सम्पादकीय

एक शिष्य की गुरु को भावभीनी श्रद्धांजलि‍...

Rani Sahu
4 Dec 2021 4:29 PM GMT
एक शिष्य की गुरु को भावभीनी श्रद्धांजलि‍...
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मैं कॉलेज के जमाने से 'परख' और World this week देखा करता था और एक सपना था

मनोरंजन भारती मैं कॉलेज के जमाने से 'परख' और World this week देखा करता था और एक सपना था कभी इनसे मिलूं.. फिर IIMC में चयन हो गया. साल 1994 की बात है IIMC से पास करने के बाद मौका था नौकरी ढूंढने का, पता चला कि विनोद दुआ और टाइम्‍स ऑफ इंडिया के दिलीप पडगांवकर ने मिल कर एक कंपनी बनाई है जो दूरदर्शन के लिए प्रोग्राम बनाएंगे.

विनोद दुआ और दिलीप पडगांवकर जैसे लेगों ने एक कंपनी बनाई थी APCA जो किन्‍हीं कारणों से चली नहीं. फिर मुझे मौका मिला दुआ सर के साथ काम करने का. जबकि मेरे कई दोस्त अलग-अलग जगह चले. मेरे रूम मेट नीरज भी पडगांवकर की नई कंपनी APCA में चले गए लेकिन मैंने मन बनाया हुआ था कि हिंदी पत्रकारिता में काम करना है तो विनोद दुआ के साथ ही करूंगा और मैं परख में आ गया.
पहले कई महीने रिसर्च करता रहा, फिर पहली स्टेरी मिली वो भी टाडा पर. मैंने पूरी मेहनत करके ऐसी स्टोरी की जो दूरदर्शन को पसंद नहीं आई. चुकिं 'परख' दुरदर्शन पर आता था इसलिए कहा गया कि काट छांट करें. फिर दुआ सर ने स्टोरी दुबारा एडिट की, फिर वो टेलीकास्ट हुई.
हर शुक्रवार को 'परख' का टेप जाने के बाद पार्टी होती थी. खाने के बड़े शौकीन थे. सबसे पहले निहारी खाने का सौभाग्य उनके पास ही मिला. घर भी बुलाते थे, खुद बना के खिलाते थे. संगीत के गुरु थे, खुद गाते थे साथ में चिन्ना मैम भी, जो तमिलियन थीं. दोनों हिंदी गाने बहुत ख़ूबसूरत अंदाज में गाते थे. मैंने देखा जब नुसरत फतेह अली खान भारत आए थे तो केवल परख को अनुमति थी, तीन गाने शूट करने की. फिर दुआ सर ने नुसरत फतेह अली खान के साथ एक अलग कॉन्‍सर्ट किया था जिसमें 'परख' के सभी लोगों को बुलाया. दुआ सर की वजह से नुसरत साहब को सामने से सुनने का सुखद अनुभव हुआ. पंजाबी और हिंदी गानों को खूब पसंद करते थे और बड़े सुर में गाते थे.
फिर जब 'परख' बंद हुआ तो मैं उनके साथ NDTV आ गया. Good Morning India में. यादों का सिलसिला खत्म नहीं हो रहा मगर उन्होंने IIMC से पास हुए एक बच्चे को सिखाई थी कि जैसे ही कैमरा और लाईट ऑन हो तो सवाल वही पूछना जो तुम पूछना चाहते हो और सवाल चिल्ला कर नहीं बातचीत के लहजे में मुस्कुराते हुए, जैसे तुम गेस्ट से बातचीत कर रहे हो. उनकी ये बात मैं अभी भी फॉलो कर रहा हूं. यही बात NDTV में भी सिखाई गई. दुआ सर, आज आप नहीं हैं मगर आप का नाम देश के टेलीविजन इतिहास में लिखा जाएगा. जो सफर 'जनवाणी' से शुरू हुआ वो जारी रहेगा. सवाल तो पूछना ही है, आपके शिष्य होने के नाते हम ये करते रहेंगे. आपके जाने के साथ पत्रकारिता के उस युग का अंत हो गया जो कठिन सवाल पूछने से डरता नहीं था, भले ही मुकदमे हो जाएं. गोदी मीडिया के इस युग में जब चाटुकारिता पत्रकारिता हावी है, दुआ सर आप बड़ी शिद्दत से याद किए जाएंगे. एक शिष्य होने के नाते आपको भावभीनी श्रद्धांजलि‍.
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