सम्पादकीय

भारत में मानव जीवन संबंधी दुश्वारियां बढ़ी

Admin2
12 Jun 2022 10:58 AM GMT
भारत में मानव जीवन संबंधी दुश्वारियां बढ़ी
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जनता से रिश्ता वेबडेस्क : एक बार फिर भारत पर्यावरणीय प्रदर्शन में फिसड्डी साबित हुआ है। एक सौ अस्सी देशों की सूची में वह सबसे नीचे है। येल और कोलंबिया विश्वविद्यालय की तरफ से एक सौ अस्सी देशों की पर्यावरणीय स्थिति को लेकर कराए गए अध्ययन से यह बात स्पष्ट हुई है। इस अध्ययन में भारत के अलावा रूस और चीन की स्थिति भी चिंताजनक है। जलवायु परिवर्तन के मद्देनजर दुनिया के तमाम देशों ने मिल कर 2050 तक अपने यहां कार्बन उत्सर्जन में पचास फीसद तक कटौती करने का संकल्प लिया है।मगर ताजा अध्ययन से जाहिर है कि 2050 तक भारत और चीन दुनिया के सर्वाधिक कार्बन उत्सर्जन करने वाले देश होंगे। हालांकि कई बार पर्यावरण संबंधी अंतरराष्ट्रीय एजंसियों के अध्ययनों को संदेह की नजर से देखा जाता है, उनमें विकासशील देशों पर दबाव बनाने की मंशा भी होती है।मगर भारत के संबंध में पर्यावरण प्रदूषण को लेकर यह बहुत चौंकाने वाला आंकड़ा नहीं है। समय-समय पर इसे लेकर अध्ययन आते रहते हैं और प्राय: सभी इस दिशा में सुधार लाने की जरूरत रेखांकित करते रहे हैं। हालांकि भारत में स्वच्छ ईंधन और सौर ऊर्जा जैसे उपायों पर तेजी से अमल किया जा रहा है, पर वाहनों और औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले कार्बन पर काबू पाना बड़ी चुनौती बना हुआ है।

दुनिया भर में गहराता जलवायु संकट निस्संदेह चिंता का विषय है, इस पर काबू पाने के मकसद से ही सारे देशों ने मिल कर कार्बन उत्सर्जन में कटौती का संकल्प लिया। मगर यह थोड़ा पेचीदा काम रहा है। कार्बन उत्सर्जन में कटौती के उपाय लागू करने का अर्थ है कि अपने यहां अनेक औद्योगिक और विकास संबंधी गतिविधियों पर अंकुश लगाना।यह काम जितनी आसानी से विकसित देश कर सकते हैं, उतना आसान विकासशील देशों के लिए नहीं है। भारत अगर एकदम से कार्बन उत्सर्जन में कटौती के कदम उठाता है, तो उसकी विकास दर पर सीधा असर पड़ेगा। यही वजह है कि अमेरिका जैसा विकसित देश भी कार्बन उत्सर्जन में कटौती संबंधी उपाय आजमाने से कतराता रहा है।ताजा अध्ययन में वह पहले की अपेक्षा नीचे खिसका है, तो इसीलिए कि ट्रंप सरकार ने कार्बन उत्सर्जन में कटौती संबंधी उपायों पर ठीक से अमल नहीं किया। चीन और रूस में भी इसीलिए पर्यावरणीय स्थिति चिंताजनक बनी हुई है कि वे अपनी औद्योगिक और विकास संबंधी नीतियों में कोई बदलाव नहीं करना चाहते। ऐसे में भारत की मुश्किलें छिपी नहीं हैं।मगर इस हकीकत से मुंह नहीं फेरा जा सकता कि पर्यावरण प्रदूषण की वजह से भारत में मानव जीवन संबंधी दुश्वारियां काफी बढ़ी हैं। यहां हर साल लाखों लोग ऐसी खतरनाक बीमारियों की चपेट में आकर दम तोड़ देते हैं जो प्रदूषण से पैदा होती हैं। यहां के महानगरों में सर्दी के दिनों में लंबी अवधि तक लोगों का सांस लेना दूभर रहता है।प्रदूषण की वजहें छिपी नहीं है। न तो कल-कारखाने प्रदूषण संबंधी नियमों का ठीक से पालन करते हैं और न जल, जंगल, जमीन पर नजर रखने वाले महकमे उन्हें सुरक्षित रखने को लेकर संवेदनशील हैं।
इसी के चलते नदियां गंदे नालों में तब्दील हो चुकी हैं। पहाड़ नंगे होते जा रहे हैं, वन क्षेत्र अपने अस्तित्व के लिए लड़ रहे हैं। सड़कें क्षमता से कई गुना अधिक वाहनों का दबाव झेल रही हैं। अगर इन बुनियादी चीजों पर गंभीरता से ध्यान दिया जाए, तो भारत को शायद पर्यावरणीय नाकामियों के लिए इस तरह शर्मिंदा न होना पड़े।

सोर्स-jansatta

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