- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- मैन्यूफैक्चरिंग हब बने...
जनता से रिश्ता वेबडेस्क : आमतौर पर अगर किसी देश की मुद्रा अन्य देशों की मुद्राओं की तुलना में मजबूत होती है, तो उस देश की अर्थव्यवस्था को बेहतर माना जाता है। आज अमेरिकी डालर को यह रुतबा हासिल है। अमेरिकी डालर को वैश्विक मुद्रा का दर्जा प्राप्त है। अंतरराष्ट्रीय व्यापार में अधिकांश भुगतान अमेरिकी डालर में ही होता है। यही वजह है कि डालर के मुकाबले हमारे देश की मुद्रा रुपये की हैसियत से पता चलता है कि भारतीय मुद्रा मजबूत है या कमजोर। देखा जाए तो साल की शुरुआत से ही रुपया डगमगा रहा है। दस जून को यह 77.85 प्रति डालर के स्तर पर था। अमेरिकी डालर के मुकाबले रुपये में देखी गई यह अब तक की सबसे बड़ी गिरावट है। आंकड़ों के अनुसार, आजादी के बाद से हमारा रुपया डालर के मुकाबले लगभग 20 गुना नीचे लुढ़का है। वर्ष 1948 में एक डालर चार रुपये में मिलता था। तब देश पर कोई कर्ज भी नहीं था। वर्ष 1951 में जब पहली पंचवर्षीय योजना लागू हुई तो सरकार ने विदेश से कर्ज लेना शुरू किया। उसके बाद से डालर के मुकाबले रुपये की कीमत भी लगातार कम होने लगी। कालांतर में रुपये की हैसियत में उत्तरोत्तर गिरावट का एक प्रमुख पड़ाव 1991 में भी आया, जब भारत सरकार ने आर्थिक संकट के दौर में रुपये में एकबारगी ही करीब 20 प्रतिशत का अवमूल्यन कर दिया था। उसका उद्देश्य देश से होने वाला निर्यात बढ़ाना था।
राइटर-brajeshkumartiwari
सोर्स-jagran