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सन 2022 को समूची दुनिया के लोग अभूतपूर्व उम्मीदों के वर्ष के तौर पर देख रहे हैं
शशि शेखर। सन 2022 को समूची दुनिया के लोग अभूतपूर्व उम्मीदों के वर्ष के तौर पर देख रहे हैं। मैं यहां 'अभूतपूर्व' शब्द का इस्तेमाल जान-बूझकर कर रहा हूं, क्योंकि अब तक दुनिया की तीन सबसे बड़ी आफतों- स्पेनिश फ्लू, प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध के बाद निराशा का माहौल था, पर पिछले वर्ष कोरोना के कहर के बाद दुनिया जैसे खुद को नई चुनौती के लिए तैयार किए बैठी है।
कोरोना पिछले महीने से अपने नए वेरिएंट ओमीक्रोन के जरिये फिर से झपट्टा मार रहा है, पर वैज्ञानिक हलकों में तय माना जा रहा है कि इस वर्ष यह 'पैंडेमिक' से 'एंडेमिक' में तब्दील हो जाएगा। उम्मीद है कि इसी वर्ष बचाव की गोलियां भी बाजार में उपलब्ध हो जाएंगी। इसी के साथ आर्थिक पुनरोत्थान का दौर भी जोर पकड़ता जाएगा। इसके साथ ही तय हो जाएगा कि दुनिया पुराने ढर्रे पर चलेगी या बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपनी रीति-नीति में बदलाव करेंगी? पिछले वर्ष समूची दुनिया की आपूर्ति व्यवस्था बाधित हो जाने से जीवन-रक्षक दवाओं से लेकर लग्जरी कारों और घड़ियों तक का निर्माण ठप पड़ गया था। ठप पड़ते उत्पादन से चिड़चिड़ाए वॉक्सवैगन के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और जर्मनी की तत्कालीन चांसलर एंजेला मर्केल ने कहा था कि हमें चीन-भारत की फैक्टरियों से निर्भरता खत्म करनी पडे़गी।
यही वजह है कि तमाम विकासशील देश अपने संसाधनों में अपनी आबादी को कैसे खुशहाल रखें की जुगत पर माथापच्ची कर रहे हैं। भारत बहुरंगी जलवायु और विशाल आबादी वाला मुल्क है। यह स्थिति हमें आत्मनिर्भर बनाने के लिए आदर्श है। यहां मैं याद दिलाना चाहूंगा कि 1757 में जब रॉबर्ट क्लाइव ने मुर्शिदाबाद की लड़ाई जीतकर भारत पर ब्रिटिश हुकूमत का रास्ता साफ कर दिया था, तब समूची दुनिया की विकास दर में हमारी हिस्सेदारी लगभग 27 फीसदी थी। अगर इसमें चीन को मिला लें, तो समूची दुनिया की विकास दर के लगभग आधे पर हिन्दुस्तानियों और चीनियों का कब्जा था। क्या कालचक्र अब उल्टी दिशा में घूमने वाला है?
अमेरिका में 'फ्यूचर फोरम' के एक ताजा सर्वे में पाया गया है कि अब दफ्तरों की तस्वीर पहले जैसी नहीं रह जाएगी। शोध के अनुसार, सिर्फ तीन प्रतिशत अश्वेत कामगार पूर्णकालिक रूप से दफ्तर लौटना चाहते हैं, जबकि श्वेत कामगारों में यह संख्या 21 प्रतिशत पाई गई। 97 फीसदी अश्वेत कामगार दूरस्थ केंद्रों से नौकरी के मॉडल विकसित करने की अपेक्षा कर रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि 2022 में लचीला रुख रखने वाले दक्ष नौजवानों को काम अधिक मिलेंगे और उनकी तरक्की होगी। इससे कार्यस्थलों पर लैंगिक, जातीय और उम्रगत विषमता बढ़ सकती है। यही नहीं, वास्तुविद अब 20 मिनट की दूरी में सभी सुविधाओं से लैस आबादियों की वकालत कर रहे हैं। ये रिहाइशें आत्मनिर्भर होंगी। कुछ समाजशास्त्री इस अवधारणा से असहमत हैं। उनका मानना है कि इससे एकाकीपन को बढ़ावा मिलेगा। पिछला साल वैसे भी अवसाद और आत्महत्याओं पर सवार होकर आया था। यह साल अंतरिक्ष में एक नई होड़ का भी होगा। स्पेसएक्स, ब्लू ओरिजिन और वर्जिन गैलेक्टिक जैसी अमेरिकी कंपनियों ने तो पहले से ही इस क्षेत्र में प्रतिस्पद्र्धा को हवा दे रखी है, पर चीन ने पिछले महीने सबको चौंका दिया। उसकी स्पेस शटल में मौजूद अंतरिक्ष यात्रियों ने पृथ्वी की कक्षा से बहुत परे जाकर स्कूली बच्चों को संबोधित किया। यह अपने आप में अनूठा प्रयास था। अन्य देशों के भी बहुत से संस्थान इस दिशा में काम कर रहे हैं, पर तय है कि चीन और अमेरिका के बीच पनपते शीतयुद्ध में अंतरिक्ष की आपाधापी भी योगदान करेगी।
Rani Sahu
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