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जनता से रिश्ता वेबडेस्क : जिन किसानों ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर फसल बेचने की गारंटी के लिए साल भर धरना-प्रदर्शन किया, वही आज अपनी उपज सरकारी एजेंसियों को न बेचकर एमएसपी से ऊंची कीमत पर निजी कारोबारियों को बेच रहे हैं। गेहूं ही नहीं सरसों, कपास, चना की बिक्री भी समर्थन मूल्य से अधिक कीमत पर हो रही है। सबसे बड़ी बात यह हुई कि अनाज की बिक्री के लिए पंजीकरण के बावजूद किसान अपनी उपज लेकर सरकारी खरीद केंद्रों पर नहीं जा रहे हैं, क्योंकि व्यापारी खुद उन तक जा रहे हैं। इसे इस उदाहरण से समझा जा सकता है। इस साल 29 मई तक 17.5 लाख किसानों से 184.5 लाख टन गेहूं की खरीद की गई।
यह खरीद 2021-22 की सरकारी खरीद 433.4 लाख टन से 53 प्रतिशत कम है। सरकार ने 2022-23 के लिए 444 लाख टन खरीद का लक्ष्य निर्धारित किया था, लेकिन निजी कारोबारियों द्वारा 2,500 से 3,000 रुपये प्रति क्विंटल की आक्रामक खरीदारी के कारण किसान समर्थन मूल्य 2,015 रुपये प्रति क्विंटल की दर से गेहूं की बिक्री के लिए उत्साह नहीं दिखा रहे। जिन राज्यों में सरकारी खरीद का व्यवस्थित नेटवर्क नहीं है, वहां भी निजी एजेंसियां एमएसपी से ऊंची कीमत देकर गेहूं की खरीद कर रही हैं। यह भविष्य के लिए एक सुखद संकेत है। गेहूं कारोबार में 29 प्रतिशत हिस्सेदारी रखने वाले रूस-यूक्रेन के युद्धरत होने के चलते दुनिया में गेहूं की आपूर्ति प्रभावित हुई है। इससे विश्व में गेहूं की कीमतें बढ़ रही हैं। इसी कारण भारत सरकार ने गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध लगाया। भविष्य में गेहूं की ऊंची कीमत मिलने की उम्मीद में भी बहुत से किसान उपज नहीं बेच रहे हैं। आज किसानों को एमएसपी से अधिक कीमत मिल रही है तो इसका श्रेय आठ वर्षो में मोदी सरकार द्वारा किए गए विपणन सुधारों को जाता है।
मोदी सरकार कृषि उपज की खरीद-बिक्री में सरकारी क्षेत्र के समानांतर निजी क्षेत्र की मौजूदगी बना रही है। इससे खरीद में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी, जिसका लाभ किसानों को मिलेगा। गेहूं, सरसों, कपास के मामले में तो यह लाभ मिलने भी लगा है। आगे अन्य फसलों को भी इसका लाभ मिलेगा। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए सरकार परंपरागत मंडी व्यवस्था को सूचना प्रौद्योगिकी आधारित आधुनिक व्यवस्था में बदल रही है, ताकि कृषि उपज के कारोबार में बाधा न आए। इसके तहत मंडियों को राष्ट्रीय कृषि बाजार (ई-नाम) पोर्टल से जोड़ा जा रहा है, ताकि किसान सभी मंडियों में अपनी उपज का कारोबार कर सकें। 31 दिसंबर, 2021 तक 18 राज्यों और तीन केंद्र शासित प्रदेशों की 1,000 मंडियों को ई-नाम प्लेटफार्म में बदला जा चुका है। इससे 1.72 करोड़ किसान और दो लाख ट्रेडर्स जुड़े हैं। अब 1,000 नई मंडियों को ई-नाम पोर्टल से जोड़ने का काम जारी है।
ई-नाम योजना को मिली सफलता को देखते हुए मोदी सरकार ग्रामीण हाटों को मिनी एपीएमसी मार्केट में बदल रही है। मनरेगा के तहत अब तक 1,351 ग्रामीण हाटों को बदला जा चुका है। 1,632 ग्रामीण हाटों को मिनी एपीएमसी मार्केट में बदलने की प्रक्रिया जारी है। 31 मार्च, 2020 तक देश में 6,845 एपीएमसी बाजार थे। किसानों की बाजार तक पहुंच बढ़ाने और बेहतर कीमत दिलाने के लिए उनका नियमन किया गया है। इनके अलावा देश भर में जो थोक बाजार खरीद केंद्र हैं, उन्हें भी सरकार विनियमित कर रही है। किसानों और बाजार के संबंध को मजबूत बनाने के लिए सरकार गोदाम और कोल्ड स्टोरेज को बाजार की मान्यता प्रदान करने जा रही है।
उत्पादक केंद्रों को उपभोक्ता केंद्रों से जोड़ने के लिए सरकार किसान रेल चला रही है। इससे किसान दूरदराज के बाजारों में अपनी उपज बेच रहे हैं। इसके अलावा सरकार जल्द खराब होने वाले फलों-सब्जियों को उत्पादक केंद्रों से उपभोक्ता केंद्रों तक पहुंचाने के लिए 50 प्रतिशत सब्सिडी दे रही है। पूवरेत्तर और हिमालयी राज्यों के शीघ्र खराब होने वाले फलों-सब्जियों की 'किसान उड़ान' से ढुलाई के लिए भी सब्सिडी दे रही है।
चूंकि छोटे किसानों की बाजार तक पहुंच सीमित होती है इसलिए सरकार किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) बना रही है। इसके तहत किसानों से फल, सब्जी, फूल, मछली आदि को खरीदकर सीधे कंपनियों को बेचा जाता है। इस व्यवस्था में किसानों का एक बड़ा समूह रहता है, इसलिए उनकी मोलभाव की ताकत बढ़ जाती है और उन्हें उपज की अच्छी कीमत मिलती है। सरकार ने 2024 तक दस हजार एफपीओ बनने का लक्ष्य तय किया है, जिससे 30 लाख किसान लाभान्वित होंगे। इसके लिए 6,865 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया गया है।
सरकार 'एक जिला एक उत्पाद' को कृषि क्षेत्र में लागू कर रही है। इसके तहत देश के सभी 773 जिलों में उनकी पारिस्थितिकी दशा के अनुरूप फसलों को चिह्नित किया गया है। इसमें बागवानी-औषधीय महत्व की फसलों को प्राथमिकता दी जा रही है, क्योंकि इनकी अच्छी कीमत मिलती है। इन्हीं उपजों के आधार पर हर जिले के पारंपरिक उद्योग को विकसित किया जाएगा। इससे स्थानीय स्तर पर खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को बढ़ावा मिलेगा।
देश में अब तक जितना ध्यान उत्पादन पर दिया गया, उतना उपज के भंडारण-विपणन पर नहीं। यही कारण है कि किसानों को उनकी उपज की उचित कीमत नहीं मिल पा रही थी। मोदी सरकार चुनिंदा फसलों के बजाय विविधीकृत फसलों के उत्पादन के साथ-साथ उनके भंडारण, प्रसंस्करण, विपणन का देशव्यापी व्यवस्थित नेटवर्क बना रही है। इसी कारण अब किसानों को उनकी उपज की वाजिब कीमत मिलने लगी है।
(लेखक केंद्रीय सचिवालय सेवा में अधिकारी एवं लोक नीति विश्लेषक हैं)
सोर्स-jagran
राइटर-sanjaypokhriyal
Admin2
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