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सम्पादकीय
आक्रोश के बहाने अराजकता, ऐसी प्रवृत्ति पर प्रहार आवश्यक
Gulabi Jagat
17 Jun 2022 5:24 AM GMT
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सेना के तीनों अंगों में भर्ती के लिए लाई गई अग्निपथ योजना से असहमत-अप्रसन्न युवाओं ने देश के विभिन्न हिस्सों में जिस तरह उत्पात मचाया
सेना के तीनों अंगों में भर्ती के लिए लाई गई अग्निपथ योजना से असहमत-अप्रसन्न युवाओं ने देश के विभिन्न हिस्सों में जिस तरह उत्पात मचाया और इस दौरान पथराव एवं आगजनी के साथ हर तरह की अराजकता का परिचय दिया, वह न केवल आघातकारी है, बल्कि शर्मसार करने वाली भी। आखिर ऐसे अनुशासनहीन और अराजक युवा सेना में भर्ती होने के अधिकारी कैसे हो सकते हैं, जो अपना विरोध दर्ज कराने के नाम पर राष्ट्र की संपत्ति को नष्ट करने का काम करें? विरोध के नाम पर ट्रेनों को जलाना, रेलवे स्टेशनों पर तोडफ़ोड़ करना, सरकारी एवं निजी वाहनों को क्षतिगस्त करना गुंडागर्दी के अलावा और कुछ नहीं। इसे किसी भी कीमत पर सहन नहीं किया जाना चाहिए।
राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हिंसा में शामिल तत्वों के खिलाफ कठोर कार्रवाई हो। यह इसलिए और भी आवश्यक है, क्योंकि अब विरोध के नाम पर हर किस्म की अराजकता का प्रदर्शन करना और उसके जरिये लोगों को खौफजदा करना आम होता जा रहा है। यदि अराजकता का सहारा लेकर शासन को उसके फैसले वापस लेने के लिए बाध्य करने की प्रवृत्ति पर प्रहार नहीं किया गया तो सरकारों के लिए काम करना तो मुश्किल होगा ही, बात-बात पर कानून हाथ में लेने वाले अराजक तत्वों का दुस्साहस भी बढ़ेगा
नि:संदेह यह समझ आता है कि सेना में भर्ती होने के आकांक्षी कुछ युवाओं को अग्निपथ योजना के कुछ प्रविधान रास न आए हों, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि वे सड़कों पर उतरकर हिंसा करने लगें। दुर्भाग्य से बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, हिमाचल समेत कई अन्य राज्यों में ऐसा ही हुआ। यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि कुछ राजनीतिक दलों ने युवाओं को अग्निपथ योजना के खिलाफ उकसाया। यह देखना दयनीय है कि सैनिक बनने के आकांक्षी जिन युवाओं को अनुशासन का परिचय देना चाहिए और अपना रोष-आक्रोश मर्यादित तरीके से प्रकट करना चाहिए, वे सड़कों पर उपद्रव करते दिखाई दे रहे हैं।
आखिर यह देश सेवा का कैसा जज्बा है, जिसमें न तो संयम दिखाई दे रहा है और न ही अपनी आपत्तियों को सभ्य तरीके से प्रकट करने का सलीका? यह स्पष्ट है कि जो युवा अग्निपथ योजना के विरोध में सड़कों पर हिंसा करने के लिए उतरे, उन्होंने यह देखने-समझने से इन्कार किया कि सरकार किस तरह उनकी चिंताओं और सवालों का समाधान करने के लिए सक्रिय है। वैसे इस पूरे मामले में सरकार के लिए भी यह एक सबक है कि उसे अपनी किसी योजना को लागू करने के पहले पूरी तैयारी के साथ सामने आना चाहिए, ताकि किसी तरह के संशय के लिए कोई गुंजाइश न रहे।
दैनिक जागरण के सौजन्य से सम्पादकीय
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