सम्पादकीय

शल्यक्रिया के बाद बुरा व्यक्ति अच्छा आचरण करने लगता है, क्या इस तरह आंखें बदलने से दृष्टिकोण में परिवर्तन हो सकता है

Rani Sahu
19 Nov 2021 3:14 PM GMT
शल्यक्रिया के बाद बुरा व्यक्ति अच्छा आचरण करने लगता है, क्या इस तरह आंखें बदलने से दृष्टिकोण में परिवर्तन हो सकता है
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गौरतलब है कि हाल ही में टीवी पर प्रसारित हुए ‘कौन बनेगा करोड़पति’ नामक कार्यक्रम में किशोर वय की एक प्रतिभागी के आग्रह पर उसकी आंख पर काली पट्टी बांधी गई

जयप्रकाश चौकसे गौरतलब है कि हाल ही में टीवी पर प्रसारित हुए 'कौन बनेगा करोड़पति' नामक कार्यक्रम में किशोर वय की एक प्रतिभागी के आग्रह पर उसकी आंख पर काली पट्टी बांधी गई। उसने बंद आंखों से किताब के पृष्ठ पर लिखी इबारत सही-सही पढ़ ली। यह जानने के लिए कि कहीं उसने किताब में लिखी बातों का रट्‌टा पहले से ही तो नहीं लगा लिया था? उसे तरह-तरह से आजमा कर देखा गया, लेकिन वह प्रतिभागी हमेशा सही निकली और उसने अपनी विचित्र क्षमता को सभी के सामने सिद्ध किया।

यही नहीं उसने एक अन्य प्रयोग के तहत आंख बंद करके विविध रंगों की चीजों के रंग भी सिर्फ उन्हें छूकर पहचान लिए। गोया की, अभी तक तक हम यही जानते हैं कि दृष्टिहीन लोगों के लिए ब्रेल लिपि में किताबें लिखी होती हैं और वे उंगलियों से उन उभरे हुए शब्दों को छूकर पढ़ लेते हैं। गौरतलब है कि खाकसार की किताब 'महात्मा गांधी और सिनेमा' भी ब्रेल में उपलब्ध कराई गई है। लेकिन इस प्रतिभागी की ऐसी विचित्र क्षमता वाकईहैरत में डालती है।
ऋतिक रोशन अभिनीत फिल्म 'काबिल' में दृष्टिहीन नायक अपनी पत्नी के चार कातिलों को सजा देता है। वह ध्वनि से दृष्टि का काम लेता है। अंग्रेजी कवि जॉन मिल्टन ने उदारवादी राजनीतिक दल के लिए इतने परिचय लिखे कि वे अपनी दृष्टि ही खो बैठे। उनके महाकाव्य 'पैराडाइज लॉस्ट' और 'सैम्सन एगोनिस्टिस' अंग्रेजी साहित्य के पाठ्यक्रम में शामिल हैं। राज कपूर और नूतन अभिनीत फिल्म 'अनाड़ी' में एक गीत है 'दिल की नज़ से, नज़रों की दिल से ये बात क्या है, ये राज़ क्या है कोई हमें बता दे।'
ज्ञातव्य है कि जयपुर के दृष्टिहीन बालकों द्वारा मंचित नाटकों का प्रदर्शन, जयपुर, कोटा और इंदौर में हो चुका है। ये बालक इतना अच्छा काम करते हैं कि एक व्यक्ति को संदेह हुआ कि वे देख सकते हैं! लेकिन उनका यह भ्रम मिटाने के लिए डॉक्टर ने परीक्षण के बाद कहा कि वे बालक वास्तव में दृष्टिहीन हैं। महाभारत काल की तरफ जाएं तो, धृतराष्ट्र जन्मांध थे। उनका विवाह विदुषी गांधारी से किया गया था। गांधारी ने भी अपनी आंखों पर काली पट्टी बांध ली थी। यह पति से सहानुभूति थी या उसका प्रतिरोध था?
अगर गांधारी ऐसा नहीं करती तो अपने पुत्रों के मन में आए मैल को बचपन में ही देखकर उन्हें सही राह पर लाने का प्रयास करती परंतु उसके उस आक्रोश को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता जो अभिव्यक्त न हुआ हो। स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने युद्ध रोकने के प्रयास किए परंतु बाजार की ताकतों ने ऐसा नहीं होने दिया। उन ताकतों ने अनगिनत शस्त्र और रथ इत्यादि पहले ही बना लिए थे। लोभ- लालच की ताकतें सब कुछ कर सकती हैं।
अशोक कुमार अभिनीत फिल्म 'तेरी सूरत मेरी आंखें' में दृष्टिहीन नायक की व्यथा सचिन देव बर्मन, मन्ना डे और शैलेंद्र ने अभिव्यक्ति की है। 'पूछो ना कैसे मैंने रैन बिताई एक पल जैसे, एक जुग बीता जुग बीते, मोहे नींद न आई, उतजल दीपक, इत मन मेरा फिर भी ना जाए मेरे घर का अंधेरा, तड़पत-तरसत उमर गंवाई, पूछो ना कैसे...।' राजेश खन्ना, राकेश रोशन अभिनीत फिल्म 'धनवान' में एक अभिमानी व्यक्ति दुर्घटना में अपनी आंखें खो देता है।
उसके पास बहुत पैसा होने के बाद भी उसे अपने लिए आंखे नहीं मिल पातीं। तब एक क्लर्क व्यक्ति जिसकी मृत्यु किसी कारण हो जाती है उसकी आंखें उस अभिमानी व्यक्ति को मिलती हैं वह भी तब, जब वह अभिमान त्याग कर प्रार्थना के मार्ग पर जाता है। शल्य क्रिया द्वारा एक अभिमानी व्यक्ति को उस सदाचारी क्लर्क की आंखे लगाई जाती हैं।
शल्यक्रिया के बाद अभिमानी, बुरा व्यक्ति अच्छा आचरण करने लगता है। क्या इस तरह आंखें बदलने से दृष्टिकोण और विचार प्रक्रिया में परिवर्तन हो सकता है? क्या वैचारिक संकीर्णता से मुक्ति पाने का यह रास्ता कारगर हो सकता है? क्या इस तरह अंधा युग समाप्त होकर हम सतयुग में पुन: प्रवेश कर सकते हैं?


Rani Sahu

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