सम्पादकीय

कोमल मन के निर्मम फंदे

Admin2
9 July 2022 4:52 AM GMT
कोमल मन के निर्मम फंदे
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जिंदगी जिंदादिली का नाम है। मगर वर्तमान दौर में कुछ लोग एक अजीब बेचैनी में जी रहे हैं। वे जीवन भर भटकते रहते हैं, उन्हें किसी चीज से सुकून नहीं मिलता। प्रेम प्रसंग के चलते आए दिन नौजवान आत्महत्या जैसा कदम उठा रहे हैं। उनकी यह बेचैनी उनकी जान पर बन आती है।जरा-सी तकलीफ हुई नहीं कि मौत के आगोश में समा गए। वे यह तक भूल जाते हैं कि उनके मरने के बाद उनके परिवार का क्या होगा? वे किस दर्द, किस पीड़ा से गुजरेंगे? उन्हें तो सिर्फ याद रहता है तो अपना स्वार्थ। बिछोह के दर्द में ऐसे डूब जाते हैं कि बाकी दुनिया की कोई खबर ही नहीं रहती।

कहने को हम तरक्की की नित नई बुलंदियां छू रहे हैं, लेकिन कितने आश्चर्य की बात है कि इतनी तरक्की के बाद भी दुनिया में हर चालीस सेकंड में एक व्यक्ति अपनी जान दे रहा है। खासकर प्यार में धोखा खाए युवा। ऐसा शायद ही कोई दिन बीतता हो जब प्रेम प्रसंग के चलते युवा अपनी जान कुर्बान न करते हों। हम आधुनिक होने का भले ही कितना ढोंग क्यों न कर लें, जब प्रेम संबंध की बात आती है, तो सारी आधुनिकता धरी की धरी रह जाती है। हमारा अपना ही परिवार उस प्रेम के बंधन में रोड़े डालना शुरू कर देता है।
यहां तक कि समाज भी प्रेम को गलत नजरों से देखना शुरू कर देता है। कई बार तो यही नजर किसी की मौत का कारण बन जाती है। लेकिन समाज को भला किसी की मौत से क्या फर्क पड़ेगा? उन्हें तो अपनी झूठी शान की परवाह रहती है। यही वजह है कि दुनिया में सबसे ज्यादा आत्महत्याएं हमारे देश में होती हैं।जर्नल साइंटिफिक में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन भी आत्महत्या की वजह बन रहा है। वातावरण में बढ़ती नमी और लू आत्महत्या के मामलों के लिए कहीं अधिक जिम्मेदार है। खासकर युवा वर्ग और महिलाएं इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हुए है।
वातावरण में बढ़ती नमी मानसिक स्वास्थ्य पर असर डालती है। वर्तमान दौर में वैश्विक स्तर पर तापमान में वृद्धि हो रही है, उसी के साथ नमी और लू में भी वृद्धि हो रही है। वैज्ञानिकों का मानना है कि हवा में बढ़ती नमी, लू भी घातक असर करती है, क्योंकि इससे पसीना नहीं सूखता है, जिससे हमारा शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है। यही वजह है कि मानसिक अवसाद कहीं अधिक बढ़ रहा है, जिससे युवा पीढ़ी आत्महत्या की तरह बढ़ रही है।
इसके अलावा विश्व स्वास्थ्य संगठन की मानें तो दुनिया में हर साल 7.03 लाख लोग आत्महत्या करते हैं। यानी चार सेकंड में एक व्यक्ति अपनी जान गंवा रहा है। 2019 के आंकड़ों के मुताबिक उन्नीस से पच्चीस साल के युवाओं में आत्महत्या मौत का चौथा सबसे बड़ा कारण रहा है।
जिस उम्र में युवाओं को अपने बेहतर भविष्य का निर्माण करना चाहिए, देश की उन्नति और तरक्की में सहयोग करना चाहिए, उस उम्र में युवा मौत की तरफ जा रहे हैं। यह न केवल परिवार या समाज, बल्कि राष्ट्र के लिए भी दुखदाई है।पिछले कुछ समय के आंकड़ों के मुताबिक आत्महत्या के मामले पहले की तुलना में कहीं अधिक बढ़ गए हैं। आज ऐसा कोई वर्ग नहीं, जहां प्रेम संबंधों के चलते युवा आत्महत्या न कर रहे हों। यहां तक कि अभिनय के क्षेत्र से जुड़े लोग भी दिल टूट जाने के दर्द में जान गंवा बैठते हैं।
दिन मीडिया सुर्खियों में प्रेम प्रसंग के चलते आत्महत्या की खबरें दिखाई देती हैं। हमारा समाज कभी इस बात को गंभीरता से लेता ही नहीं है और न ही सरकार इस ओर कोई ठोस कदम उठाती है।आत्महत्या की प्रवृत्ति जितनी मनोवैज्ञानिक है उतनी ही सामाजिक भी। आत्महत्या को समाज के प्रयासों से रोका जा सकता है। मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि प्रेम में धोखे के चलते युवा अवसाद का शिकार होते हैं। इन युवाओं में एकाकीपन की भावना हावी हो जाती है। वे वास्तविक दुनिया से दूरी बना लेते हैं। यहां तक कि ऐसे युवाओं का परिवार से भी भावनात्मक जुड़ाव कम हो जाता है।
ऐसे युवा अक्सर जिद्दी हो जाते हैं। कई बार नशे के आदी हो जाते हैं। ऐसे लोगों का जिंदगी से मोहभंग हो जाता है और वे आत्महत्या की ओर कदम बढ़ा लेते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि जब एक व्यक्ति आत्महत्या करता है तो उससे जुड़े एक सौ पैंतीस लोगों का जीवन प्रभावित होता है। यह सच है कि आत्महत्या के कारण केवल एक जान नहीं जाती, उससे जुड़े लोग भी मानसिक पीड़ा और दर्द के दलदल में फंसते चले जाते हैं।
भारत में होने वाली आत्महत्याओं की सबसे बड़ी वजह पारिवारिक समस्या भी है। देश में तैंतीस प्रतिशत आत्महत्या की प्रमुख वजह परिवार है। देश में पांच प्रतिशत लोगों की मौत का कारण शादी को माना जाता है। वर्तमान दौर का यह कड़वा सच ही है कि हमारे समाज में शादियां तो भव्य हो रही हैं, लेकिन रिश्तों के प्रति प्रेम और समर्पण अब नहीं दिखता।

