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- संघर्ष की एक और अनकही...
जनता से रिश्ता : कानपुर से जगदीशपुर गांव का वह सफर हमने बस और खड़खड़े पर बैठकर पूरा किया। शहीद भगत सिंह के साथी डॉ. गयाप्रसाद की इस बस्ती तक पहुंचने का मार्ग हमें हर पल रोमांच से भर देता रहा। उनके घर के दरवाजे पर नीम का दरख्त और पीछे चौपालनुमा कुछ हिस्सा। डॉक्टर साहब से भेंट हुई, तो कल्पना के रंगों से उनका मिलान मुश्किल था। ठिगनी और सामान्य-सी कद-काठी। धोती और बनियान लापरवाही से पहने हुए, लेकिन आंखें चश्मे से दूर तक झांक रही थीं।हम कल्पना भी नहीं कर पा रहे थे कि इसी शख्स ने भगत सिंह के साथ एक समय क्रांति के लंबे डग भरते हुए सुदूर अंडमान की लंबी सजा काटी। उन्होंने डॉक्टरी का पेशा जब शुरू किया, तब वह शादीशुदा थे। क्रांतिकारी दल में शामिल होने के बाद घर आकर पत्नी से कहा कि तुम अपने माथे का सिंदूर पोंछ डालो और मेरे सिर पर हाथ रखकर देश के लिए विदा करो। सुनकर पत्नी रोने-धोने लगीं। आखिर उन कठिन क्षणों में वह आजादी के संघर्ष में हिस्सेदारी करने के लिए निकल पड़े।