सम्पादकीय

107 पार भी जाना है

Rani Sahu
9 Oct 2023 6:58 PM GMT
107 पार भी जाना है
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By: divyahimachal
हम आज हांगझाउ, चीन एशियाई खेलों का उपसंहार लिख रहे हैं। चीन और जापान विश्व स्तर पर भी खेलों के ‘चैम्पियन देश’ हैं। हम उनकी होड़ में नहीं हैं और न ही वह हमारा लक्ष्य होना चाहिए। भारत ने अपनी गरीबी और साधनहीनता के साथ खेल की चुनौतियां देना शुरू किया था। हमने अपने राष्ट्रीय खेल ‘हॉकी’ का स्वर्णिम युग भी देखा और सुना है। उसका पतन भी दुखद रहा है, लेकिन अब ‘एशियाई चैम्पियन’ बनकर हॉकी ने पुराने दौर को जिंदा रखने की कोशिश की है, यह एहसास बेहद सुखद है। भारतीय हॉकी आज विश्व में तीसरे स्थान पर है। ऑस्टे्रलिया को छोड़ कर हमने सभी देशों की हॉकी को परास्त किया है। हमारे खिलाडिय़ों की मेहनत, जुनून और उनका हुनर अब भारत को ‘ओलंपिक चैम्पियन’ भी बनाएगा, ऐसी उम्मीद की जानी चाहिए। क्रिकेट की पुरुष-महिला टीमों को स्वर्ण पदक…बैडमिंटन युगल मुकाबले के चैम्पियन…कबड्डी की दोनों टीमों के गले में ‘पीला तमगा’…कमाल की सटीक तीरंदाजी में ‘स्वर्णिम बौछार’ हुई। इस खेल में भारत ने रिकॉर्ड 9 पदक हासिल किए हैं, जिनमें 5 स्वर्ण पदक शामिल हैं। स्क्वैश में भी भारत ‘स्वर्णिम महारथी’ बना रहा। हमारे अचूक निशानेबाजों ने ‘स्वर्णिम लक्ष्य’ भेदे। सिफ्ट कौर सामरा ने 50 मीटर राइफल स्पर्धा में विश्व कीर्तिमान स्थापित कर नया इतिहास लिखा। रुद्रांक्ष, दिव्यांश और ऐश्वर्य ने भी विश्व कीर्तिमान के साथ भारत को स्वर्ण पदक दिलाया। हमारे खिलाडिय़ों के हिस्से चांदी खूब बरसी है और कांस्य पदक भी गले में सजे हैं। यकीनन यह भारतीय खेल के पुनरोत्थान और ताकत का दौर है।
एशियाई खेलों में भारत ने कुल 28 स्वर्ण पदक समेत 38 रजत और 41 कांस्य पदक जीत कर शतक को भी पार किया है। खेल के अंतिम दिन शनिवार को भारत ने 6 स्वर्ण सहित 12 पदक जीत कर कीर्तिमान बनाया है। 2018 के जकार्ता एशियाड में भारत ने 16 स्वर्ण समेत कुल 70 पदक जीते थे। इस बार हमने 107 पदक हासिल किए हैं। ‘इस बार सौ के पार’ का सूत्रवाक्य भी हमारे खिलाडिय़ों ने जीवंत और साकार कर दिया है। एशियाड के 72 सालों में पहली बार भारत ने शतक पार पदक जीते हैं। यह उपलब्धि आकस्मिक नहीं है। यदि बेटों ने 52 पदक ( 15 स्वर्ण, 19 रजत, 18 कांस्य) जीते हैं, तो बेटियां भी 46 पदकों (9 स्वर्ण, 17 रजत, 20 कांस्य) के साथ पीछे नहीं रही हैं। नौ पदक बेटे-बेटियों ने मिलकर मिश्रित मुकाबलों में भी जीते हैं। हमारे स्वर्णिम खिलाडिय़ों ने विश्व कीर्तिमान भी स्थापित किए हैं। शाबाशी इसकी भी देनी चाहिए कि एशियाई खेलों के पदकवीरों की सूची में अब भारत चौथे स्थान पर रहा। यह उपलब्धि भी 37 लंबे सालों के बाद अर्जित की गई है। बैडमिंटन का उल्लेख खासतौर पर किया जाना चाहिए, क्योंकि सात्विक रांकीरेड्डी और चिराग शेट्टी की जोड़ी अब विश्व में ‘नंबर वन’ हो जाएगी। यह अभूतपूर्व उपलब्धि है। इस जोड़ी ने पहली बार बैडमिंटन में भारत के माथे स्वर्ण-ताज सजाया है।
चीन, जापान, मलेशिया, कोरिया आदि देश एशिया में बैडमिंटन के ‘चैम्पियन गढ़’ रहे हैं। उनकी चुनौतियों को ध्वस्त करके भारतीय जोड़ी ने हमारी झोली में ‘स्वर्ण पदक’ डाला है। अब लक्ष्य को हासिल करके रुकना नहीं है। यह 107 का सम्मानित आंकड़ा सिर्फ ‘अद्र्धविराम’ है। रुककर सोचने, विमर्श करने, रणनीतियां तय करने का समय है। भारत पूरी तरह एक ‘खेल-राष्ट्र’ बनने का माद्दा रखता है। हम नीरज चोपड़ा जैसा विश्व चैम्पियन खिलाड़ी पैदा कर सकते हैं, तो साबले, श्रीशंकर सरीखे पुरुष खिलाड़ी से लेकर हरमिलन बैंस और वेंकटेश तक की बेटी खिलाडिय़ों को भी तैयार किया है। अब उन्हें अंतरराष्ट्रीय मंच और प्रशिक्षण मुहैया कराने की जरूरत है। भारत सरकार और राज्य सरकारें इन राष्ट्र-नायकों की बुनियादी जरूरतें पूरी करें। प्रधानमंत्री मोदी 10 अक्तूबर को अपने आवास पर इन तमाम खिलाडिय़ों से रूबरू मुलाकात करेंगे।
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