लोग छोटी-छोटी बातों में परिवार से अलग हो जाते हैं। यही अकेलापन उन्हें मौत की तरफ ले जाता है। गौरतलब है कि देश में 4.4 प्रतिशत आत्महत्या की वजह प्रेम संबंध है।
राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के 2021 के आंकड़ों पर गौर करें तो 2017 से 2019 के बीच करीब 24,568 युवाओं ने आत्महत्या कर ली। इन मौतों के पीछे का सबसे बड़ा कारण प्रेम प्रसंग था। एक अन्य खबर के मुताबिक पश्चिमी राजस्थान के बाड़मेर जिले में हर तीसरे दिन एक व्यक्ति खुदकुशी कर रहा है। 2016 से 2019 के बीच करीब 484 लोगों ने आत्महत्या की।इन आत्महत्याओं में प्रेमी जोड़े और सामूहिक आत्महत्या करने वालों का आंकड़ा सबसे अधिक था। प्रेम संबंधों में बढ़ती आत्महत्या चिंता का कारण बनती जा रही है। देखा जाए तो वर्तमान दौर में प्रेम के प्रति समर्पण भाव नहीं रहा। यहां तक कि आपसी संवाद भी कम हो रहा है, जिससे रिश्ते में तनाव बढ़ रहा है। समाज में एकल परिवार का चलन बढ़ा है, जिससे लोग रिश्तों को वह अहमियत नहीं देते, जो संयुक्त परिवार में होती थी।इन दिनों फिल्मी सितारे भी आत्महत्या की ओर कदम बढ़ाते देखे जाते हैं। कहने को तो फिल्मी दुनिया चमक-दमक से भरी नजर आती है, लेकिन इस चमक के पीछे का अंधेरा कई बार सितारों को मानसिक अवसाद की ओर धकेल देता है। प्रेम में विफलता उनसे बर्दाश्त नहीं होती। यहां तक कि ये सितारे मौत तक को गले लगा लेते हैं।
पिछले दिनों बांगला फिल्म उद्योग से जुड़ी तीन कलाकार और एक माडल ने आत्महत्या कर अपनी जीवन लीला को समाप्त कर ली। पंद्रह दिनों के बीच चार उभरती अभिनेत्रियों की आत्महत्या ने सबको चकित कर दिया। यह सच है कि बालीवुड की चमक युवाओं को आकर्षित करती आई है। मगर जब सच्चाई से उनका सामना होता है, तो वे भावनात्मक रूप से टूट जाते हैं। मानसिक रोगी बन जाते हैं।
हमारे समाज में मनोरोगियों को एक अलग ही नजर से देखा जाता है। यही वजह है कि अक्सर युवा मानसिक अवसाद को छिपाने का प्रयास करते हैं और समय पर इलाज नहीं करवाने के कारण यह समस्या गंभीर हो जाती है। इस तरह वे धीरे-धीरे मौत की तरह कदम बढ़ा लेते हैं। वर्तमान पीढ़ी को यह समझना होगा कि मरना किसी भी समस्या का हल नहीं हो सकता है।source-jansatta
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