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सशस्त्र बलों को हमारे देश में सबसे विश्वसनीय, ईमानदार और अनुशासित संगठन के रूप में आदर दिया जाता है। राष्ट्र के प्रति उनकी निष्ठा और प्रतिबद्धता पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है। लगभग दो दशक पहले मैंने मुंबई में एक अभिनेता मित्र के साथ एक फिल्म के सेट पर आधा दिन बिताया। वहां मुझे भारत के शीर्ष अभिनेताओं में से एक के साथ बातचीत का अवसर मिला। हम हर तरह की बातें कर रहे थे और हमारी बातचीत राष्ट्रीय चरित्र पर होने लगी, तो उन्होंने कहा कि मुझे लगता है कि हर युवक या युवती को सैन्य जीवन का स्वाद चखना चाहिए, क्योंकि इससे राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण होगा।
सेना आपके व्यक्तित्व को पूर्णता प्रदान करती है। हर किसी के लिए सैन्य प्रशिक्षण प्राप्त करना संभव नहीं था, क्योंकि यह एक महंगा प्रस्ताव था और एक विकासशील राष्ट्र के रूप में हम इसे वहन करने में सक्षम नहीं होंगे और हमने इसी निष्कर्ष के साथ उस पर बातचीत को विराम दिया। हममें से कुछ लोग कहते हैं कि हमारा कोई राष्ट्रीय चरित्र नहीं है और ऐसा कहने वाले पूरी तरह से गलत नहीं हैं। हमने मूल्यों और चरित्र को खिड़की से ऐसे बाहर फेंक दिया है, मानो कुछ हुआ ही नहीं।
युवा बसें जला रहे हैं, मानो कानून या बड़ों या सरकार की उन्हें कोई परवाह नहीं है। पत्थर फेंकना और अजीबोगरीब कारणों से किसी की बर्बर हत्या करना दिमाग को चकरा देता है। खबरों में भी यही सब रहता है। स्कूल छात्रों को अनुशासित करने के लिए जूझ रहे हैं, माता-पिता परेशान हैं, क्योंकि बच्चे उनकी सुनते नहीं और ज्यादातर माता-पिता स्कूली कर्मचारियों की इसमें सहायता भी नहीं करते! सबसे पहले सरकार को मूल्यों वाली शिक्षा पर जोर देना चाहिए।
गणित और विज्ञान से भी ज्यादा इसे तवज्जो मिलनी चाहिए। देश में दस फीसदी कम इंजीनियर हों, तो चलेगा, लेकिन दस फीसदी बुरे चरित्र वाले लोगों को स्वीकार नहीं किया जा सकता। क्या कोई ऐसे व्यक्ति को चपरासी भी रखना चाहेगा, जिसका चरित्र ठीक नहीं हो या वह भरोसेमंद नहीं हो? कभी नहीं। माता-पिता या शिक्षकों के जरिये आप युवा पीढ़ी में मूल्यों की समझ पैदा नहीं कर सकते। इसके लिए स्थायी समाधान ढूंढ़ने होंगे, भले ही वे कठोर हों। और यह काम रातोंरात नहीं हो सकता है। इसमें लंबा समय लगेगा।
आज युवा अच्छे वेतन वाली, आरामदायक नौकरी चाहते हैं, जहां उनसे कोई सवाल न पूछे और वह काम करे या नहीं, उसे पूरा सम्मान मिलना चाहिए। जबकि एक सैनिक बाहरी दुश्मनों से राष्ट्र की रक्षा करता है, ज्यादा वेतन भी नहीं लेता, और घर-परिवार से दूर दुर्गम जगहों में काम करता है। जाहिर है, दोनों में जो फर्क है, वह है चरित्र। यदि 1.3 अरब की आबादी में से थोड़े से लोगों को हम चरित्रवान बना सकें, तो यह एक बड़ी शुरुआत होगी।
यदि हम सभी युवाओं को सेना या अन्य वर्दीधारी सेवा में नहीं रख सकते, तो कुछ अच्छे पुरुष व महिलाओं को अग्निवीर के रूप में चार साल के लिए रखें, तो यह अच्छी शुरुआत होगी। ये थोड़े से चरित्रवान लोग समाज की तस्वीर बदल सकते हैं। अग्निवीरों को सेवा के चौथे वर्ष में प्रति महीना 40,000 रुपये मिलेंगे। यानी प्रति वर्ष 4.8 लाख रुपये का पैकेज, जो मध्य स्तरीय बिजनेस स्कूल के एमबीए को भी नहीं मिलता। इससे भी बड़ी बात है कि सरकार के समान योगदान के बाद सेवा खत्म होने पर अग्निवीरों को 11.771 लाख रुपये मिलेंगे, जो कर मुक्त है!
