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भाजपा का नया नारा अब 'लुक साउथ' है, और उसमें भी 'पहले तेलंगाना, फिर तमिलनाडु' पर खास जोर है। इसी को ध्यान में रखते हुए नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने भाजपा कार्यकारिणी के लिए न केवल हैदराबाद को चुना, बल्कि दो दिनों तक तेलंगाना में उसने अपनी ताकत का प्रदर्शन भी किया। केसरिया लहर और हिंदुत्व पर जोर दिए जाने का धर्मों और जातियों में विभाजित तेलंगाना पर असर पड़ना तय है। जुलाई की शुरुआत को तेलंगाना में इसलिए भी याद रखा जाएगा, क्योंकि भाजपा ने वहां एक असर पैदा कर दिया है।
राष्ट्रीय कार्यकारिणी से पहले भाजपा के शीर्ष नेताओं ने लगभग सभी 29 जिलों का दौरा किया। कार्यकारिणी में दो दिनों तक प्रधानमंत्री मोदी की उपस्थिति और भाषण तथा जनसभाओं में भी दिए गए उनके भाषण केसीआर सरकार के खिलाफ बेहद आक्रामक थे। मोदी में संकट को अवसर में बदल देने की क्षमता है। तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव द्वारा प्रधानमंत्री का बहिष्कार किए जाने को आम लोगों ने गंभीरता से लिया है। और मोदी ने इसी का लाभ उठाने की कोशिश की है। भाजपा नेतृत्व, और खासकर मोदी काडर को नेता के रूप में तराशने में कुशल हैं। हैदराबाद में हुई कार्यकारिणी अगले साल तेलंगाना में होने वाले विधानसभा चुनाव और 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में भाजपा के लिए मददगार साबित होगी।
भाजपा का जोर दक्षिण भारत पर क्यों है? वर्ष 2014 में अमित शाह ने कहा था कि वह पूर्वोत्तर पर अपना ध्यान केंद्रित करेंगे। वर्ष 2019 में उन्होंने कहा कि देश के 18 राज्यों में भाजपा का पूर्ण विस्तार हो चुका है, लिहाजा दक्षिण की ओर देखने का यह सही समय है। हैदराबाद में संपन्न हुई भाजपा की कार्यकारिणी का तीन मोर्चे पर विश्लेषण किया जा सकता है : भाजपा का राजनीतिक लक्ष्य, उसके सांगठनिक महत्व, और वह अपनी योजनाओं के लाभार्थियों को किस तरह देखती है। उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव दूसरी बार जीतने तथा उस प्रक्रिया में योगी आदित्यनाथ द्वारा 'डबल इंजन सरकार' की बात करने और विपक्षी सपा-बसपा पर हमला बोलने की सफल रणनीति ने न केवल भाजपा में नई ऊर्जा भरी है, बल्कि इससे आने वाले चुनावों में मोदी की आक्रामक और हमलावर शैली के प्रति पार्टीजनों का भरोसा और बढ़ा है। हैदराबाद में कार्यकारिणी की बैठक आयोजित करने का सीधा मतलब आने वाले चुनाव में केसीआर सरकार को भारी चुनौती देना है।
तेलंगाना में भाजपा एक ही साथ अपने दो प्रतिद्वंद्वियों, केसीआर की तेलंगाना राष्ट्र समिति और ओवैसी की एआईएमआईएम को धूल चटाना चाहती है। अगर भाजपा की कार्यकारिणी में पारित हुए आर्थिक तथा राजनीतिक प्रस्तावों को गौर से देखें, तो साफ है कि पार्टी राजनीति में परिवारवाद के खिलाफ अपना आक्रामक अभियान जारी रखे हुए है। राष्ट्रीय स्तर पर परिवारवादी कांग्रेस से निपट चुकने के बाद भाजपा अगले पांच साल तक राज्य स्तर की आठ परिवारवादी पार्टियों के खिलाफ निर्णायक अभियान चलाना चाहती है। केसीआर के परिवारवाद को निशाना बनाते हुए ही भाजपा ने 'बाप, बेटा, बेटी सरकार' के खिलाफ अपना अभियान चलाया है। याद रखना चाहिए कि 2013-14 में मोदी ने अपनी करीब 400 जनसभाओं में 'मां, बेटा, बेटी' को निशाने पर लिया था, जिससे कांग्रेस का सफाया हो गया।
