सम्पादकीय

अंकुश के कदम

Subhi
27 May 2022 5:17 AM GMT
अंकुश के कदम
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इन दिनों देश में लगातार बढ़ती महंगाई से सारा देश चिंतित और परेशान है। इसी तारतम्य में चीनी निर्यात को सीमित करने, खाद्य तेल के आयात पर कर में कटौती के फैसले हुए हैं।

Written by जनसत्ता: इन दिनों देश में लगातार बढ़ती महंगाई से सारा देश चिंतित और परेशान है। इसी तारतम्य में चीनी निर्यात को सीमित करने, खाद्य तेल के आयात पर कर में कटौती के फैसले हुए हैं। दूध से लेकर पेट्रोल, बिजली से लेकर रसोई गैस तक, सब्जियों से लेकर दवाइयों तक के दामों में पिछले पांच सालों में 67 फीसद तक का इजाफा देखने को मिल रहा है।

महंगाई से भले आम आदमी परेशान हो, लेकिन बड़ी कंपनियों की सेहत पर इसका कोई असर नहीं पड़ रहा है। पेट्रोल-डीजल और खाद्य वितरण से जुड़ी कंपनियों का मुनाफा पिछले चार साल में 90 फीसद बढ़ गया है। सरकार की पहली प्राथमिकता फिलहाल हर हाल में महंगाई को काबू में लाना है। एजंसी इक्रा का अनुमान है कि पेट्रोल-डीजल पर लगने वाले उत्पाद शुल्क में कटौती और कई कच्चे माल के आयात शुल्क में कमी से मई में महंगाई दर घटकर सात प्रतिशत पर आ सकती है।

अप्रैल की खुदरा महंगाई दर 7.78 फीसद के साथ मई 2014 के बाद अपने उच्चतम स्तर पर थी। अनुमान है कि जरूरी चीजों की कीमतें कम होने से गैर जरूरी चीजों की खपत में बढ़ोतरी होगी, जिससे निर्माण बढ़ेगा। सरकार को इस क्षेत्र में और बड़े कदम उठाने की जरूरत है।

आखिर ऐसे कैसे किसी को परिवार के बीच में बैठकर पोर्न जैसा कुछ भी देखने को मजबूर किया जा सकता है? अब तो घर में बच्चों के साथ बैठ कर समाचार देखना भी बड़ी शर्मिंदगी का काम हो गया है। आजकल अनेक न्यूज चैनलों पर हर ब्रेक में एक नीरोध का प्रचार आता है और इस प्रचार में आती है एक अंतरराष्ट्रीय पेशेवर। क्या ये लोग किसी भी वस्तु के प्रचार को सभ्य ढंग से नहीं दिखा सकते?

क्या हर सामान को बेचने के लिए (चाहे वह एक पानी की बोतल हो या अंडरवियर और बनियान, चाहे वह परफ्यूम हो या शेविंग ब्लेड) इनके विज्ञापनों में अधनंगी लड़कियां, चुंबन दृश्य, भद्दे तरीके से लिपटा-लिपटी दिखाना आवश्यक है? हद तो तब होती है, जब एक बच्चा कमरे में बैठा कार्टून चैनल देख रहा होता है और बच्चों के उस कार्टून चैनल पर सेनेटरी नैपकीन का विज्ञापन आ जाता है। खेलने-कूदने की उम्र में बच्चों को ऐसे विज्ञापन दिखा कर कंपनियां क्या हासिल करना चाहती हैं!

क्या यह उपभोक्ता के देखने के अधिकार में सेंध नहीं है? मैं क्या देखूं क्या नहीं? यह कोई और तय करेगा क्या? ऐसे विज्ञापनों पर कोई कानूनी रास्ता अपनाया जा सकता है या नहीं?

सरकारी और गैरसरकारी नौकरी के लिए सौ रुपए या उससे अधिक शुल्क आवेदन करने पर वसूला जाता है। यह बंद होना चाहिए, क्योंकि एक तरफ बेरोजगारों की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होती, दूसरे उन्हें बेरोजगारी का तनाव रहता है, तीसरे नौकरी के लिए उन्हें जगह-जगह आवेदन करना पड़ता है। नौकरी मिलने तक वे एक ओर भटकते रहते हैं दूसरी ओर आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ता है, जिससे तनाव के कारण अवसाद में भी रहते हैं। इसलिए उन्हें नैतिक सहयोग देने हेतु कम से कम आवेदन और अन्य शुल्क न वसूलें। आधुनिक तकनीक का उपयोग करके भी आनलाइन परीक्षाएं और साक्षात्कार से भी बेरोजगारों का समय, धन और आने-जाने की परेशानी से बचाया जा सकता है।


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