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- अमेरिका से निराशा
ह्वाइट हाउस में जब एक डेमोके्रट राष्ट्रपति चुनकर पहुंचे, तब दुनिया ने इत्मीनान महसूस किया था कि अब कम से कम शांतिकामी लोकतंत्रों के लिए स्थितियां अनुकूल होंगी। बतौर प्रत्याशी जो बाइडन ने अपनी चुनावी बहसों में लोकतंत्र के हक में सक्रिय होने का वादा किया था, उन्होंने अमेरिकी विदेश नीति को पर्याप्त अहमियत देने की भी बात कही थी, मगर अफगानिस्तान के घटनाक्रम ने उन सभी वादों और आशाओं पर पानी फेर दिया है। वहां न सिर्फ अस्थिरता की स्थिति व्यापक हो गई है, बल्कि काबुल बीस साल पुरानी स्थिति में पहुंचता दिख रहा है। कई बडे़ देशों के लाखों करोड़ रुपये के निवेश संकट में पड़ गए हैं और 60 से अधिक देश अपने दूतावास कर्मियों की सुरक्षा को लेकर अब तालिबान के रहमो-करम पर हैं। अफगानिस्तान के इस सूरते-हाल के लिए दुनिया भर में अमेरिका और खासकर राष्ट्रपति जो बाइडन की हो रही मुखर आलोचना का ही असर है कि अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन को उन तमाम देशों के अपने समकक्षों का नंबर डायल करना पड़ा, जो काबुल के घटनाक्रम से सीधे प्रभावित हुए हैं। खुद राष्ट्रपति बाइडन को अपने देशवासियों के सामने सफाई पेश करनी पड़ी है।