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By: divyahimachal
अमरीकी प्रवास पर जाते हुए एक साक्षात्कार में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि भारत का समय आ गया है। यकीनन सारांश में यह कथन सटीक है। भारत दुनिया में सबसे बड़ा लोकतंत्र है। सबसे अधिक आबादी है। यानी उपभोक्ता हैं। सबसे विशाल और विविध बाजार है। हथियारों का सबसे बड़ा खरीददार है। अमरीका भी 11 फीसदी हथियार भारत को सप्लाई करता है। करीब 45 फीसदी हथियारों की आपूर्ति रूस और करीब 30 फीसदी फ्रांस करता है। भारत-अमरीका आपसी सैन्य अभ्यास भी ‘अद्वितीय’ है। बीते दो दशकों में भारत-अमरीका के रिश्तों के कई नए आयाम खुले हैं। दोनों देश भरोसेमंद रणनीतिक साझेदार भी हैं। दोनों का नाजुक सरोकार हिंद प्रशांत महासागर क्षेत्र है, जिसमें चीन का हस्तक्षेप भी है। ‘क्वाड’ के जरिए भारत, अमरीका, जापान, ऑस्टे्रलिया का एक शक्तिशाली मंच भी है, जिससे चीन पर अंकुश रखा जा सकता है। दरअसल अमरीका के शहरों में जो नारेबाजी बुलंद है, राजधानी वाशिंगटन और न्यूयॉर्क में ‘तिरंगा’ लहरा रहा है, भारतवंशी भावुक हो रहे हैं, अमरीकी राष्ट्रपति और भारतीय प्रधानमंत्री गले मिलेंगे और ‘व्हाइट हाउस’ में राजकीय रात्रि-भोज रखा गया है, भारत के लिए यही सब पर्याप्त नहीं है। महत्त्वपूर्ण सवाल यह है कि हर लिहाज से भारत को, इस राजकीय दौरे से, क्या मिलने वाला है? या संभावनाएं ठोस हो रही हैं? राजकीय यात्रा वाले मेहमान राष्ट्राध्यक्ष या प्रधानमंत्री का स्वागत परंपरागत है। जून, 1963 में तत्कालीन राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन और नवंबर, 2009 में तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह भी अमरीका के राजकीय अतिथि ही थे।
डॉ. सिंह ने 2005 में अमरीका के साथ जो परमाणु करार किया था, वह भी अभूतपूर्व और ऐतिहासिक था। दरअसल अमरीका अब भारत के लिए पलक-पांवड़े बिछा रहा है, क्योंकि कई स्तरों पर भारत के साथ विश्वास और कूटनीति परिपक्व हुए हैं। अमरीकी उद्योग अपने धंधों के विस्तार के लिए नया बाजार देख रहे थे। उन्हें ऐसा पार्टनर चाहिए था, जो उनके उत्पादों का निर्माण भी कर सके, लिहाजा प्रौद्योगिकी के स्तर पर करार की बातें की जा रही हैं। प्रधानमंत्री मोदी भारत के निर्वाचित कार्यकारी प्रतिनिधि हैं, लिहाजा अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडेन उन्हीं के साथ द्विपक्षीय संवाद करेंगे और आपसी संबंधों की बुनियाद को ठोस करेंगे। यह लोकतांत्रिक परंपरा भी है। हमने अमरीकी कंपनी जनरल इलेक्ट्रिक (जीई) के जेट विमान इंजन का उल्लेख एक संपादकीय में किया था। यदि अब इस इंजन की प्रौद्योगिकी के 100 फीसदी हस्तांतरण का करार हो जाता है, यदि सबसे खतरनाक और प्रहारक प्रीडेटर ड्रोन भी प्रौद्योगिकी समेत मिलते हैं, स्ट्राइकर बख्तरबंद वाहन, एम-777 लाइट हॉवित्जर, लॉन्ग रेंज बम और मिसाइल आदि के करार हो जाते हैं, तो यकीनन भारत की सैन्य-शक्ति में बहुत विस्तार होगा और चीन भी निशाने पर, निगरानी में रह सकेगा। जीई-414 जेट इंजन और प्रीडेटर ड्रोन उनकी तकनीक समेत अमरीका ने किसी भी देश को सप्लाई नहीं किए हैं।
करार के बाद ये इंजन और अस्त्र भारत में ही उत्पादित होंगे और उनका इस्तेमाल ‘तेजस’ स्वदेशी लड़ाकू विमान में भी किया जा सकेगा। अहम सवाल यह भी है कि प्रौद्योगिकी किन शर्तों पर हस्तांतरित की जाएगी? क्या वह उत्पाद ‘भारतीय’ भी कहलाएगा? या भारत सिर्फ फैक्टरी की भूमिका में होगा? भारत में कितना निवेश अमरीकी कंपनियां करेंगी? बेशक 9/11 आतंकी हमले के बाद अमरीका ने भारतीय सेना की ताकत को समझा है, लिहाजा उसके बाद हथियार भी देने शुरू किए, लेकिन प्रौद्योगिकी पहली बार हस्तांतरित हो रही है, यदि करार होता है। बहरहाल प्रधानमंत्री मोदी को ‘व्हाइट हाउस’ में 21 तोपों की जो सलामी दी जाएगी, दरअसल वह भी भारत का सम्मान और उसकी उभरती ताकत की स्वीकृति का ही प्रतीक है। वर्ष 2022-23 में भारत-अमरीका के बीच 128.8 अरब डॉलर का व्यापार किया गया। अमरीकी उद्योगपतियों का लक्ष्य है कि अब इसे 500 अरब डॉलर तक बढ़ाया जाए। भारत सबसे अनुकूल देश और बाजार है।
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