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नीतियों के चलते देश में रोजगार बचा ही नहीं है।
राजनीतिक उत्सव के इस दौर में भारत में मौजूद भयंकर बेरोजगारी पर किसी बड़ी चर्चा का न चलना चिंता का विषय है। हाल ही में केंद्र सरकार ने संसद को बताया कि पिछले आठ सालों में 22.05 करोड़ युवाओं ने नौकरी के लिए फॉर्म भरा, जिनमें से मात्र सात लाख को नौकरी मिल पाई। मतलब 1,000 लोगों ने नौकरी मांगी, तो उसमें सिर्फ तीन को नौकरी मिली। इसका एक मतलब यह भी है कि 22 करोड़ में से 21 करोड़ 93 लाख युवाओं ने प्रयास किया, लेकिन वे बेरोजगार हैं।
इस आंकड़े से आप देश में बेरोजगारी का अंदाजा लगा सकते हैं। बीते लोकसभा चुनाव के पहले सरकार ने देश में बेरोजगारी का आंकड़ा छिपाने का प्रयास किया, लेकिन चुनाव संपन्न होते ही यह आंकड़ा बाहर आ गया। देश में 45 साल की बेरोजगारी का रिकॉर्ड टूट चुका था। यह कोरोना महामारी आने के पहले हुआ। जब कोरोना आया, तो प्रधानमंत्री जी ने अचानक लॉकडाउन का एलान कर दिया और पूरा देश जहां-तहां थम गया। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकनॉमी (सीएमआईई) के मुताबिक, इस फरमान के अगले हफ्ते में 12 करोड़ लोग बेरोजगार हुए थे।
यह आंकड़ा स गठित और असंगठित, दोनों क्षेत्रों का है। बीते जून महीने में ही इस संस्था ने बताया कि देश भर में 1.3 करोड़ लोग बेरोजगार हो गए। शहरों में बेरोजगारी 7.8 प्रतिशत है, जबकि गांवों में 8.0 प्रतिशत है। इसी संस्था के मुताबिक, पिछले पांच सालों में नौकरी न मिलने से निराश होकर 45 करोड़ लोगों ने नौकरी तलाश करना ही छोड़ दिया। देश में कुल 90 करोड़ आबादी रोजगार के योग्य है, जिनमें से आधे लोग काम की तलाश ही छोड़ चुके हैं। जनता में व्याप्त यह निराशा आने वाले खतरनाक भविष्य का संकेत है।
इसमें सबसे चिंता की बात यह है कि यदि ऐसे ही हालात रहे, तो दुनिया में सबसे ज्यादा कामकाजी आबादी के बावजूद भारत तरक्की का मौका गंवा देगा, क्योंकि हमारे देश में सबसे ज्यादा युवा तो हैं, पर उनके पास काम के मौके नहीं हैं। इधर 'अग्निवीर' बनाने वाली अग्निपथ योजना कहती है कि हर साल जितने युवा भर्ती होंगे, उनमें से 25 प्रतिशत तक को चार साल बाद स्थायी किया जाएगा, बाकी को रिटायर कर दिया जाएगा। चार साल बाद रिटायर होने वाले अग्निवीरों को दूसरे विभागों में नौकरी देने का वादा भ्रामक ही है।
पिछले आठ साल में केंद्र सरकार ने मात्र 38,336 पूर्व सैनिकों को नौकरी दी है। देश में पूर्व सैनिकों की संख्या लाखों में है। अगर उन्हें आरक्षण का प्रावधान होने के बाद भी अब तक नौकरी नहीं दी गई, तो अग्निपथ को लेकर देश के युवाओं को क्यों भरोसा करना चाहिए? अब सरकारी बैंकों में भी इसी किस्म की व्यवस्था लागू करने की तैयारी की जा रही है। यह चोर दरवाजे से बैंकों के निजीकरण की योजना है। सेना, बैंक और रेलवे वगैरह ऐसे संस्थान हैं, जो बड़े पैमाने पर रोजगार देते हैं, लेकिन अब इन सभी विभागों पर निजीकरण का संकट मंडरा रहा है।
हाल में आरबीआई ने अपने रिसर्च बुलेटिन में सरकार को आगाह किया कि बैंक निजीकरण अर्थव्यवस्था में तबाही ला सकता है, लेकिन 24 घंटे के अंदर आरबीआई को अपना यह बयान वापस लेना पड़ा। यह सरकारी भय को दर्शाता है। एसएससीजीडी 2018 के अभ्यर्थी लगभग ढाई महीने से नागपुर से दिल्ली पैदल मार्च कर रहे हैं। उन्होंने 2018 में परीक्षा दी और प्रक्रिया पूरी होते-होते 2021 आ गया। कुल 60,210 भर्ती निकाली गई थी, लेकिन नियुक्ति सिर्फ 55,913 को दी गई। परीक्षार्थी बाकी बचे पदों को भरने की मांग कर रहे हैं।
इन युवाओं ने एक साल तक जंतर-मंतर पर प्रदर्शन किया और लगभग दो महीने से मार्च कर रहे हैं। इनकी बात सुनने के बजाय उन्हें हिरासत में लेने जैसा रवैया अपनाया गया। बाकी सभी भर्तियों का भी यही हाल है। पहले भर्ती नहीं निकलती, भर्ती निकलती है तो परीक्षा नहीं होती, परीक्षा होती है तो पेपर लीक हो जाता है, सब हो गया तो नियुक्ति लटक गई और नियुक्ति हुई तो पद घटा दिए। असली सवाल है कि ऐसा हो क्यों रहा है?क्योंकि सरकार के आर्थिक कुप्रबंधन और नीतियों के चलते देश में रोजगार बचा ही नहीं है।
सोर्स: अमर उजाला
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