सम्पादकीय

सभी बच्चों को मिले स्कूली शिक्षा

Gulabi Jagat
27 Sep 2023 5:09 PM GMT
सभी बच्चों को मिले स्कूली शिक्षा
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कुछ समय पहले के सरकारी आंकड़े बताते हैं कि हमारे देश में करीब पांच करोड़ बच्चे बाल मजदूरी करते हैं। वहीं, राष्ट्रीय सैंपल सर्वे संगठन के अनुसार हमारे देश में हर चौथा बच्चा स्कूल से बाहर है। मेरा मानना है कि हमारे स्कूलों में ही इतनी खामियां हैं कि बच्चे मनोवैज्ञानिक रूप से स्कूल में टिक ही नहीं पाते। खास तौर पर ग्रामीण भारत के सुदूर अंचल विशेष रूप से प्रभावित होते हैं, जहां एक तो अच्छे स्कूल नहीं हैं और अगर हैं भी तो गुणवत्तापूर्ण शिक्षक नहीं हैं। इन स्कूलों में शिक्षकों की संख्या इतनी कम है कि स्कूल तो 1-2 शिक्षकों के भरोसे हैं, ऐसे में अब अध्यापक स्कूल व्यवस्था को देखे या पठन-पाठन को। आज सभी बच्चों को स्कूली शिक्षा उपलब्ध कराए जाने की जरूरत है। इसके लिए सरकारों को आक्रामक तरीके से काम करना होगा और शिक्षा को लेकर राजनीतिक बयानबाजी से बचना होगा…

हाल ही में स्कूली शिक्षा से जुड़े विचलित करने वाले कुछ आंकड़े सामने आए हैं। बताया जा रहा है कि दुनिया के 25 करोड़ बच्चे आज भी स्कूली शिक्षा से वंचित हैं। इसके बारे में संयुक्त राष्ट्र के शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) ने अपनी नई रिपोर्ट ‘एसडीजी मिडटर्म प्रोग्रेस रिव्यू’ में जानकारी दी है कि 2021 से अब तक स्कूली शिक्षा से वंचित बच्चों की संख्या कम होने की जगह बढ़ रही है और यह आंकड़ा पिछले दो वर्षों में 60 लाख की बढ़ोतरी के साथ 25 करोड़ पर पहुंच गया है। 2023 में यूनेस्को द्वारा जारी ग्लोबल एजुकेशन मॉनिटरिंग रिपोर्ट से पता चला है कि 2015 के बाद से प्राथमिक शिक्षा पूरी करने वाले बच्चों की संख्या में केवल तीन फीसदी का इजाफा हुआ है, जिसके बाद यह आंकड़ा 87 फीसदी पर पहुंच गया है। इसी तरह माध्यमिक शिक्षा पूरी करने वाले युवाओं के आंकड़े में केवल पांच फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है, जिसके बाद यह आंकड़ा बढक़र 58 फीसदी पर ही पहुंचा है। यूनेस्को के महानिदेशक ने सभी राष्ट्रों से त्वरित कार्रवाई का आह्वान करते हुए कहा है कि, ‘लाखों बच्चों का भविष्य आपके हाथों में है।’ संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी आंकड़ों से पता चलता है कि स्कूलों से बाहर रहने वाले बच्चों के आंकड़े में हुई इस बढ़ोतरी के लिए मुख्य रूप से अफगानिस्तान में महिलाओं व बच्चियों को शिक्षा से वंचित रखे जाने का बहुत बड़ा हाथ है। मगर इस बढ़ोतरी के लिए कहीं न कहीं दुनिया भर में शिक्षा की उपलब्धता में आया व्यापक ठहराव भी जिम्मेवार है। अपने यहां आज भी एक अनुमान के मुताबिक 15 करोड़ बच्चे स्कूली शिक्षा से वंचित हैं।

आजादी के बाद हुई जनगणना के आंकड़ों को देखें तो उस समय 19 फीसदी आबादी साक्षर थी। आजादी के 75 साल बाद 80 प्रतिशत आबादी साक्षर हो चुकी है, लेकिन अभी भी 20 फीसदी यानी 25 करोड़ के आसपास लोग निरक्षर हैं। पूरी दुनिया में बच्चों की शिक्षा को महत्व दिया जाता है। इसके बावजूद विश्व भर में शिक्षा के विकास के लिए दी जा रही मदद का केवल एक फीसदी से भी कम हिस्सा प्री-प्राइमरी एजुकेशन के लिए दिया जा रहा है। यदि इस लिहाज से देखें तो हर बच्चे की प्री-प्राइमरी एजुकेशन पर हर वर्ष करीब 25 रुपए की मदद दी जा रही है। ऐसे में दुनिया भर में प्री-प्राइमरी एजुकेशन की क्या स्थिति होगी, इसका अंदाजा आप खुद ही लगा सकते हैं। यही वजह है कि गरीब और कमजोर तबके से संबंध रखने वाले करीब 80 फीसदी बच्चे आज भी प्री-प्राइमरी एजुकेशन से वंचित हैं। इस मुद्दे पर हमें भी आत्म दर्शन की जरूरत है। बेहतर हो कि सभी राज्यों में बुनियादी स्कूली शिक्षा से वंचित बच्चों की पहचान की जाए और उन्हें शिक्षा के लूप में शामिल करने के लिए कदम उठाए जाएं। झारखंड में शिक्षा की बदहाल स्थिति को लेकर हाल ही में एक रिपोर्ट जारी की गई थी, जिसके मुताबिक झारखंड के एक-तिहाई प्राथमिक स्कूल केवल एक ही टीचर के भरोसे चल रहे हैं। गौरतलब है कि इन स्कूलों में 90 फीसदी बच्चे दलित और आदिवासी परिवारों से आते हैं। ऐसे में पहले ही अनगिनत कठिनाइयों का सामना कर रहे इन बच्चों का भविष्य कैसा होगा, इसकी कल्पना भी विचलित कर देती है।

