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ये है वो शहर जिसे अंग्रेजों ने बसाया और बंगालियों ने बनाया

Gulabi Jagat
23 July 2022 1:45 PM GMT
ये है वो शहर जिसे अंग्रेजों ने बसाया और बंगालियों ने बनाया
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कोलकाता का मतलब सिटी ऑफ जॉय. एक अलग तरह की जिंदगी और आनंद का शहर. भीड़ का शहर. कोलाहल का शहर लेकिन ऐसा शहर जहां अंग्रेजों ने ऐसी छाप छोड़ी कि वो इस शहर में रच बस गई. ये शहर साहित्य का शहर है, संगीत का शहर है, एक सुकून का शहर है, बातूनी लोगों का शहर है, गजब के खाने और घूमने का शहर है. ये ऐसा शहर है जहां अगर नहीं गए तो लगेगा कि कुछ अधूरा छूट गया. कोलकाता में कई इलाके हैं और हर इलाके की अपनी खासियतें और अपनी पहचान है. हावड़ा ब्रिज से लेकर पीले रंग की टैक्सियां और रात की रोशनी में चमकते बाजार अगर लुभाते हैं तो दिन में ये शहर अलग तरह के ख्यालों में डूबा और आनंद लेता लगता है.
ये शहर अंग्रेजों ने 1690 में बसाया. जिस अंग्रेज को इसको बसाने का श्रेय दिया जाता है, उसका नाम जॉब चारनोक था. तब कोलकाता जैसा कोई बड़ा शहर नहीं हुआ करता था. केवल कुछ छोटे छोटे गांव यहां बसा करते थे. बंगाल की असली शान मुर्शिदाबाद थी. दरअसल बात ये हुई कि तब ईस्ट इंडिया कंपनी के आला अफसर चारनोक ने हुगली नगर से कोई 24 किलोमीटर दूर सूतानटी में एक कारखाना स्थापित किया. अब तक डच और फ्रांसीसी भी आसपास अपने व्यापार केंद्र खोल चुके थे.
तीन गांवों पर बसा एक शहर
अंग्रेजों ने जिस सूतनाटी में कारखाना स्थापित किया वो दलदल से भरा इलाका था. फिर भी समुद्री दृष्टि से डच और फ्रांसीसीयों से बेहतर जगह था. फिर कुछ समय बाद अंग्रेजों ने महज 1200 रुपयों में सूतानाटी, कालीकाता और गोविंदपुर के जमींदारी अधिकारों को इनके मालिकों से खरीद लिया. फिर तीनों गांवों की काया बदलने लगी और इनके सम्मिलित रूप को कलकत्ता कहा जाने लगा. अंग्रेजों ने यहीं अपनी पहली राजधानी स्थापित की.
तब ये फोर्ट विलियम था
1700 में कोलकाता बंगाल प्रेसीडेंसी की एक तरह से राजधानी बन गया. इसका नाम फोर्ट विलियम पड़ा. समुद्र के सामने फोर्ट विलियम के सामने जहाज लंगर डाले रहते थे. मुगल सम्राट अकबर के समय में ही अंग्रेजों ने भारत से व्यापारिक संबंध स्थापित कर लिए थे. इसी दौरान अंग्रेजों ने तत्कालीन मुगल बादशाह फर्रुखसियर से बंगाल में चुंगी का अधिकार हासिल कर लिया. इसके बाद तो कोलकाता का वैभव और बढ़ने लगा.
एक लाख की आबादी तब किसी शहर की नहीं थी
कोलकाता वो शहर था, जहां अंग्रेजों के जहाज लगे होते थे. ये समुद्री शहर बन गया. व्यापार का बड़ा केंद्र. हजारों टन माल आने और जाने लगा. लोग अब रोजगार की तलाश में यहां आने लगे. 1735 में यहां की आबादी 01 लाख हो गई जो उस समय के लिहाज से बहुत बड़ी बात थी. उस समय शायद ही देश में किसी नगर की आबादी इतनी अधिक थी.
