सम्पादकीय

जुमे की नमाज के बाद आक्रोश के बहाने उपद्रव, देश की छवि खराब करती ऐसी हरकतें

Rani Sahu
11 Jun 2022 9:30 AM GMT
जुमे की नमाज के बाद आक्रोश के बहाने उपद्रव, देश की छवि खराब करती ऐसी हरकतें
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शुक्रवार को नमाज के बाद देश के कई शहरों में जिस तरह हिंसक प्रदर्शन हुए और इस दौरान कई जगहों पर पथराव, तोड़फोड़ एवं आगजनी के साथ पुलिस पर हमला किया गया

सोर्स- जागरण

शुक्रवार को नमाज के बाद देश के कई शहरों में जिस तरह हिंसक प्रदर्शन हुए और इस दौरान कई जगहों पर पथराव, तोड़फोड़ एवं आगजनी के साथ पुलिस पर हमला किया गया, वह किसी सोची-समझी साजिश का हिस्सा ही लगता है। खौफ पैदा करने वाली इस नग्न अराजकता का परिचय भाजपा के उन दो नेताओं की पैगंबर मोहम्मद साहब पर विवादित टिप्पणियों पर रोष जताने के नाम पर किया गया, जिन्हें न केवल निलंबित-निष्कासित कर दिया गया है, बल्कि जिनके खिलाफ रिपोर्ट भी दर्ज कर ली गई है। इस कार्रवाई को अपर्याप्त मानते हुए शांतिपूर्ण तरीके से विरोध तो समझ आता है, लेकिन आखिर लोगों को आतंकित करने वाली खुली अराजकता का क्या मतलब? यह अराजकता किस कदर बेलगाम थी, इसे इससे समझा जा सकता है कि जहां रांची में हिंसा पर काबू पाने के लिए कर्फ्यू लगाना पड़ा, वहीं कई अन्य शहरों में धारा 144 लागू करनी पड़ी। ध्यान रहे इसके पहले गुरुवार को जम्मू-कश्मीर के भद्रवाह में एक मस्जिद से भड़काऊ बयानबाजी के बाद कर्फ्यू लगाना पड़ा था।

इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि आक्रोश जताने के नाम पर केवल उत्पात ही नहीं मचाया गया, बल्कि निलंबित भाजपा प्रवक्ता नुपुर शर्मा का सिर तन से जुदा करने के नारे लगाए गए और उनके पुतले को फांसी भी दी गई। ऐसी हरकतें सभ्य समाज को शर्मसार करने और देश की छवि खराब करने वाली हैं। यह याद रहे कि ऐसा ही कुछ तब भी हुआ था, जब कमलेश तिवारी पर पैगंबर साहब की शान में गुस्ताखी के आरोप लगे थे और वह भी तब जब उसे गिरफ्तार कर उस पर रासुका लगा दिया गया था। बाद में कुछ जिहादी तत्वों ने उसकी गर्दन रेत कर हत्या भी कर दी थी।
साफ है कि शुक्रवार को सड़कों पर उतरे लोगों को उपद्रव करने के लिए बहाना चाहिए था। चूंकि नुपुर शर्मा के बयान पर देशव्यापी उपद्रव कई इस्लामी देशों की नाराजगी जताने के बाद हुआ, इसलिए यह संदेह और गहराता है कि यह सुनियोजित और प्रायोजित था। जरूरी केवल यह नहीं कि उपद्रवियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए, क्योंकि इस तरह की उन्माद भरी हिंसा कानून के शासन को खुली चुनौती है, बल्कि यह भी है कि मुस्लिम समाज का धार्मिक-राजनीतिक स्तर पर नेतृत्व करने वाले इस पर विचार करें कि ऐसे उपद्रव उनके समुदाय की कैसी छवि निर्मित कर रहे हैं?
एक सवाल यह भी है कि क्या धार्मिक मामलों में अप्रिय टिप्पणियों से केवल समुदाय विशेष की ही भावनाएं आहत होती हैं। यह सवाल इसलिए, क्योंकि यह किसी से छिपा नहीं कि ज्ञानवापी परिसर में सर्वेक्षण के बाद शिवलिंग को लेकर कैसे ओछी-भद्दी और अपमानजनक टिप्पणियां की गईं।
Rani Sahu

Rani Sahu

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