इस बिंदु को लेकर देश के अन्य राज्यों की क्या स्थिति है, यह पता लगाना आवश्यक है। हाल ही में देश में स्कूलों पर किए एक सर्वेक्षण से पता चला है कि देश के अनेक स्कूलों में शौचालय और बिजली, यहां तक कि पीने के पानी की सुविधा भी नहीं है। क्या ऐसे स्कूलों की स्वीकृति जारी रहनी चाहिए? क्यों न हमारे जिला शिक्षा अधिकारी इन स्थितियों की पड़ताल कर अपनी-अपनी सरकारों को अवगत कराएं। यकीनन अनेक स्कूलों में बेसिक सुविधाओं की कमी के कारण भी स्कूल जाने वाले बच्चों की संख्या में कमी देखी जा रही है और एनरोलमेंट पर नकारात्मक असर पड़ रहा है। यह भी स्कूली शिक्षा से जुड़ा एक कड़वा सच है। मनुष्य की मानसिक शक्ति के विस्तार हेतु शिक्षा एक अनिवार्य प्रक्रिया है। स्त्री हो या पुरुष, किसी को भी शिक्षा से वंचित रखना उसकी मानसिक क्षमता विकसित होने से रोक देना है। पूर्ण व सुचारू शिक्षा न मिलने से महिला या पुरुष बाहर के उत्तरदायित्वपूर्ण कार्यों का भार उठाने में असमर्थ होते हैं। अगस्त 2015 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपनी ऐतिहासिक टिप्पणी में कहा था कि अधिकारियों, नेताओं और जजों के बच्चों को अनिवार्य रूप से सरकारी स्कूलों में पढ़ाया जाना चाहिए, ताकि सरकारी शिक्षा पद्धति में सुधार लाया जा सके। इसे अदालत ने सरकार को लागू करने का निर्देश दिया था, जिसमें शर्तों को न मानने वालों पर सजा के प्रावधान की भी बात थी।

शिक्षा की बुनियाद को मजबूत बनाने और समाज में बेहतर संबंध स्थापित करने की दिशा में वह टिप्पणी काबिल-ए-तारीफ थी, लेकिन इसे आज तक लागू नहीं किया गया। कुछ समय पहले के सरकारी आंकड़े बताते हैं कि हमारे देश में करीब पांच करोड़ बच्चे बाल मजदूरी करते हैं। वहीं, राष्ट्रीय सैंपल सर्वे संगठन के अनुसार हमारे देश में हर चौथा बच्चा स्कूल से बाहर है। मेरा मानना है कि हमारे स्कूलों में ही इतनी खामियां हैं कि बच्चे मनोवैज्ञानिक रूप से स्कूल में टिक ही नहीं पाते। खास तौर पर ग्रामीण भारत के सुदूर अंचल विशेष रूप से प्रभावित होते हैं, जहां एक तो अच्छे स्कूल नहीं हैं और अगर हैं भी तो गुणवत्तापूर्ण शिक्षक नहीं हैं। इन स्कूलों में शिक्षकों की संख्या इतनी कम है कि स्कूल तो 1-2 शिक्षकों के भरोसे हैं, ऐसे में अब अध्यापक स्कूल व्यवस्था को देखे या पठन-पाठन को। आज सभी बच्चों को स्कूली शिक्षा उपलब्ध कराए जाने की जरूरत है। इसके लिए सरकारों को आक्रामक तरीके से काम करना होगा और शिक्षा को लेकर राजनीतिक बयानबाजी से बचना होगा। शिक्षा के माध्यम से अर्जित किए गए ज्ञान, कौशल और जीवन के मूल्यों के बल पर लोग समाज में परिवर्तन ला सकते हैं। इससे आने वाली पीढिय़ों का पथ प्रदर्शन प्रभावशाली ढंग से किया जा सकता है, क्योंकि बच्चे किसी भी राष्ट्र के भावी जीवन की आधारशिला होते हैं। मगर ध्यान रहे, विवेकहीन शिक्षा और ज्ञान मनुष्य को पतन की ओर अग्रसर करते हैं। सभी एसटीआर पर सरकार को अति संवेदनशील बच्चों के साथ किए जाने वाले व्यवहार की निगरानी के लिए प्रभावी उपाय करने चाहिए तथा यह सुनिश्चित करने के लिए कि वे कक्षाओं में बने रहें, इसके लिए पूरी-पूरी कोशिश होनी चाहिए।

डा. वरिंद्र भाटिया

कालेज प्रिंसीपल

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