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- अकबर इलाहाबादी या अकबर...
हेमंत शर्मा अकबर इलाहाबादी तरक़्क़ी पंसद शायर थे. धर्म, जाति, मज़हब से ऊपर. अपनी न्याय प्रियता के लिए जाने, जाने वाले जज. उन्होंने कभी सोचा नहीं होगा कि उनकी मौत के सौ साल बाद उनकी पहचान बदल जाएगी. वे अकबर इलाहाबादी से अकबर प्रयागराजी हो जाएंगें. किसी व्यक्ति का नाम बदलना उसकी वल्दियत बदलने जैसा है. किसी का नाम बदलना उसकी निजता से खिलवाड़ तो है ही. फिर सोचने वाली बात यह भी है कि आख़िर किसका नाम बदलने की कवायद की गई? अकबर इलाहाबादी का! एक ऐसा शायर जो आज़ाद और प्रगतिशील ख्यालों की जीती जागती इबारत था. अकबर इलाहाबादी कट्टर नहीं थे. दोनों तरफ़ की रूढ़ियों पर उन्होंने हमला किया था. सबकी सुनना और सबको सुनाना उन्हें प्रिय था. अकबर परंपरावादी थे, लेकिन वे जड़ परंपरावादी नहीं थे. वे मज़हबी थे, लेकिन मज़हबी ईमान के नाम पर चलने वाले पाखंड का मज़ाक उड़ाने से उन्हें कभी गुरेज़ नही था. तभी तो उन्होंने लिखा-