सम्पादकीय

राष्ट्रपति का चुनाव

Admin2
14 Jun 2022 6:53 AM GMT
राष्ट्रपति का चुनाव
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जनता से रिश्ता वेबडेस्क : भारतीय लोकतंत्र के लिए यह किसी उत्सव से कम नहीं कि देश में राष्ट्रपति का चुनाव होने जा रहा है। सन 1950 से अगर हम देखें, तो यह राष्ट्रपति पद के लिए 17वां चुनाव होगा। राष्ट्रपति चुनाव के लिए निर्वाचन आयोग ने तारीखों का एलान कर दिया है। 18 जुलाई को मतदान होगा और 21 जुलाई को देश के नए राष्ट्रपति के नाम का एलान हो जाएगा। ध्यान रहे, मौजूदा राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का कार्यकाल 24 जुलाई को संपन्न होने जा रहा है, उससे पहले ही देश को अपना नया प्रथम नागरिक चुन लेना है। जाहिर है, इस पद के लिए होने वाले मतदान में जनता की सीधी भागीदारी नहीं होती है, लेकिन राष्ट्रपति को लेकर लोगों में कौतूहल बहुत होता है। लोग योग्यतम और निर्विवाद व्यक्ति को इस पद पर देखना चाहते हैं, लेकिन वास्तव में राजनीतिक दल अपने हिसाब से उम्मीदवार चुनते हैं। हालांकि, एक आम आदमी भी कुछ जरूरी योग्यताओं के साथ राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ सकता है, लेकिन ऐसा कम ही होता है। भारतीय लोकतंत्र का ढांचा और राष्ट्रपति चुनाव के प्रारूप को ऐसा बनाया गया है कि जिसमें आम आदमी के लिए भी जगह बन सकती है। लेकिन मतदाता तो विधानसभाओं और संसद के ही सदस्य होंगे।

लगे हाथ हम यह भी याद करते चलें कि दो बार ही देश में निर्विरोध राष्ट्रपति बने हैं। साल 1950 में राजेंद्र प्रसाद को अकेले ही आगे किया गया था और उसके बाद 1977 में नीलम संजीव रेड्डी बिना लडे़ विजेता घोषित हुए थे। आदर्श स्थिति तो यही है कि विभिन्न दलों के बीच राष्ट्रपति पद को लेकर आम सहमति बने, लेकिन साल 1967 और 1969 में 15-15 उम्मीदवारों ने भाग्य आजमाया था। उसके बाद यह अच्छी बात है कि आठ चुनावों में दो-दो उम्मीदवार ही रहे हैं। मतलब राष्ट्रपति पद के लिए कुल मिलाकर राजनीतिक दलों ने एक गरिमा बनाए रखी है, जिससे वस्तुत: लोकतंत्र को ही मजबूती मिली है। देश में राष्ट्रपति को बहुत आदर भाव से देखा जाता है। अब यह राजनीतिक दलों पर निर्भर है कि वे ऐसे उम्मीदवार को ही आगे करें, ताकि देश का यह सर्वोच्च पद और गरिमामय हो जाए।
बहरहाल, राष्ट्रपति चुनाव में ज्यादातर केंद्रीय सत्ताधारी दल या सत्ताधारी गठबंधन की ही तूती बोलती है। आज भाजपा मजबूत स्थिति में है, लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि उसे भी कुछ विपक्षी दलों की जरूरत पड़ेगी। भाजपा के पास कुल 48.9 फीसदी वोट है और विपक्ष के पास 51.1 फीसदी। मतलब, भाजपा को और 2.2 फीसदी वोट कम से कम जुटाने होंगे। पहला तरीका यही है कि सत्ताधारी दल किसी ऐसे उम्मीदवार को आगे करे, जिस पर विपक्षी दल भी राजी हो जाएं। दूसरा तरीका है, सत्तापक्ष बहुमत जुटाने के लिए विपक्षी दलों में सेंधमारी करे। तो भाजपा को कुछ ऐसे विपक्षियों की जरूरत पडे़गी, जो पहले कभी साथ थे। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को एकजुट रखने में आधी कामयाबी भी मिली होती, तो सत्ताधारी दल को राष्ट्रपति चुनाव में किसी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता। साल 2017 के चुनाव में राजग के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद को 65 फीसदी के करीब वोट मिले थे, लेकिन तब भाजपा राज्यों में कुछ ज्यादा मजबूत थी। अत: सबसे बेहतर उपाय यही है कि भाजपा लोकप्रिय या रणनीतिक रूप से सशक्त उम्मीदवार को आगे करे। वैसे हमेशा की तरह राजनीतिक दल विचारधारा, जाति, संप्रदाय इत्यादि का भी समीकरण देखेंगे, लेकिन आम लोगों को प्रेरक राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति का इंतजार रहेगा।
राइटर-namandiksit

सोर्स-livehindustan

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