कार्यकारिणी में आर्थिक प्रस्ताव में अगले 25 साल के विकास कार्यों की रूपरेखा तय की गई। इसके तहत 5जी, 6जी, अंतरिक्ष में शोध, गति शक्ति और बुनियादी ढांचे से संबंधित सार्वजनिक क्षेत्र की बड़ी परियोजनाओं पर बात की गई। अभूतपूर्व कोविड महामारी के दौरान केंद्र द्वारा चलाई गई कल्याणकारी योजनाओं की आर्थिक प्रस्ताव में तारीफ की गई। आर्थिक प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान यह भी रेखांकित किया गया कि गरीबों के कल्याण के साथ-साथ सरकार ने आर्थिक विकास के लक्ष्य पर भी उतना ही ध्यान दिया है। इसी तरह केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने राजनीतिक प्रस्ताव पेश करते हुए कहा कि पूर्वोत्तर की सभी समस्याओं का समाधान वर्ष 2024 तक निकाल लिया जाएगा। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने 'आर्थिक और गरीब कल्याण संकल्प' का प्रस्ताव रखा, जिसका समर्थन वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल और हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने किया।
भाजपा नेतृत्व ने वसुंधरा राजे सिंधिया को जिस तरह महत्व देना शुरू किया है, और उन्हें सांगठनिक मामलों पर मीडिया से बात करने की जो जिम्मेदारी सौंपी है, वह अलग से ध्यान देने लायक है। वसुंधरा राजे अब बूथ स्तर के व्हाट्सएप ग्रुप की प्रमुख हैं-बूथ स्तर के भाजपा काडर को एक मंच पर लाने की यह शानदार पहल है। हालिया चुनावों के बाद नरेंद्र मोदी ने अपने कई भाषणों में कहा है कि लाभार्थियों को बिना किसी भेदभाव के योजनाओं का सौ फीसदी लाभ मिलना चाहिए। विभिन्न सरकारी योजनाओं के लाभार्थी अब भाजपा के बड़े वोट बैंक के रूप में उभरे हैं और पार्टी इन्हें राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के अपने मुख्य मुद्दों से जोड़ रही है। अगले लोकसभा चुनाव को देखते हुए भाजपा 'हर घर तिरंगा' के जरिये राष्ट्रीय स्तर पर मतदाताओं से जुड़ने जा रही है। हैदराबाद में भाजपा ने विकास के पक्ष में और परिवारवाद के खिलाफ ठोस संदेश दिया है। भाजपा नेतृत्व का ध्यान अब अमित शाह, योगी आदित्यनाथ और हिमंत विश्व शर्मा को बड़ी जिम्मेदारी देने और देवेंद्र फडणनवीस, लॉकेट चटर्जी, अनुराग ठाकुर, तेजस्वी सूर्या, के. अन्नामलाई और निशीथ प्रामाणिक जैसों को संगठन और सत्ता में बड़ी जिम्मेदारी के लिए तैयार करने पर है।
दिलचस्प बात यह है कि नरेंद्र मोदी कार्यकारिणी बैठक में मौजूद हर प्रतिनिधि के पास जाकर गर्मजोशी से मिले। जब वह उत्तर प्रदेश समूह के पास रुके, तो उन्होंने कहा कि 'सब का साथ, सबका विकास' पसमांदा मुसलमानों तक भी पहुंचना चाहिए। वे मूल रूप से पिछड़े मुसलमान हैं। राष्ट्रीय कार्यकारिणी में 'परिवारवाद' पर तीखा हमला करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि वंशवादी राजनीति करने वाली पार्टियों का समय समाप्त हो चुका है। उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं की सराहना करते हुए कहा कि भाजपा 'जनभागीदारी' में विश्वास करती है। राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने मीडिया को बताया कि प्रधानमंत्री ने भाजपा नेताओं से कहा है कि वे भारत को 'तुष्टिकरण से तृप्तिकरण' की ओर ले जाएं। सोर्स-AMARUJALA
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