सम्पादकीय

समन्वय का समय

Triveni
9 April 2021 12:45 AM GMT
समन्वय का समय
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भारत में कोरोना संक्रमण के आंकडे़ पुराने तमाम रिकॉर्ड ध्वस्त करते आगे बढ़ रहे हैं, तो यही समय है,

भारत में कोरोना संक्रमण के आंकडे़ पुराने तमाम रिकॉर्ड ध्वस्त करते आगे बढ़ रहे हैं, तो यही समय है, हमें परस्पर सहयोग और संवाद की प्रक्रिया तेज कर देनी चाहिए। इसी दिशा में प्रधानमंत्री की ताजा पहल को देखा जाना चाहिए। संवाद के जरिए परस्पर विश्वास बढ़ाते हुए ही संघर्ष की बुनियाद तैयार होती है। कोई ऐसी आपदा नहीं, जिससे इंसानियत जीती न हो, इस आपदा से भी हम मिलकर ही दो-दो हाथ कर सकते हैं। भारत के लिए ये परीक्षा के पल हैं, इसकी सफलता इसी बात पर टिकी है कि सरकारों के बीच समन्वय कैसा है। इस मोर्चे पर प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रियों की बैठकों का विशेष महत्व है, जिनसे न सिर्फ कोरोना योद्धाओं, बल्कि आम लोगों का भी मनोबल बढ़ता है। बेशक, ऐसी कोई जादू की छड़ी नहीं, जिसे घुमाते ही कोरोना का लोप हो जाए, लेकिन अगर हम सजग हुए, एक-दूसरे के स्वास्थ्य के प्रति संवेदनशील हुए, तो हम इस जंग को जल्दी जीत लेंगे। इस सप्ताह की शुरुआत में ही प्रधानमंत्री ने देश में कोविड टीकाकरण कार्यक्रम की समीक्षा के लिए एक उच्च-स्तरीय बैठक की अध्यक्षता की थी, अब उन्होंने मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक की है, तो समस्या की गंभीरता को समझा जा सकता है। समस्या यह है कि देश में अनेक स्तरों पर बैठे कई लोग समस्या से मुंह चुरा रहे हैं। बढ़ते कोरोना की वजह से कई ऐसे सवाल हैं, जो लोगों के बीच चर्चा में हैं, जिनका जवाब सरकार को सतर्कता के साथ देना चाहिए। एक सवाल तो लोगों के बीच बहुत आम है कि जिन राज्यों में चुनाव हैं, क्या वहां कोरोना नहीं है? क्या चुनाव या चुनाव प्रचार के दौरान मास्क जरूरी नहीं है? क्या पश्चिम बंगाल, असम, केरल, तमिलनाडु में कोरोना नहीं है? प्रधानमंत्री के स्तर पर होने वाली बैठकों में न सही, मंत्री और अधिकारी स्तर की बैठकों में इन सवालों के जवाब खोजना और लोगों तक जवाब पहुंचाना अपरिहार्य हो गया है। जब कोरोना के मामले बढ़ेंगे, तब संवाद और समीक्षा की जरूरत भी बढ़ेगी। सरकारों के बीच मतभेद भी पैदा होंगे, लेकिन सावधान, कहीं भी राजनीति के संकेत नहीं दिखने चाहिए। मांग और शिकायतें तो सही हैं, हर व्यवस्था में होती हैं, लेकिन गंभीर दोषारोपण की देश में बहुत बुरी व्यंजना होगी। समय महामारी से लड़ने का है, किसी सरकार से लड़ने या राजनीति करने का नहीं है। यह अच्छा है कि सरकार सतर्क है कि लोगों के बीच अनावश्यक भय न फैले, लेकिन भय के हालात न पैदा होने देना सभी सरकारों की प्राथमिकता होनी चाहिए। राज्यों को अपनी शिकायत व्यवस्था के तहत उठानी चाहिए और प्रोटोकॉल के तहत केंद्र सरकार को यथोचित जवाब देना चाहिए। यह समय लॉकडाउन या कफ्र्यू से पीड़ित हमारे शहरों के जरूरतमंद लोगों की खोज-खबर लेने का भी है, जिनकी कमाई पर फिर मार पड़ने लगी है। सियासत सूझने-बूझने से पहले भूखे और जरूरतमंद लोगों का ध्यान आना जरूरी है। कोरोना संक्रमण आज जिस स्तर पर है, उसकी कल्पना नहीं की गई थी। विशेष रूप से महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, पंजाब, मध्य प्रदेश और गुजरात में बचाव के कार्य युद्ध स्तर पर चलाने चाहिए। ये ऐसे राज्य हैं, जिन्हें केंद्र के ज्यादा समर्थन-सहयोग की जरूरत है। जान गंवाने वालों की संख्या भी व्यथित करने लगी है। सियासत के लिए तो आगे खूब मौके मिलेंगे, लेकिन अभी महामारी को धूल तो चटा दें।



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