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- हिमाचली भाषा के खिलाफ
नई शिक्षा नीति की बुनियाद पर भारतीय जन भाषाओं को संबल मिलने की आशा है, उसके विपरीत हिमाचल में यही नीति मातृ भाषा की अवधारणा से ही कन्नी काट रही है। प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड अध्यक्ष डा. सुरेश कुमार सोनी की मानें, तो हिमाचल में पहाड़ी को जन भाषा के प्रारूप से खुर्द-बुर्द करते हुए यह राज्य सिर्फ हिंदी, संस्कृत और इंग्लिश में पढ़ेगा। यानी जो शिक्षा नीति अपनी केंद्रबिंदु में पांचवीं तक मातृ भाषा, स्थानीय भाषा या क्षेत्रीय भाषा में पढ़ाई को आठवीं या उससे आगे बढ़ाना चाहती है, उस पर हिमाचल में शून्यता पसर रही है। नई शिक्षा नीति के बहाने हिमाचली भाषा की जरूरत को नकारते हुए शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष ही फर्ज अदा नहीं कर रहे हैं, बल्कि ऐसी वकालत का परिचय कमोबेश हर शिक्षाविद दे रहा। आश्चर्य यह कि ऐसे बयान पर न तो साहित्यकारों और न ही लोक कलाकारों की ओर से कोई आपत्ति दर्ज की गई है। ऐसे में भाषा-संस्कृति विभाग व अकादमी का ढिंढोरची पक्ष किस दावे से पहाड़ी भाषा समारोहों का आयोजन करता है या सांस्कृतिक समारोहों के आयोजनों में कौनसी धूल उड़ाई जा रही है, जो देश का एकमात्र प्रदेश अपनी स्वभाषा से स्वाभिमान जागृत करने के बजाय नई शिक्षा नीति की शर्तों से मातृ भाषा, स्थानीय या क्षेत्रीय भाषा की मूल भावना को ही तिरोहित कर रहा है।