यह बताना भी ठीक होगा कि रहने, खाने, चिकित्सा आदि रोजमर्रा की अधिकांश जरूरतों के लिए सेना खुद खर्च करेगी, इसलिए अग्निवीरों को इन सब पर खर्च करने की जरूरत नहीं है। कॉरपोरेट भाषा में कंपनी की सालाना सीटीसी 4.8 लाख रुपये से बहुत ज्यादा होगी। इसलिए बारहवीं पास के लिए छह लाख का पैकेज बहुत बड़ी बात है। मान लीजिए, वही व्यक्ति अग्निवीर बनने के बजाय बारहवीं के बाद कॉलेज में स्नातक करने जाता है। पैसे खर्च करने और तीन साल कॉलेज में बिताने के बाद भी नौकरी की गारंटी कहां है?
तीन साल बाद उसके पास न नौकरी होगी, न पैसे होंगे और न ही हुनर होगा। वह न अपने माता-पिता की मदद कर सकता है, न राष्ट्र या समाज की। दुनिया भर में निजी क्षेत्रों में नौकरी पर रखने से ज्यादा तेजी से नौकरी से निकाला जाता है। बीस हजार रुपये प्रति महीने की नौकरी के लिए कई चरणों में इंटरव्यू होते हैं, लेकिन मिनटों में बिना किसी इंटरव्यू के उसे हटा दिया जाता है। इसलिए युवाओं को सरकार को दोष देने के बजाय नौकरी के लायक खुद को तैयार करना चाहिए।
बाहर से चीजें अच्छी लग सकती हैं, लेकिन एक सिपाही पंद्रह साल नौकरी के बाद पेंशन का हकदार होता है और बहुत से लोग 15 साल नौकरी के बाद पेंशन के हकदार होने पर नौकरी छोड़ना चाहते हैं। अग्निवीर 18 से 21 साल की उम्र में सेना में शामिल हो जाएगा और चार साल बाद 22 से 25 साल की उम्र में सेवानिवृत्त हो जाएगा, जो एक नई पारी शुरू करने के लिए अच्छी उम्र है। फ्रांज काफ्का ने कहा है, ईश्वर आपको बादाम देता है, वह उसे आपके लिए तोड़ता नहीं है।
यह सब आप पर निर्भर करता है कि आप इस अवसर का उपयोग अपनी भलाई के लिए कैसे करते हैं। मैंने एनडीए से कैडेट्स को चिकित्सकीय सेवा से बाहर निकल कर अपने सिविल करियर में बेहतर काम करते हुए देखा है। कई शॉर्ट सर्विस अधिकारी ने, जिन्होंने नौकरी छोड़ दी, अपने आगे के करियर में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया। इसलिए कुछ होश और बहुत ज्यादा जोश रखना अच्छा विचार हो सकता है। आज भारत मैन्यूफैक्चरिंग की ओर बढ़ रहा है और इसके लिए उसे खून से ज्यादा पसीने की जरूरत होगी।
अग्निवीर एक इच्छुक अनुशासित बल होगा, जिसे प्रशिक्षित किया जा सकता है और कुशल श्रमबल से हमारी औद्योगिक शक्ति को तेजी से बढ़ाया जा सकता है। अग्निपथ अनुशासित जीवन का मार्ग है। एक लड़का अपने सबसे महत्वपूर्ण वर्षों में एक योग्य व्यक्ति बन जाता है। मैं इसे आरक्षित जनशक्ति का एक पूल बनाने के रूप में भी देखता हूं, जो अनुशासित और अच्छी तरह से प्रशिक्षित है, ताकि राष्ट्र को उनकी आवश्यकता होने पर पुनः प्रशिक्षण के साथ जल्दी से सक्रिय किया जा सके।
सोर्स-amarujala
Admin2
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