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एनजीटी ने गुरुग्राम, फरीदाबाद और मेवात क्षेत्र के पांच सौ अड़तालीस वर्ग किलोमीटर में खनन को पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया था। अरावली की हरियाली लौटाने की दृष्टि से न्यायाधिकरण ने बड़े पैमाने पर पेड़ लगाने को कहा था और साथ ही क्षेत्र में कचरा फेंकने पर रोक भी लगा दी थी। लेकिन सरकार की लापरवाही और खनन माफिया के दबदबे से ये दोनों ही काम नहीं हो पाए और अवैध खनन आज भी जारी है।
देश के ज्यादातर राज्यों में अवैध उत्खनन का धंधा जोरों पर है। इसमें लगे माफिया इतने ताकतवर होते जा रहे हैं कि बड़े अधिकारियों की हत्या करने में तक में नहीं हिचकिचाते। शायद ही कोई ऐसा साल गुजरता हो जब ऐसे मामलों में पुलिस और प्रशासन को लोगों पर हमले और उन्हें बेदर्दी से मार डालने की घटनाएं सामने न आती हों। ताजा उदाहरण हरियाणा के नूंह में एक पुलिस उपाधीक्षक की डंपर से कुचल कर की गई हत्या है। कानून के शासन को यह चुनौती अरावली की उन पर्वत शृंखलाओं में मिल रही है, जो हरियाणा राज्य के साथ दिल्ली और इससे सटे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में आती हैं। लंबे समय से सर्वोच्च न्यायालय की निगरानी में इस अवैध उत्खनन पर नजर रखी जा रही है। इसके बावजूद दुनिया की सबसे पुरानी पर्वत शृंखला को अपना अस्तित्व बचाना मुश्किल हो रहा है।
शीर्ष न्यायालय के प्रतिबंध के बावजूद पिछले आठ साल में खनन माफिया ने चार सौ मीटर व्यास और साढ़े तीन सौ मीटर ऊंचे इकतीस पहाड़ों को जमींदोज कर डाला। ये पहाड़ नूंह के तावड़ू कस्बे में पंचगांव और चिला गांव में फैले थे। यहां से निकाले गए पत्थर की खपत हरियाणा, राजस्थान और दिल्ली में भवन और सड़क निर्माण में होती है। गुरुग्राम को आधुनिक शहर बनाने के लिए दस हजार एकड़ प्राकृतिक संरक्षण क्षेत्र को नेस्तनाबूद कर दिया गया। याद किया जाना चाहिए कि अवैध खनन को लेकर दस साल पहले भी मध्यप्रदेश के मुरैना में एक आइपीएस अधिकारी की ट्रैक्टर से कुचल कर हत्या कर दी गई थी। किसी तरह यह अवैध खनन रुके, इस पवित्र उद्देश्य को लेकर राजस्थान के भरतपुर में साधु-संतों का एक समूह पिछले डेढ़ साल से आंदोलन कर रहा है। इतने दिनों में भी कोई सुनवाई नहीं होने पर हाल में एक संत ने आत्मदाह तक कर लिया।
ऐसा भी नहीं कि अवैध खनन केवल अरावली की पहाड़ियों में चल रहा है। राजनीतिक और प्रशासनिक संरक्षण से खनन माफिया की जड़े देशभर में गहरी होती जा रही हैं। विडंबना तो यह कि इस पर अंकुश की बजाय ऐसे नीतिगत फैसले लिए जा रहे हैं, जिससे वैध-अवैध उत्खनन का दायरा बढ़ता रहे। मुश्किल यह है कि प्राकृतिक संपदाओं के अधिकतम दोहन को आधुनिक एवं आर्थिक विकास का नीतिगत आधार बना लिया गया है। लेकिन भारत में यह संकट दूसरे देशों के मुकाबले कहीं ज्यादा गंभीर रूप ले चुका है। प्राकृतिक संसाधनों का जिस बेरहमी से दोहन जारी है, उस परिप्रेक्ष्य में मौजूदा आर्थिक विकास की निरंतरता तो बनी नहीं रह सकती, बल्कि दीर्घकालिक दृष्टि से देंखे तो विकास की यह आवधारणा उस बहुसंख्यक आबादी के लिए जीने का भयावह संकट खड़ा कर सकती है, जिसकी रोजी-रोटी की निर्भरता ही प्रकृति पर अवलंबित है। इसी खतरे को भांपते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने 2002 में अरावली पर्वत शृृंंखलाओं से उत्खनन पर पूरी तरह प्रतिबंधित लगा दिया था।
jansatta
Admin2
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