्होंने शुगर के मरीज होने के बावजूद अनशन किया।
उनके अतिरिक्त किरण बेदी, जनरल वीके सिंह, योगेन्द्र यादव, प्रशांत भूषण, कुमार विश्वास, आशुतोष, शाजिया इल्मी आदि कई और चेहरों ने भी भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन को गति दी, लेकिन केजरीवाल के एकाधिकारवाद के कारण धीरे-धीरे सभी अलग हो गए। जनरल वीके सिंह तो मोदी सरकार में राज्यमंत्री हैं। राजनीतिक सत्ता तब कोई लक्ष्य नहीं था। केजरीवाल ने भी अपने बच्चों की कसम खाई थी। यही नहीं, प्रणब मुखर्जी, कपिल सिब्बल, शीला दीक्षित, अरुण जेतली, नितिन गडकरी सरीखे 15 बड़े नेताओं की सूची भी तैयार की गई थी। केजरीवाल समूह ने उन्हें 'भ्रष्ट नेता' करार दिया था और जेल भेजने का कथित संकल्प लिया था। बीते सालों में पूरा परिदृश्य ही बदल चुका है। केजरीवाल और उनके सहयोगियों ने आम आदमी पार्टी (आप) का गठन किया। केजरीवाल लगातार पार्टी के आलाकमान बने हुए हैं। अद्र्धराज्य दिल्ली में वह 2015 से लगातार मुख्यमंत्री हैं और अब पंजाब में सरकार बन जाने के बाद देश का प्रधानमंत्री बनने की केजरीवाल और 'आप' की महत्त्वाकांक्षाएं बढ़ गई हैं। अन्ना ने एक अंतराल के बाद केजरीवाल को चि_ी लिखी है। उसमें अन्ना की चिंता और सरोकार के समेत केजरीवाल के लिए फटकार भी है। अन्ना ने साफ लिखा है कि केजरीवाल और उनकी 'आप' सत्ता के नशे में चूर हो गए हैं, लिहाजा आदर्श भूल चुके हैं और लोकपाल तो न जाने कहां पीछे छूट गया है! अन्ना ने केजरीवाल की लिखी किताब 'स्वराज' का भी स्मरण दिलाया, जिसकी भूमिका अन्ना ने ही लिखी थी। किताब में ग्राम स्वराज, शराब के खतरनाक परिणाम, लोकपाल वाला प्रशासन आदि कई आदर्शवादी बातें कही गई थीं। अन्ना की पीड़ा है कि वह आदर्श कहीं खो गया है। केजरीवाल की कथनी और करनी में फर्क है। अन्ना मौजूदा शराब नीति और उससे जुड़े विवाद से भी दुखी हैं और इसे गलत मान रहे हैं।
उनका मानना है कि शराब से समाज में प्रदूषण बढ़ेगा। युवा शक्ति बर्बाद होगी, लिहाजा उन्होंने केजरीवाल से आग्रह किया है कि शराब की दुकानें बंद कर दी जाएं। अन्ना ने याद दिलाया कि केजरीवाल ने संकल्प लिया था कि ग्राम सभा की 90 फीसदी से ज्यादा महिलाएं 'हां' कहेंगी, तो ही शराब की दुकानें खोली जाएंगी। खुद को 'कट्टर ईमानदार' मानने वाले केजरीवाल तय करें कि वास्तव में वह क्या हैं? बहरहाल अन्ना ने केजरीवाल की पूरी राजनीति को सूली पर टांग दिया है। हास्यास्पद यह है कि केजरीवाल इसे भी भाजपा की क्षुद्र राजनीति मान रहे हैं। यानी अन्ना ने भाजपा के कहने पर चि_ी लिखी है और केजरीवाल को फटकार लगाई है। केजरीवाल ऐसी 'सियासी भावुकता' फैलाना बंद करें। जनता इतनी मूर्ख नहीं है। अन्ना का सवाल वाजिब है कि लोकपाल कहां है? बड़े, सरकारी बंगले में आवास और ज़ेड प्लस सुरक्षा क्या है? केजरीवाल ने तो इनके खिलाफ राजनीति का संकल्प लिया था! हम शराब नीति पर कुछ टिप्पणी नहीं करना चाहते, क्योंकि सीबीआई जांच जारी है, लेकिन किसी भी राज्य में शराबबंदी व्यावहारिक निर्णय नहीं है, क्योंकि यह राजस्व का मोटा आधार है। शराबबंदी के दौरान भी शराब बिकती है और नकली, ज़हरीली शराब पीकर हजारों लोग मरते हैं। फिर भी केजरीवाल को अन्ना की चि_ी का जवाब देना चाहिए और तार्किक वजह बतानी चाहिए कि उन्हें सियासत में क्यों आना पड़ा? यदि वह खामोश रहेंगे और भाजपा पर आरोप चस्पा करते रहेंगे, तो उनकी सियासी शख्सियत और भी सवालिया होती जाएगी। दिल्ली में जो शराब घोटाला हुआ है, उसकी सरकार को जांच करवानी चाहिए। केजरीवाल को फिर साबित करना है कि उनकी सरकार ईमानदार है तथा वह भ्रष्टाचार को किसी कीमत पर भी सहन नहीं करेगी। भाजपा पर वह जो आरोप लगा रहे हैं, उन्हें भी साबित करना जरूरी है। उन्होंने आरोप लगाया है कि उनकी पार्टी गुजरात के विधानसभा चुनावों में भाग न ले सके, इसलिए उनके पीछे सीबीआई को लगा दिया गया है। इस तरह के आरोप जनता तभी सच मानेगी, जब वह साबित करके दिखाएंगे।
Rani Sahu
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