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काशी-मथुरा की मस्जिदों (Mosques of Kashi-Mathura) का मुद्दा जहां इन दिनों सुर्खियों में है
एम हसन |
काशी-मथुरा की मस्जिदों (Mosques of Kashi-Mathura) का मुद्दा जहां इन दिनों सुर्खियों में है, वहीं इसी बीच लखनऊ की टीले वाली मस्जिद (Teele Wali Masjid) का मामला भी तूल पकड़ने लगा है. ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Masjid) की तर्ज पर इस मस्जिद का भी सर्वे कराने की मांग की जा रही है. 2013 से लंबित इस याचिका पर अतिरिक्त जिला न्यायाधीश कल्पना वर्मा को दलीलें सुनने के बाद फैसला देना है. बीजेपी विधायक डॉ नीरज बोरा ने यूपी विधानसभा में यह मुद्दा उठाते हुए 'लक्ष्मण टीला' से 'अवैध निर्माण' को हटाए जाने की मांग रखी है. डॉ. बोरा ने सदन को बताया कि लक्ष्मण टीला का महत्व भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्मण के साथ जुड़ा हुआ था और हिंदू समुदाय का इस ऐतिहासिक स्थान से भावनात्मक लगाव है.
डॉ. बोरा ने जानकारी दी कि इस टीले को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के तहत पंजीकृत किया गया था. इसी के साथ उन्होंने मांग रखी है कि इस अत्यधिक प्रतिष्ठित स्थान से 'अवैध संरचना को हटाकर' इसे इसका पौराणिक धार्मिक गौरव वापस लौटाना चाहिए. अखिल भारतीय हिंदू महासभा की ओर से 22 मई को 'लक्ष्मण टीला मुक्ति संकल्प यात्रा' के बैनर तले एक विरोध मार्च निकालने की योजना बनाई थी, लेकिन लखनऊ प्रशासन ने इसकी अनुमति नहीं दी. उत्तर प्रदेश की राजधानी में कई हिंदू दक्षिणपंथी समूह मांग कर रहे हैं कि टीले वाली मस्जिद को हटाकर लक्ष्मण टीला वापस उन्हें सौंप दिया जाना चाहिए. उनका दावा है कि लक्ष्मण टीले के असली स्वरूप को मुगलों ने नष्ट कर दिया था.
लखनऊ की टीले वाली मस्जिद से जुड़ा विवाद दशकों पुराना है
हालांकि, मौलाना फजलुर-रहमान के बेटे मौलाना फजलुल मन्नान, जो असफी इमामबाड़ा के ठीक सामने बने मस्जिद परिसर का रखरखाव कर रहे हैं, दक्षिणपंथी समूहों के दावे को निराधार बताते हैं. उनका दावा है कि पहले भी यह जगह मुस्लिम समुदाय की थी और इसे साबित करने के लिए उनके पास 300 साल पुराने दस्तावेज का रिकॉर्ड भी है. वहीं डॉ. वीके श्रीवास्तव, राम रतन मौर्य, वेद प्रकाश त्रिवेदी, चंचल सिंह, दिलीप साहू, स्वतंत्र कुमार त्रिपाठी और धनवीर सिंह जैसे याचिकाकर्ताओं ने दावा किया है कि लक्ष्मण टीला पर पहले 'टीलेश्वर महादेव' का मंदिर भी था.
इस दावे के साथ ही याचिकाकर्ताओं ने अपील की है कि इस जगह पर हिंदुओं को पूजा करने की अनुमति दी जानी चाहिए. हिंदू महासभा का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील शिशिर चतुर्वेदी ने कहा है कि इससे पहले कि टीले वाली मस्जिद में मौजूद हिंदू धर्म के चिन्हों को नष्ट कर दिया जाए, हम मस्जिद के सर्वेक्षण की मांग करते हैं. मूल रूप से वकील हरि शंकर जैन ने 2013 में लखनऊ सिविल कोर्ट में मस्जिद के सर्वेक्षण की मांग करते हुए मामला दायर किया था. बता दें कि ज्ञानवापी और मथुरा मामलों में हरि शंकर जैन और उनके पुत्र विष्णु शंकर जैन ही याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं.
लखनऊ की टीले वाली मस्जिद में दिवंगत मौलाना फजलुर रहमान के पूर्वज शाह पीर मोहम्मद की मजार भी बनी हुई है. लखनऊ की टीले वाली मस्जिद से जुड़ा विवाद दशकों पुराना है और शहर के इतिहास की गूढ़ जानकारी रखने वाले बीजेपी के वरिष्ठ नेता स्वर्गीय लालजी टंडन ने अपनी किताब अनकहा लखनऊ में भी इसका जिक्र किया है. अपनी किताब में उन्होंने मुस्लिम समुदाय पर भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्मण से शहर का नाता तोड़ने का आरोप लगाया था. दिवंगत नेता टंडन ने अपनी किताब लिखा है कि मुगल सम्राट औरंगजेब के शासनकाल के दौरान राज्य की राजधानी की सबसे बड़ी सुन्नी मस्जिद का निर्माण लक्ष्मण टीला पर किया गया था, जो भगवान राम के भाई लक्ष्मण के नाम पर बनाया गया एक ऊंचा मंच था. किताब इस वजह से राजनीतिक विवाद में भी घिर गई थी.
विवाद बढ़ता जा रहा है
इस महीने की शुरुआत में, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का स्वागत करते हुए ट्वीट किया था – शेषावतार भगवान लक्ष्मण की पावन नगरी लखनऊ में आपका स्वागत और अभिनंदन है. उनके इस ट्वीट के बाद से सरकार की ओर से लखनऊ का नाम बदलकर लक्ष्मणपुरी करने की योजना के बारे में भी अटकलें लगाई जा रही हैं. इस मुद्दे ने जुलाई 2018 में एक दिलचस्प मोड़ तब लिया था, जब बीजेपी नियंत्रित लखनऊ नगर निगम ने टीले वाली मस्जिद के बाहर के चौराहे पर लक्ष्मण जी की एक मूर्ति स्थापित करने का फैसला किया था. मेयर संयुक्ता भाटिया ने इस फैसले को लखनऊ और लक्ष्मण जी के संबंध को फिर से स्थापित करने का एक प्रयास बताया था.
हालांकि मूर्ति स्थापित करने का निर्णय अभी भी लंबित है, लेकिन मुस्लिम मौलवियों ने इसका कड़ा विरोध किया था. उनका कहना है कि पूरे क्षेत्र को नमाजियों के लिए बंद कर देने से उनके समुदाय के लोगों को अलविदा और ईद की नमाज अता करने में परेशानी होगी. मस्जिद के इमाम शाह फजलुल मन्ना का कहना है कि वह मूर्ति की स्थापना के खिलाफ नहीं हैं लेकिन मस्जिद के बाहर इसे लगाने से नमाजियों को असुविधा होगी. उनका कहना है कि अलविदा और ईद की नमाज इस मस्जिद के आसपास के करीब एक किलोमीटर के क्षेत्र में लंबे समय से अता की जा रही है, लिहाजा नमाजियों की सुविधा का ध्यान रखते हुए इस एरिया को खुला ही रखा जाना चाहिए.
सोर्स- tv9hindi.com
Rani Sahu
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