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By: divyahimachal
तबाही के बाद सुधार की समीक्षा का अर्थ यह नहीं कि आलोचना के कक्ष में बैठकर सियासत की जाए या सोशल मीडिया के ज्ञान में नागरिक समाज अपनी प्राथमिकताएं गिनने लगे। सर्वप्रथम हिमाचल में वित्तीय कटौतियों के लिए सर्वानुमति बनानी पड़ेगी और इसके लिए प्रतिपक्ष को अपना हालिया रवैया बदलना पड़ेगा, जबकि सत्ता को भी सहमति के वातावरण में कुछ ऐसे कदम लेने पड़ेंगे, जो सामान्यता इतने सरल नहीं होते। सबसे अहम व प्राथमिक कार्य सडक़ों की बहाली है और सेब आर्थिकी को पटरी पर लाने की मशक्कत में राज्य के संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल यही होगा। जाहिर तौर पर इस दौरान नए सरकारी भवनों व ऐसी तमाम परियोजनाओं को कुछ समय तक रोकना होगा ताकि सबसे पहले तबाही के जख्म मिटाए जा सकें। यह तबाही एक तरह से हमारे पतन की निशानी है तथा सियासी प्राथमिकताओं की खुशफहमी भी। इस दौरान प्रगति के कई साल अगर बर्बाद हुए, तो यह जांचने-परखने का समय है। ऐसा नहीं है कि हर जगह सरकार असफल हुई, बल्कि इतना जरूर है कि हमने विध्वंस के रास्ते चुन लिए। मुश्किल व अनिवार्य विकल्प चुनने के बजाय अतीत के सही रास्ते भी छोड़ दिए। हमारे भीतर आचार-व्यवहार व अतिक्रमणकारी स्वभाव का माफिया पैदा हो गया। जरूरत से ज्यादा इमारतें, जरूरत से ज्यादा सडक़ें और जरूरत से ज्यादा निजी वाहनों की खरीददारी ने हमारी प्राथमिकताओं को पागल बना दिया है। यह सारा विकास कहीं न कहीं पागलपन बना, इसलिए मौसम पगला गया। हिमाचल की त्रासदी का व्यापक अध्ययन लाजिमी हो जाता है ताकि भविष्य को अलग ढंग से देखा जाए।
हमने बाजार, व्यापार, बस्तियां, पर्यटन और सरकारी प्रदर्शन को जिस हालात तक पहुंचा दिया है, उसके खतरे समझने होंगे। कुछ लोग यह समझने की गलती कर रहे हैं कि शिमला, कुल्लू व मंडी जिलों में ही गड़बड़ी हुई। ऐसा मानना गलत आकलन है, क्योंकि पूरे प्रदेश में दस हजार के करीब घर व अन्य भवन किसी न किसी तरह क्षतिग्रस्त हुए हैं। अगर शिमला में इमारतों के ढहने की झड़ी लगी, तो कई गांवों का अस्तित्व मिट गया। ऐसे में राजधानी बदलने की बहस के बजाय यह सोचना होगा कि हमने शहरीकरण को किस हद तक नजरअंदाज किया। लगातार चार दशक तक टीसीपी कानून को अक्षम बनाए रखा, जबकि शहरी विकास योजनाओं से गांवों को बाहर करने की दौड़ में कई नेता लगे रहे। पाठकों को याद होगा कि हमने हमेशा पूरे हिमाचल में इस कानून को लागू करने की सिफारिश की ताकि गांव भी व्यवस्थित विकास की शर्तें पूरी करें। इसके लिए प्रदेश में एक दर्जन विकास प्राधिकरण के तहत ग्रामीण एवं शहरी विकास के बीच सामंजस्य तथा नागरिक सुविधाओं में इजाफा किया जा सके। प्रदेश के हर शहर में कम से कम चार खुले मैदान विकसित करके ऐसी आपदाओं के वक्त राहत एवं बचाव कार्यों के लिए एक स्थायी समाधान उपलब्ध होगा। प्रदेश की खनन नीति का नया रोडमैप तैयार करना होगा और हर खड्ड, नदी व कूहल का तटीकरण तथा उसके जल बहाव को वार्षिक रूप से तैयार करना होगा। अब समय आ गया है जब बरसात से पहले पूरे प्रदेश के महकमों के अलावा स्थानीय निकायों को जल निकासी के सारे इंतजाम करने होंगे। प्रदेश को अपनी जलविद्युत नीति में सुधार के अलावा तमाम परियोजनाओं की मानिटरिंग करनी पड़ेगी। बारिश के दौरान चेतावनी सिस्टम के लिए एक रूपरेखा बनानी होगी ताकि नागरिक भी अपनी जिम्मेदारी समझें। अब यह स्वीकार करने का समय है कि सभी सामूहिक रूप से इस बर्बादी के पीछे अपनी-अपनी गलती स्वीकार करें और आइंदा कानून के दिशा निर्देशों का सौ फीसदी पालन करें।
Rani Sahu
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