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जनता से रिश्ता : किसी भी तरह की धार्मिक कट्टरता को कुचलने और उसे हराने का काम जनता ही कर सकती है… और कोई नहीं।पहले नूपुर शर्मा, फिर 'अग्निवीर', उसके बाद महाराष्ट्र में राजनीतिक गतिरोध और अब उदयपुर की घटना। इसमें कोई शक नहीं कि उदयपुर की घटना हिला देने वाली है और किसी भी लिहाज से ऐसी घटना का बचाव करना खुद में अपराधी होना है। ऐसी जघन्य हिंसा और घृणित मानसिकता हमारे समाज को तो कमजोर करती ही है, धर्म को भी बदनाम ही करती है। इस तरह के अपराधों से तो किसी धर्म के भगवान खुश नहीं होंगे! ऐसे दरिंदों को किसी भी कीमत पर बढ़ावा नहीं मिलना चाहिए।यह समझना मुश्किल है कि ऐसी घटनाएं राजस्थान में ही बार-बार क्यों होती हैं! राजस्थान में ही इसी तरह शंभूलाल रैगर नाम के एक दरिंदे ने अफराजुल नाम के एक मजदूर को कुल्हाड़ी से बेरहमी से मार कर जला डाला था। शर्मनाक यह है कि उसे नफरती गिरोहों की तरफ से समर्थन भी मिला और उसके लिए चंदा भी जुटाया गया।सवाल है कि इस सबके पीछे मूल वजह क्या है? क्या कारण है कि किसी हत्यारे और अपराधी को फर्जी राष्ट्रवादियों के गिरोह का समर्थन मिल जाता है और उसे बचाने के लिए अभियान चलाया जाता है? क्या इसकी वजह नफरत का वह संगठित कारोबार नहीं है जो साल दर साल से रोज देश भर में अफीम के रूप में प्रसारित होता है? क्या भीड़ के हाथों हत्या का बचाव करना, हत्यारों को माला पहनाना, टीवी मीडिया को जहर की फैक्टरी बना देना, लगातार हिंदू-मुसलमान के जज्बातों को छेड़ना इसकी वजह नहीं है? क्या जनता को बांट कर चुनावी लाभ लेने की कुटिल मंशा इसके पीछे काम नहीं कर रही है?