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अनोखे और चमत्कारिक मंदिर... जानिए इस 1100 साल पुराना मां महामाया मंदिर के बारे में

Ritisha Jaiswal
11 Oct 2021 9:50 AM GMT
अनोखे और चमत्कारिक मंदिर... जानिए इस 1100 साल पुराना मां महामाया मंदिर के बारे में
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भारत में कई अनोखे और चमत्कारिक मंदिर हैं जिनसे कई रहस्य जुड़े हुए हैं। इनमें कई ऐसे मंदिर हैं जिनके रहस्यों को आज तक कोई नहीं सुलझा पाया है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | भारत में कई अनोखे और चमत्कारिक मंदिर हैं जिनसे कई रहस्य जुड़े हुए हैं। इनमें कई ऐसे मंदिर हैं जिनके रहस्यों को आज तक कोई नहीं सुलझा पाया है। इसी कड़ी में हम आपको 11 सौ साल पुराने माता के मंदिर के बारे में बताते हैं जिससे कई रोचक कहानियां जुड़ी हुई हैं। यह चमत्कारिक मंदिर झारखंड के गुमला जिले में स्थित है। गुमला जिला मुख्यालय से 26 किलोमीटर दूर घाघरा प्रखंड के हापामुनी गांव में स्थित इस मंदिर का निर्माण 1100 साल पहले विक्रम संवत 965 में हुई थी। हिंदुओं के आस्था केंद्र इस मंदिर की खास बात यह है कि मां महामाया को आज भी बक्शे में बंद कर रखा जाता है।

चैत कृष्णपक्ष परेवा (अमावस्या) को डोल जतरा का महोत्सव होता है। इसी दिन मंजूषा (बक्शे) को डोल चबूतरा पर निकाला जाता है और मंदिर के मुख्य पुजारी बक्शे को खोलकर महामाया की पूजा करते हैं। पुजारी आखों पर पट्टी बांधकर मां की पूजा करते हैं। आईए जानते हैं इस मंदिर से जुड़ी कथाएं...
मां की मूर्ति को खूली आंखों से नहीं देख सकते
चमात्कारिक मां महामाया मंदिर से जुड़ी मान्यता है कि मां की मूर्ति को खुली आंखों से नहीं देखा जा सकता है जिसकी वजह से मां महामाया की मूर्ति को बक्शे में बंद कर रखा जाता है। इसलिए मंदिर में प्रतीक के तौर पर दूसरी मूर्ति भी स्थापित की गयी है जिसकी भक्त पूजा करते हैं। चैत्र कृष्णपक्ष परेवा (अमावस्या) को यहां पर हर साल डोल जतरा महोत्सव का आयोजन होता है। इस दौरान मंजूषा (बक्शे) को मंदिर के बाहर चबूतरा पर रखा जाता है और इसके बाद मंदिर के मुख्य पुजारी माता की पूजा करते हैं। लेकिन पूजा करते समय पुजारी की आंखों पर पट्टी बांधी दी जाती है। मंदिर के मुख्य पुजारी विशेष अवसर पर पूजा करते हैं।
इस आंदोलन से जुड़ा है मंदिर का इतिहास
बताया जाता है कि प्रसिद्ध महामाया मंदिर का इतिहास लरका आंदोलन से जुड़ा हुआ है। स्थानीय लोग बताते हैं कि हापामुनी गांव का एक व्यक्ति जिसका नाम बरजू राम था वह मां महामाया की मंदिर में पूजा कर रहा था। उसी समय बाहरी लोगों ने यहां हमला कर दिया और बरजू राम की पत्नी-बच्चे को मार दिया। बरजू के दोस्त राधो राम ने बरजू को बताया कि उसकी पत्नी और बच्चे की हत्या हो गई है। इसके बाद राधो राम ने मां महामाया की शक्ति से हमलावरों से लड़ गया। तब मां महामाया ने प्रकट होकर राधो राम से कहा कि तुम अकेले इन आक्रमणकारियों से लड़ सकते हैं, लेकिन तुम पीछे देखोगे तो तुम्हारा सिर धड़ से अलग हो जाएगा।मां भगवती की कृपा से राधो राम अपनी तलवार से हमलावरों पर विजय पाने लगा, लेकिन उसने जैसे ही पीछे मुड़कर देखा उसका सिर धड़ से अलग हो गया। राधो राम जिस स्थान पर पूजा करता था उस जगह पर आज उन दोनों की समाधि है। मुख्य मंदिर आज भी खपरैल का ही बना हुआ है। मंदिर में कई देवी देवताओं की प्रतिमा है।
भूतों को किया था समाप्त
महामाया मंदिर के बारे में बताया जाता है कि हापामुनी गांव में 11 सौ साल पहले यहां पर एक मुनी आए हुए थे। वह बहुत कम बोलते थे और मुंडा जाति के लोग उनको हप्पा मुनी कहकर पुकारते थे। मुंडा भाषा में हप्पा का मतलब होता है चुप रहना। मुनी के नाम पर ही इस गांव का नाम हप्पामुनी पड़ा, लेकिन गांव का नाम बदलकर बाद में हापामुनी गांव कर दिया गया। मांडर थाना क्षेत्र में दक्षिणी कोयल नदी है जहां एक विशाल दह है जिसे लोग इस समय बियार दह के नाम से जानते हैं। लोग कहते हैं कि यहां पर हीरा एवं मोती मिलती है।
बताया जाता है कि विक्रम संवत 959 में हीरा एवं मोती की खोज करने गए हजारों लोग दह में डूबकर मर गए। यह बात फैल गई कि दह में डूबकर मरने वाले लोग अपने-अपने गांव में भूत बनकर घूम रहे हैं। हप्पामुनी के निर्देश पर वहां के नागवंशी राजा ने मां भगवती को लाने के लिए विंध्याचल चले गये। राजा ने विंध्याचल में 3 साल तक मां भगवती की तपस्या की। तपस्या के बाद राजा मां भगवती के इस्ट को लेकर पैदल आ रहे थे। इसी दौरान उन्होंने टांगीनाथधाम में देवी भगवती को जमीन पर रख दिया और मां जमीन में समां गयी। मुनी ने माता की स्तुति की जिसके बाद मां भगवती मुरलीधर को लेकर बाहर आयीं। राजा भगवती को लेकर गांव आए जिससे गांव से भूतों का तांडव समाप्त हुआ। इसके बाद मंदिर में मां भगवती को स्थापित किया गया।
तांत्रिक पीठ है मंदिर
महामाया मंदिर की स्थापना जिस काल में हुई थी वह बड़ा ही उथल पुथल का था। उस समय यहां पर भूत-प्रेत का वास होने की बात कही जाती थी। तभी यहां तांत्रिक जुटे और पूजा-पाठ होने लगा। मान्यता है कि अपराधियों को यहां कसम खाने के लिए लाया जाता था। मंदिर के अंदर जाने से पहले ही अपराधी अपना गुनाह स्वीकार कर लेता था। उस समय मंदिर के पुजारी की बातों को लोग मानते थे।



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