1945 में देश के आजाद होने से पहले कोलकाता के चौरंगी लेन का नजारा. ये इलाका बता देता है कि ये शहर कितना समृद्ध और वैविध्य से भरा हुआ था. देश की आजादी के समय तक आर्थिक तौर पर भी ये शहर एक बड़ी हैसियत रखता था
जब कुछ और सालों या दशकों बाद अंग्रेज और मजबूत हुए तो कोलकाता व्यापार के साथ प्रशासन का भी केंद्र बन गया. अब तो इस शहर का वैभव, चहलपहल, महत्व और ताकत सब बढ़ गई. 1773 में बंगाल का गर्वनर वारेन हैस्टिंग्स को बना दिया गया. इस तरह कोलकाता पूरे अंग्रेजी साम्राज्य की राजधानी बन गया. ब्रिटेन तकरीबन सारी बड़ी कंपनियां यहां आफिस खोलने लगीं. यहां उनका कामकाज शुरू हो गया. आज भी अगर आप कोलकाता जाएंगे तो तमाम ऐसी कंपनियों को भारतीयों के स्वामित्व में देखेंगे, जिसको कभी अंग्रेजों ने यहां शुरू किया और उससे मोटा मुनाफा कमाते थे. ये कंपनियां हर क्षेत्र की थीं.
पहला विश्वविद्यालय यहीं खुला
ये शहर अपनी भव्य और शानदार इमारतों और सुंदरता के साथ इतराता था, जब देश के किसी भी शहर में रात में लैंप पोस्ट सड़कों के किनारे जगमगाते थे तो ये लोगों के बीच कौतुहल का विषय बन गया. देश की हर तकनीक एक समय तक यहां सबसे पहले पहले आई और इस शहर की सुविधाओं में शुमार हो गई. नए जमाने का पहला कोलकाता विश्वविद्यालय यहीं खुला, इसका स्तर भी बहुत ऊंचा था. आज भी यहां की पुरानी इमारतें इसके संपन्नता की कहानी कहती हैं.
हावड़ा ब्रिज जिसमें एक भी नट बोल्ट नहीं लगा
कोलकाता का नाम लेते ही जिस हावड़ा पुल की तस्वीर तुरंत दिमाग में उभरती है, वो अंग्रेजों के कौशल का साक्ष्य है. अदभुत बनावट. सैकड़ों सालों से ये आज भी वैसा है. ये हावड़ा और कोलकाता को जोडऩे वाली जीवनरेखा है. इस ब्रिज को बनाने में एक भी नट-बोल्ट का इस्तेमाल नहीं किया गया. उसके बावजूद इस ब्रिज से हर रोज़ करीब 01 लाख वाहन निकलते हैं. वैसे इस पुल के किनारे की शामें कोई कम सुंदर नहीं होतीं.
कोलकाता की खास पहचान हैं ट्राम
अगर हावड़ा ब्रिज कोलकाता की पहचान है तो दूसरी पहचान ट्राम. एक मंजिली और दो मंजिली बसों के अलावा यहां की सड़कों पर आज भी ट्राम चलती हैं. ट्राम पहले देश के दूसरे शहरों में भी चलती थीं लेकिन अब केवल कोलकाता में ही रह गई हैं.
बताते हैं कि एशिया में सबसे पहले ट्राम यहीं पर आईं. ये शहर की कई खूबसूरत जगहों से होकर गुजरती हैं. वैसे पास समय की कमी है तो ट्राम पर कोलकाता घूमने से अच्छा और कुछ नहीं है. हालांकि ये बड़ा और घना है कि कभी गंदगी से मुक्त नहीं हो पाया.
खेलों के लिए दीवानगी वाला शहर
इस शहर में चाय पर महफिलें सजती हैं. खेल के मैदानों में दीवानगी दिखती है. फुटबाल पर मार हो जाती है. कभी यहां पर मोहन बागान और ईस्ट बंगाल के बीच फुटबाल मैचों में बेहिसाब भीड़ इकट्ठा हो जाती थी. फुटबाल के स्टेडियम छोटे पड़ जाते थे. दोनों के समर्थकों के बीच खूब लड़ाइयों के भी किस्से हैं.
