- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- अंतरराष्ट्रीय योग दिवस...
x
जनता से रिश्ता वेबडेस्क : भारतीय वैदिक परम्परा में हमारे ऋषियों ने जिस दिव्य ज्ञान और अलौकिक अंतरदृष्टि के बल पर वैदिक मंत्रों का साक्षात्कार किया, अपने शिष्यों को बताया तथा ग्रंथ रूप में प्रणयन किया, उसका आधार योग साधना से प्राप्त सिद्धि है। ये 'आर्षग्रंथ' ऋषियों के 'ध्यान योग' का प्रतिफल है। इन ग्रंथों में प्रणीत योग को 'आर्षयोग' कहा गया है।यहां आर्ष शब्द का अर्थ है- 'ऋषि दृष्ट'। तात्पर्य यह कि जो 'ऋषि द्रष्ट योग' का प्रथम स्वरूप है, वही आर्ष योग है। इसकी साधना करने वाले योगी को 'आर्षयोगी' कहा जाता है।
प्राचीन भारतीय पद्धति
योग प्राचीन भारतीय पद्धति है। किसके द्वारा सर्वप्रथम 'योगविघा' के रूप में प्रकट किया गया, यह निर्विवाद नहीं है। पर महाभारत, भागवत् गीता, महापुराण में 'हिरण्यगर्भ' को योग का वक्ता कहा गया है
सांख्यस्य वक्ता कपिल: परमर्षि स उच्यते।
हिरण्यगर्भो योगस्य वक्ता नान्य: पुरातन:।।
योग का उद्भव वेदों से है। हिरण्यगर्भ को योग का आदि प्रवर्तक कहा गया है। श्रुति परम्परा के अनुसार भगवान शिव, योग परंपरा के आदि गुरु हैं। श्रीमद् भगवद्गीता में भगवान कृष्ण ने योग की परंपरा के बारे में बताया है कि- मैंने यह योग सूर्य को सूर्य ने मनु और मनु ने राजा इक्ष्वाकु को योग विघा से अवगत कराया, पुनः श्रीकृष्ण ने योग का उपदेश अर्जुन को दिया।
इस तरह परम्परा से चले आ रहे योग में आज अनेक परिवर्तन देखने को मिलता है। अब केवल आसान और प्राणायाम को ही योग कहा जाने लगा है। पातंजलि योगसूत्र योग, सर्वप्रथम योग की सुव्यवस्थित-साधनापरक दृष्टिकोण को प्रस्तुत करता है।
योगसूत्र में योग को परिभाषित करते हुए बताया गया है कि "चित्तवृत्तिनिरोध: योग:" चित्त वृतियों का निरोध ही योग है। 'योगसूत्र' में चित्त की पांच भूमियां बतायी गयी हैं-
क्षिप्तमूढ विक्षिप्त एकाग्रा ग्निरुद्धमिति चित्तभूमय:। अर्थात् क्षिप्त, मूढ़,विक्षिप्त, एकाग्र, तथा निरूद्ध ये चित्त की पांच भूमिया हैं। इनमें एकाग्रता और सात्विकता न होने पर योग सम्भव नहीं है।
महर्षि पतंजलि के बाद आदिनाथ की परम्परा में गोरक्षनाथ, मत्स्येंद्रनाथ के अलावा अनेक आचार्यों, सिद्ध योगी, योग के कालदंड के साथ जुड़कर ब्रह्मांड में विचरण कर रहे हैं। इस परम्परा के आचार्यों में स्वात्माराम सूरी का नाम सर्वोपरि है।
सोर्स-amarujala
Admin2
Next Story