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वहीं नासा जैसी स्पेस एजेंसी हर साल 20 से 22 बिलियन डॉलर अंतरिक्ष अनुसंधान में खर्च करती है।
देश इस साल अपनी आजादी के 75 वर्ष पूरे कर रहा है। वैश्विक, आर्थिक और राजनीतिक दृष्टि से हमारी आजादी के 75 सालों का ये सफर काफी उतार-चढ़ाव से भरा रहा। हालांकि, इस बीच जो एक चीज निरंतर रही वह हमारे विकास की रफ्तार है। भले ही कई मोर्चों पर हमें परेशानियों और रुकावटों का सामना करना पड़ा, पर हम निरंतर आगे बढ़ते रहे। अब हमारी आजादी के 75 वर्ष पूरे हो चुके हैं। आजादी का ये अमृत महोत्सव भारत के लिए काफी महत्वपूर्ण है। हम समय रेखा के उस पड़ाव पर खड़े हैं, जहां से आगे आने वाला भविष्य हमारे मुस्तकबिल को तय करने वाला है।
दुनिया अब चौथी औद्योगिक क्रांति में प्रवेश कर रही है। आगे आने वाला समय डाटा, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, क्वांटम कंप्यूटिंग और स्पेस रेस का है। अब हमें भविष्य को समझने की जरूरत है। अगर हम इन क्षेत्रों में कामयाब होते हैं, तो भारत दोबारा वैश्विक और आर्थिक स्तर पर अपनी संप्रभुता को कायाम कर सकता है।
आज वैश्विक अर्थव्यवस्था को विस्तार और दुनिया की जरूरतों को पूरा करने के लिए हमारी पृथ्वी समर्थ नहीं है। ऐसे में अब दुनिया की निगाहें धरती से ऊपर उठ कर स्पेस की तरफ देख रही हैं। स्पेस अब वह जरिया बन रहा है, जहां से पृथ्वी की ऊर्जा की जरूरतों को पूरा किया जा सकता है। इस कारण आने वाले समय में स्पेस कॉलोनाइजेशन, एस्टेरॉयड माइनिंग और स्पेस टूरिज्म की दिशा में कई नए आयाम खुलने वाले हैं। ऐसे में स्पेस लॉजिस्टिक, सैटेलाइट और ह्यूमन लॉन्चिंग के क्षेत्र में अरबों डॉलर्स का बड़ा बाजार भविष्य में आकार लेगा।
भविष्य की इस नब्ज को पकड़ते हुए आज स्पेसएक्स, इसरो, वर्जिन एनालिटिका, नासा जैसी कई स्पेस एजेंसियां और निजी कंपनियां इस बाजार में अपनी दावेदारी बढ़ाने के लिए रॉकेट मैन्युफैक्चरिंग और अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में अरबों डॉलर्स का निवेश कर रही हैं।
इसी कड़ी में आजादी के इस अमृत महोत्सव के अवसर पर आज हम आपको इसरो और उसके आने वाले गगनयान मेगा प्रोजेक्ट के बारे में बताने वाले हैं। इसके अलावा हम इसरो के गगनयान मिशन और इससे जन्म लेने वाली संभावनाओं के बारे मेंं भी जानेंगे, जिसका फायदा उठाकर भारत ग्लोबल स्पेस रेस की दौड़ में आगे आकर अपना दबदबा मजबूत कर सकता है?