ईडेन गार्डन यहां का मुख्य स्टेडियम है. 1864 में बने इस ऐतिहासिक लैंडमार्क को कौन नहीं जानता. 50 एकड़ में फैले इस मैदान में लगभग एक लाख लोगों के बैठने की क्षमता है. ये दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा क्रिकेट ग्राउंड भी है. इस स्टेडियम का निर्माण ऑकलैंड ने करवाया था जो एक समय पर गवर्नर जनरल रहे थे.
जहां के चप्पे चप्पे में टैगोर बसे हैं
कोलकाता को सिटी ऑफ जाय बेशक कहा जाता है. शायद यहां के खानपान, नाच-गान, बाबू मोशाय लोगों की मस्तमौला जिंदगी के कारण. बंगाली भद्रलोक की भी यहां अलग ही दुनिया है. एक से एक शख्सियतें बंगाली भद्रलोक ने दी हैं, प्रसिद्ध क्रांतिकारियों से लेकर साहित्यकार और कलाकार तक. केशों में मालाएं गूथें बंगाली बालाओं की सुंदरता पर ना जाने कितने गीत यहां लिख दिए गए. टैगोर यहां रचे बसे हैं तो साहित्य और संगीत भी समाया हुआ है. वैसे कोलकाता के होटलों में कैबरे भी खूब होता है.
साहित्य और संगीत के सुर
साहित्य और किताबों की बात चली हो तो इतना जान लीजिए कि इस महानगर के कॉलेज स्ट्रीट को किताबों का मक्का कहा जाता है. दुनिया में ऐसी कोई किताब नहीं है जो यहां नहीं मिलेगी, वो यहां मिलेगी. नई से लेकर पुरानी तक. कहा जाता है कि अगर कोई किताब कॉलेज स्ट्रीट में ना मिले तो समझ जाइए ऐसी किताब कभी बनी ही नहीं. इंडियन कॉफी हाउस का मशहूर कैफे भी इसी जगह पर है.
वैसे कोलकाता भव्य पुरानी इमारतों, विक्टोरिया मेमोरियल, ताराग्रह, मारवाड़ी सेठों की शानदार कोठियों और राइटर्स बिल्डिंग के बगैर अधूरा है तो बंगाली खानपान के बगैर भी.
चाइनाटाउन का चार्म
चाइनाटाउन कोलकाता की जान है. यहां का अपना अलग ही चार्म है. इस इलाके में वो चाइनीज रहते हैं जो 100 साल से भी कहीं और पहले यहां आ बसे थे. अब यहां उनकी कई पीढ़ियां पैदा हो गईं. अब तो ये शहर उन्हीं का है. उनकी इस जगह ने आज भी अपनी परंपराओं और संस्कृति को बचाकर रखा है. यहां पर बंगाली और चाइनीज खाने का इतना पक्का रिश्ता बन गया है कि लगेगा ही नहीं भारत में भी इतना अच्छा चाइनीज खाना मिल सकता है. ये मार्केट सुबह केवल तीन घंटों के लिए खुलता है.
ओहो रोशोगुल्ला
लेकिन कोलकाता की जान बसती है रोशोगोल्ला में, जो केवल मिठाई नहीं है बल्कि इस शहर की आन-बान और शान भी है. इस मिठाई को अब जी आई टैग से भी सम्मानित किया जा चुका है. अगर आप भी मिठाइयों के शौकीन हैं तो कोलकाता शहर आपके लिए किसी छप्पनभोग से कम नहीं.
कुल मिलाकर ये ऐसा शहर है जहां इतिहास बहुत करीने के साथ मौजूदा समय के साथ कदम मिलाकर चलता दिखता है. लोग कहते हैं कि ये शहर सबको आसरा देता है. आमतौर पर यहां खाना सस्ता है और जीवन गुजारना भी आमतौर पर सस्ता. मतलब ये शहर हर पॉकेट वाले के लिए है. किसी जमाने में बिहार, ओडिसा और नार्थ ईस्ट से बड़े पैमाने पर लोग नौकरी करने आते थे. उसमें ज्यादातर इस शहर के वाशिंदे हो गए हैं. मतलब ये भी कि ये शहर हर धर्म और राज्य के लोगों के साथ बहुत समृद्ध संस्कृतियों के साथ जीने वाला शहर है.
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