सम्पादकीय

आक्रोश से भरा 'अग्निपथ'

Rani Sahu
17 Jun 2022 7:13 PM GMT
आक्रोश से भरा अग्निपथ
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देश के प्रिय नौजवानो! अपने समय के रणबांकुरो! तुम भारत के भाग्य-विधाता हो, जांबाज हो! तुम भावी सैनिक हो-देश की सरहदों के प्रहरी! तुम्हारी कई भूमिकाएं हैं

देश के प्रिय नौजवानो! अपने समय के रणबांकुरो! तुम भारत के भाग्य-विधाता हो, जांबाज हो! तुम भावी सैनिक हो-देश की सरहदों के प्रहरी! तुम्हारी कई भूमिकाएं हैं। आक्रोश, उत्पात, गुस्से, उबाल, बवाल, विनाश से लथपथ होना स्वाभाविक नहीं है। यह तुम्हारा मुल्क है। तुम्हारे पुरखों ने भी कुर्बानियां दी होंगी, तभी भारत आज़ाद मुल्क बना। तुम गुस्से में हो, लिहाजा विवेक खो बैठे हो। तुम्हारे बाप-दादा ने देश को जो कर दिए थे, उन्हीं को संकलित कर देश का राजकोष बना है। सुंदर, वातानुकूलित और गन्तव्य तक ले जाने वाली रेलगाडि़यां उसी राजकोष से खरीदी गई थीं। उत्पात और उबाल की एक लहर में तुमने उन्हें आग के हवाले कर दिया। बोगियां धू-धू कर जल रही थीं, तो लग रहा था मानो हमारे देश का एक खंड जलकर भस्म हो रहा था! प्रशासन को 34 टे्रनें रद्द करनी पड़ीं। तुमने सरकारी वाहन भी फूंक दिए। पुलिस वालों पर पथराव किया। क्या तुम देश के 'भस्मासुर' करार दिए जा सकते हो? तुम तो अब्दुल हमीद के बाद की पीढ़ी हो। तुम्हारे आदर्श कैप्टन विक्रम बतरा, कैप्टन सौरभ कालिया और मेजर उन्नीकृष्णन हैं। उन्होंने भारत की सरहदी सुरक्षा के लिए तब शहादत दी, जब वे भरी जवानी में थे और उनके करियर की शुरुआत हुई थी। उन्होंने नौकरी की चिंता नहीं की। सेना उनके लिए रोज़गार नहीं था। देश आज भी नम आंखों से उन्हें याद करता है और श्रद्धांजलि देता है। तुम्हें भी ऐसे ही प्रतिमान स्थापित करने सेना में भर्ती होना है। चार साल मिलें या 15 साल….तुम्हें एकबारगी अपने लक्ष्य को छूना है। रोहतक के 22 वर्षीय युवा ने आत्महत्या कर ली, क्योंकि उसने शारीरिक और मेडिकल टेस्ट पास कर लिए थे, लेकिन लिखित परीक्षा नहीं हुई थी। वह नौजवान भ्रमित हुआ, क्योंकि इस साल सरकार ने सैनिक की उम्र सीमा 23 वर्ष कर दी है। वह सेना में जा सकता था, लेकिन सूचना के अधूरेपन और गुमराह करने की शरारत ने उस युवा की जि़ंदगी छीन ली। शायद इस त्रासदी ने सरकार को झकझोर दिया हो! नौजवानो! कुछ धैर्य रखो। भर्ती की तैयारी जारी रखो। पत्थरबाजी, आगजनी और उपद्रव से तुम्हें कुछ हासिल नहीं होगा। तुम्हारे हाथों में 'तिरंगा' है और जुबां पर 'वंदे मातरम्' और 'भारत माता की जय' के राष्ट्रीय नारे हैं। अजीब विरोधाभास है! तुम सैनिकमना नौजवान अपनी ही मातृभूमि को लहूलुहान कैसे कर सकते हो? आग की लपटों में जलने के लिए 'भारत मां' को कैसे झोंक सकते हो?

यह कैसा राष्ट्रवाद और कैसी देशभक्ति है? तुम जो कर रहे हो, वह गलत, अनैतिक, असंवैधानिक और देश-विरोधी है। आपको तो सैनिक बनना है, लिहाजा गुमराह न हों, गंदी सियासत के शिकार न हों, क्योंकि सेना में भर्ती स्वैच्छिक है, जबरन नहीं है। भारत एक खुला और लचीला लोकतंत्र है। उसकी तुलना रूस, चीन, इज़रायल, दक्षिण कोरिया, ब्रिटेन, फ्रांस और अमरीका की सेनाओं से न की जाए। हम अपना रास्ता खुद तैयार करेंगे। हमारी सेना का लोहा दुनिया मानती रही है। यदि 4 साल का सेवा-काल बहुत कम है और आपको अच्छा नहीं लग रहा है, तो अर्द्धसैन्य बलों और पुलिस के लिए खुद को तैयार करें। वहां भी देशसेवा के ही अवसर मिलेंगे और एक स्थायी, सरकारी नौकरी भी मिलेगी। हमारे युवा जांबाजो! देश में बेरोज़गारी की स्थिति भयावह है। हम उससे अच्छी तरह वाकिफ हैं। हम उसके विश्लेषण करते रहे हैं। आक्रोश, गुस्से, हिंसा से नौकरियां नहीं मिला करतीं। सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकोनॉमी के सर्वेक्षण का डाटा सामने है कि अप्रैल, 2022 में 15-19 साल के आयु-वर्ग के पुरुषों में बेरोज़गारी करीब 50 फीसदी थी। साल 20-24 के आयु-वर्ग में यह दर 38.7 फीसदी थी। बिहार में 15-19 आयु-वर्ग के युवाओं में बेरोज़गारी 76 फीसदी तक देखी गई है। ऐसे में एक निश्चित और दीर्घावधि की नौकरी का विकल्प खत्म होना यकीनन युवाओं के लिए बड़ा धक्का है। बिहार देश का सबसे गरीब राज्य भी है, लिहाजा सेना में भर्ती की संभावनाएं भी खत्म होती लगीं, तो युवा आक्रोश और कुंठाओं में सड़क पर उतर आए और अपने ही देश की संपत्ति को खंडित करने लगे। नौजवानो! तुम्हें इतना कमजोर नहीं होना है।

सोर्स- divyahimachal

Rani Sahu

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