इसरो और उसके मिशन्स पर एक नजर
आजादी केे बाद भारत केे अंतरिक्ष अनुसंधान की बुनियाद को खड़ा करने में विक्रम सारा भाई, पंडित जवाहर लाल नेहरू और होमी जे भाभा ने एक बड़ी भूमिका निभाई। 1963 में विक्रम सारा भाई ने स्पेस साइंस एंड टेक्नोलॉजी सेंटर का गठन किया। इसकी शुरुआत रॉकेट इंजनीयरिंग, रिसर्च और उसके डेवलपमेंट के लिए की गई थी। विक्रम साराभाई के मार्गदर्शन में भारत का स्पेस प्रोग्राम काफी तेजी से आगे बढ़ रहा था। इसे देखते हुए भारत सरकार 15 अगस्त, 1969 में इसरो (ISRO) यानी इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन का गठन करती है।
आज इसरो की गिनती दुनिया की सर्वश्रेष्ठ स्पेस एजेंसियों में की जाती है। मंगलयान, चंद्रयान जैसे कई कामयाब मिशन्स के कारण इसरो को दुनिया में एक अलग पहचान मिली है। अपने कामयाबी के सफर में इसरो ने यूं तो कई सफलता हासिल की है। वहीं साल 1990 में पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (PSLV) आने के बाद से इसने भारत के स्पेस प्रोग्राम को नई गति देने का काम किया।
पीएसएलवी के जरिए ही इसरो ने साल 2008 में चंद्रयान 1 मिशन को सफलतापूर्वक पूरा किया था। मून पर भेजे गए इस मिशन की वजह से ही दुनिया को पहली बार चंद्रमा पर पानी की मौजूदगी के बारे में पता चला।
पीएसएलवी के माध्यम से साल 2013 में इसरो के सबसे कामयाब मिशन मंगलयान को लॉन्च किया गया। इसके अलावा साल 2017 में पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल ने एक साथ 117 सैटेलाइट लॉन्च करके एक नए कीर्तिमान को रचने का काम किया। ऐसे में ये कहना जरा भी गलत नहीं होगा कि पीएसएलवी ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसांधन को बुलंदियों पर पहुंचाने में एक निर्णानायक भूमिका निभाई है।
समय की मांग को देखते हुए इसरो ने स्पेस में हैवी लॉजिस्टिक और सैटेलाइट को डिलीवर करने के लिए कुछ सालों पहले जीएसएलवी को डेवलप किया। जीएसएलवी में हैवी सैटेलाइट को लोड करके स्पेस में आसानी के साथ लॉन्च किया जा सकता है।
यही नहीं इसरो ने रॉकेट लॉन्चिंग में इस्तेमाल होने वाले क्रायोजेनिक इंजन का भी निर्माण किया है। इस खोज ने भारत को उन चुनिंदा देशों की फेहरिस्त में शामिल कर दिया है, जिनके पास ऑपरेशनल क्रायोजेनिक इंजन की तकनीक है। इस इंजन की वजह से ही आज हम गगनयान जैसे ह्यूमन स्पेस मिशन की योजना बना रहे हैं। साल 2019 में इसरो के मिशन शक्ति ने 300 किलोमीटर की लो अर्थ ऑर्बिट में एक सैटेलाइट को मार गिराया। इस कदम ने स्पेस सुपर पावर बनने की दिशा में भारत को एक नई कामयाबी दी है।
इन सभी मिशन्स में जिस एक चीज ने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है। वह उसका कॉस्ट इफेक्टिव बजट है। इसरो ने इन सभी मिशन्स को बेहद कम पैसों में पूरा किया। एक तरफ जहां भारत ने मंगलयान को मार्स की ऑर्बिट में पहुंचाने के लिए 74 मिलियन डॉलर खर्च किए थे। वहीं अमेरिका ने उसी मिशन के लिए 671 मिलियन डॉलर खर्च किए।
यही नहीं क्रिस्टोफर नोलन द्वारा निर्देशित मशहूर साइंस फिक्शन फिल्म इंटरस्टीलर को बनाने में जितने रुपये खर्च हुए थे। उससे कम कीमत पर इसरो ने अपने चंद्रयान मिशन को पूरा किया। एक तरफ जहां आज इसरो 1.2 बिलियन डॉलर के बजट पर अंतरिक्ष में तमाम बड़े मिशन्स भेजकर अपने परचम को लहरा रहा है। वहीं नासा जैसी स्पेस एजेंसी हर साल 20 से 22 बिलियन डॉलर अंतरिक्ष अनुसंधान में खर्च करती है।
सोर्स: अमर उजाला
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