सम्पादकीय

बड़ी जीत

Admin2
22 July 2022 8:54 AM GMT
बड़ी जीत
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भारत ने अपना भावी राष्ट्रपति चुन लिया, यह समग्रता में देश के लिए खुशी और उत्सव का समय है। ठीक एक महीने पहले 21 जून को जब भाजपा ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की ओर से पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू के नाम की घोषणा की थी, तभी यह लगभग तय हो गया था कि देश को पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति मिलने जा रही है। इनके नाम की घोषणा से विपक्ष बुरी तरह डगमगा गया, उसमें दरारें दिखने लगीं। राष्ट्रपति उम्मीदवार के रूप में यशवंत सिन्हा को आगे करने वाली तृणमूल कांग्रेस में भी हिचकिचाहट पैदा हो गई। ओडिशा के लिए यह खुशी का मौका था कि पहली बार कोई ओडिया राष्ट्रपति बनने जा रहा था, तो बीजू जनता दल खुलकर द्रौपदी मुर्मू के पक्ष में आ गया। इस बीच महाराष्ट्र में भाजपा विरोधी गठबंधन की सरकार गिर गई और भाजपा के समर्थन से जब सरकार बनी, तब साफ हो गया कि महाराष्ट्र से भी अब द्रौपदी मुर्मू के वोट बढ़ जाएंगे।

ध्यान रहे, राष्ट्रपति चुनाव व उम्मीदवारों के नाम की घोषणा से पहले समग्र विपक्ष का वोट मूल्य सत्तारूढ़ गठबंधन से लगभग डेढ़ प्रतिशत ज्यादा था। मामूली अंतर के बावजूद विपक्ष ने अपने उम्मीदवार यशवंत सिन्हा के पक्ष में जोश दिखाया, तो यह भी भारतीय लोकतंत्र की खूबी ही है। वैसे यह संभावना इतिहास में दर्ज हो गई है कि काश, भाजपा द्रौपदी मुर्मू के नाम की घोषणा पहले कर देती, तो शायद विपक्ष अपनी ओर से किसी उम्मीदवार को आगे ही नहीं करता। इस संभावना या बात का विपक्षी पार्टियों के कुछ नेताओं ने खुलकर इजहार भी किया। खैर, यह भी इतिहास में दर्ज हो गया है कि देश के 15वें राष्ट्रपति के लिए हुए चुनाव में जमकर सियासत हुई। उम्मीदवारों की ओर से नेताओं की तरह कुछ बयानबाजी भी हुई। सत्ता पक्ष ने विपक्ष को सियासी व नैतिक मुश्किल में डाला और आसानी से हरा दिया। यह अफसोस तो हर बार होता है कि काश, राजनीतिक दल राष्ट्रपति चुनने के मोर्चे पर एकमत हो पाते। कम से कम एक आदिवासी महिला को राष्ट्रपति चुनने पर सभी सहमत हो सकते थे, इसके लिए सम्मिलित प्रयास होने चाहिए थे। आजाद देश में केंद्र व राज्यों में चुनावी प्रक्रिया शुरू होने के बाद अब तक केवल एक बार ऐसा हुआ है, 1977 में नीलम संजीव रेड्डी निर्विरोध राष्ट्रपति चुने गए।
अब द्रौपदी मुर्मू 25 जुलाई को अपना कार्यभार संभालेंगी और आजादी के अमृत वर्ष में देश की कीर्तिगाथा में एक नया अध्याय जुड़ जाएगा। देश के आदिवासी समाज ने एक लंबा सियासी सफर तय किया है, उनकी उपलब्धियां कतई कमतर नहीं हैं। भारतीय लोकतंत्र में आदिवासियों की छोटी-बड़ी उपलब्धियों से ही ऐसा समीकरण बना है, जब देश के प्रथम नागरिक के रूप में हम एक आदिवासी महिला को देखेंगे। यह वाकई नया भारत है। संविधान निर्माताओं ने इसी समावेशी भारत की कल्पना की थी, जिसमें हर वर्ग को शीर्ष स्तर पर प्रतिनिधित्व मिलेगा। देश के लगभग 12 करोड़ आदिवासी निस्संदेह गर्व का एहसास करेंगे, वे अपने जीवन में सुधार लाने को प्रेरित होंगे। भारतीय संविधान की असीम संभावनाओं की रोशनी में यह विकास की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित होने का समय है। सर्वोच्च पद का संदेश पूरे देश में साकार होना चाहिए, आदिवासियों या देश की सियासत की यह उपलब्धि केवल सांकेतिक न रह जाए, यह अपने स्तर और अपनी सीमा में रहते अगली राष्ट्रपति को भी सुनिश्चित करना होगा। दुनिया हमारी समृद्ध विविधता के एक नए रूप से रूबरू होने जा रही है।
jansatta
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