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जनता से रिश्ता : वर्ष 1998 में पाकिस्तान के बारे में दिवंगत प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का यह बयान कि 'हम दोस्त तो बदल सकते हैं, पड़ोसी नहीं बदल सकते', अफगानिस्तान के नए रूढ़िवादी तालिबान शासन के लिए ज्यादा प्रासंगिक एवं यथार्थवादी है, क्योंकि भारत ने काबुल में आधिकारिक प्रतिनिधिमंडल भेजने की नई पहल की है, जिससे इतिहास के गहरे रिश्तों को सामान्य बनाने में मदद मिल सकती है। दोनों देशों के रिश्तों में वर्ष 1999 से 2021 के बीच प्रगाढ़ता आई, क्योंकि अमेरिका ने अफगानिस्तान के लोगों की प्रगति और विकास में भागीदार बनने के भारत के उत्साह का समर्थन किया। भारत के लोग भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अफगान के समर्थन, सीमांत गांधी कहे जाने वाले खान अब्दुल गफ्फार खान के योगदान और उन महत्वपूर्ण क्षणों को याद कर सकते हैं, जब ठीक सौ वर्ष पहले काबुल में पहली निर्वासित भारत सरकार महाराजा महेंद्र प्रताप और मौलाना बरकतुल्लाह द्वारा बनाई गई थी। अफगानिस्तान के शासक रहे बादशाह अमानुल्लाह खान ने एक बार महाराजा से कहा था कि जब तक भारत स्वतंत्र नहीं होता, अफगानिस्तान सही मायनों में स्वतंत्र नहीं है।
सोर्स-amarujala