सम्पादकीय

बाथरूम में हूं

Rani Sahu
21 July 2022 6:57 PM GMT
बाथरूम में हूं
x
उनसे तो असलियत क्या बताऊँ, यही कह पाता हूँ कि डॉक्टर ने साफ-सफाई के प्रति जागरूक रहने को कहा है

उनसे तो असलियत क्या बताऊँ, यही कह पाता हूँ कि डॉक्टर ने साफ-सफाई के प्रति जागरूक रहने को कहा है, सो ज्यादा समय वहीं रहना पड़ता है। वे रहस्यमयी मुस्कान के साथ कहते हैं-'थोड़ा लिखना-पढऩा रेगुलर करो। इस तरह कैसे चलेगा। इस तरह तो आपका लेखक मर जाएगा।' मैं मन में सोचता हूँ कि उनकी बकवास से मरने की एवज बिना लिखे-पढ़े मर जाना ज्यादा बेहतर है। उधार माँगने वालों से पूरी तरह सुरक्षित हूँ। वे फोन पर ही झल्लाते हैं-'उन्हें निकालिए बाथरूम से। पूरा एक साल गुजर गया-कब देंगे हमारी उधारी?' पत्नी घाघ हो गई है, कहती है-'उन्हें पहले बाथरूम से बाहर आने दो, पता करती हूँ कि उन्होंने आप जैसे अव्यावहारिक आदमी से उधार क्यों ली? उधार ली है तो मर थोड़े ही रहे हैं हम। एक-एक पाई चुका देंगे, लेकिन बातचीत ढंग से किया करो। थोड़ी तमीज सीखो।' उधार उगाहने वाले दुर्जन ठंडे पड़ जाते हैं-'वह क्या था? जब भी फोन करता हूँ, तब वे बाथरूम में होते हैं। कभी बाहर भी तो मिलें।' पत्नी कह देती है-'अब आप फोन ही तब करते हैं, जब वे बाथरूम में होते हैं।' वे कहते हैं-'अच्छा थोड़ी देर बाद में फोन कर लूँगा।' वे पुन: फोन करते हैं, तब तक मैं ऑफिस चला जाता हूँ। कुछ लोग मुझे मेरे दफ्तर के काम से फोन करते हैं। उन्हें भी मैं बाथरूम में मिलता हूँ। उनकी माँग होती है कि उन्हें जरूरी काम था। पत्नी कहती है कि जरूर होगा आपको जरूरी काम अन्यथा आप टेलिफोन करते ही क्यों। वे कहते हैं-'कब तक बाहर आएंगे वे।' पत्नी कहती है कि बाहर आ गए तो बीमार हो जाएंगे तथा ऑफिस नहीं जाएंगे, क्योंकि बाथरूम में ज्यादा समय रहने से उन्हें जुकाम हो गया है।

वे कहते हैं-'उनके दफ्तर का ही काम था कल तो जाएंगे?' पत्नी कहती है-'यदि वे बाथरूम में नहीं गए तो जरूर जाएंगे दफ्तर।' इस तरह की पहेलीबाजी से मैं इनसे बचा रहता हूँ। यही क्यों, और भी शुभचिन्तक हैं, जो मुझसे कुछ लिखवाना चाहते हैं, माँगना चाहते हैं, सलाह मशविरा करना चाहते हैं अथवा यों ही गप्प मारकर समय जाया करना चाहते हैं। उन सबके लिए मैं बाथरूम में हूँ। मेरी जेनुइन समस्या तो कोई समझता-सुनता नहीं और मुझे पलक झपकते ही देखना चाहते हैं। मेरे अदृश्य होने का सुरक्षित स्थल है बाथरूम, जहाँ पूरी शांति के साथ मैं गुनगुनाता हूँ। पानी से खेलता हूँ या साबुन का झाग फुलाकर आइने में शक्ल देखता हूँ। मुझे दूसरों की एवज अपनी शक्ल देखना ज्यादा प्रिय लगने लगा है। इसीलिए मैंने बाथरूम में बड़ा शीश लगाया है। वैसे कुछ शुभचिन्तक यह भी कहने लगे हैं कि मैंने बाथरूम को बहाना बना लिया है। मेरा उनको खुला जवाब है कि यदि वे अपनी आदतों से बाज आएं तो मुझे बाथरूम से बाहर आने में कोई कठिनाई नहीं है।
पूरन सरमा
स्वतंत्र लेखक

By: divyahimachal

Rani Sahu

Rani Sahu

    Next Story