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मतलब चुनाव से पहले राष्ट्रपति शासन और अमरेंद्रसिंह के चेहरे की ताकत और कांग्रेस की बरबादी से आगामी चुनाव में भाजपा की बल्ले-बल्ले।
उफ! पटियाला के बूढे महाराजा का साबुन की बट्टी की तरह भाजपाई राजनीति का औजार बनना! भाजपा ने गुजरे सप्ताह इस बट्टी को ऐसा घिसा कि कभी सनसनी भाजपा में अमरेंद्रसिंह के शामिल होने की। कभी चर्चा की वे सुरक्षा आधार पर अमित शाह और अजित डोवाल को पंजाब की ऐसी रियलिटी बता दे रहे है कि केंद्र सरकार के लिए वहा राष्ट्रपति शासन लगाने का आधार बने (पर ऐसी बिगडी स्थिति क्या अमरेंद्रसिंह के राज से नहीं?)। congress punjab political crisis
मतलब चुनाव से पहले राष्ट्रपति शासन और अमरेंद्रसिंह के चेहरे की ताकत और कांग्रेस की बरबादी से आगामी चुनाव में भाजपा की बल्ले-बल्ले। इसके अलावा यह झाग भी कि अमरेंद्रसिंह एक अराजनैतिक संगठन बना कर किसानों के हित में बात कर, मोदी सरकार से आंदोलनकारी किसानों का समझौता करवाएगें। मोदी सरकार को किसान आंदोलन से ऊबार देंगे। तो हल्ला यह भी कि देखों राहुल गांधी की कमान में कांग्रेस की कैसी बरबादी! कहां है कांग्रेस और विपक्ष, अपना घर तो संभाल नहीं पा रहे है और आगामी विधानसभा चुनावों में भाजपा को टक्कर देंगे।
मतलब जिधर देखों उधर महाराजा पटियाला छाप बट्टी को मीडिया में घिसा-घिसा कर झाग की वह सुनामी जिसमें राहुल, कांग्रेस, पंजाब के सब कांग्रेसी डुबते, बहते और मरते हुए! जबकि रियलिटी क्या है? क्या अमरेंद्रसिंह इतने नासमझ होंगे जो पंजाब के सिखों में वे नरेंद्र मोदी की मार्केटिंग करने की सोचे? वे भाजपा का चेहरा बने? सत्य जान ले कि आज पंजाब का बहुसंख्यक सिख, वहां किसानों का घर-घर मोदी सरकार से नफरत करते हुए है। किसान आंदोलन के बाद मोदी सरकार और भाजपा से देश-विदेश के अधिकांश सिख बुरी तरह सुलगे हुए है। ऐसी मनोदशा के बीच अमरेंद्र सिंह कैसे अपने धर्मं, समुदाय की निगाहों में भाजपा के तनखैया बनने का ख्याल पालेंगे?
भाजपा की झाग राजनीति के बाद पंजाब या दुनिया भर के सियासी सिखों में अब अमरेंद्र सिंह की हैसियत दहाड़ते सिक्ख की नहीं हैं बल्कि गुजराती अदानी-अंबानी की मोदी सरकार के दरबार में तनखैया जैसी हो गई है। यदि वे अकेले पार्टी बना कर या भाजपा का चेहरा बन कर पंजाब में चुनाव लड़े तो दो-तीन सीटे भी नहीं मिलेगी। अमरेंदरसिंह को अंदाज नहीं है कि भाजपा के लिए साबुन की बट्टी बन कर झाग पैदा करवा कर उन्होने जीवन भर की अपनी सिख राजनीति को ब्यास नदी में बहा डाला है। अमरेंद्रसिंह का अब जीरो मतलब हो गया है।
पर मोदी-अमित शाह, भाजपा की आईटी सेल के इस कमाल को मानना होगा जो पंजाब में जीरो हैसियत बनने के बाद भी अमरेंद्र सिंह के हल्ले, झाग को बनवा कर पूरे देश में वापिस चर्चा बनवा डाली कि राहुल गांधी पप्पू और कांग्रेस अपने हाथों खुद अपना सत्यानाश करने पर तुली हुई। अमरेंदरसिंह और नवजोतसिंह सिद्धू के दंगल में लोगों ने इस असलियत पर ध्यान ही नहीं दिया कि अमरेंद्रसिंह जैसे महाराजा को हटाने का राहुल गांधी का साहस कैसा भारी है और फिर चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाने से अकाली-बसपा और आप पार्टी के मुकाबले बहुमत वाले दलित, सिक्ख वोटों की राजनीति में कांग्रेस का कैसा जंप हुआ है।
लेकिन मोदी-शाह की रणनीति में अमरेंद्र सिंह के झाग का मकसद पंजाब नहीं है बल्कि पूरे देश में, खासकर चुनाव वाले आगामी राज्यों में विपक्ष की हवा बिगाडना है। एक तो कांग्रेस नेता-कार्यकर्ता गोवा से लेकर उत्तराखंड, त्रिपुरा सभी और कंफ्यूज्ड हो, इसके अलावा बाकि पार्टियों में राहुल-गांधी, कांग्रेस का ग्राफ डाउन रहे। नोट रखे आने वाले दिनों में अखिलेश बनाम शिवपालसिंह, तृणमूल बनाम कांग्रेस, हरीश रावत बनाम नए नेतृत्व जैसे झाग और बनेंगे ताकि विपक्ष में हिम्मत न बने, साझा न बने और कैंपेन उठ नहीं पाए।
उस नाते राजनीति की ठोस हकीकत के बीच मीडिया, सोशल मीडिया के जरिए झागदार हल्ले के अधिक अर्थ निकालने की जरूरत नहीं है। अमरेंद्रसिंह पार्टी बनाए या किसान संगठन या कांग्रेस को खत्म करने की कसम खाए, वे पंजाब में अब जीरो हो गए है। उनका वहीं मतलब है जो भाजपा के लालकृष्ण आडवाणी, शांताकुमार का है या कांग्रेस में गुलाम नबी आजाद, आनंद शर्मा आदि कथित दिग्गज कांग्रेसियों का है।
हरिशंकर व्यास कॉलम | नया इंडिया
Rani Sahu
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