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ऑफिस नियमों में बदलाव की उठी मांग, कहा कुत्तों की मौत पर भी मिलनी चाहिए मालिक को छुट्टी
Ritisha Jaiswal
26 July 2022 1:30 PM GMT
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इंसान और जानवर के बीच का रिश्ता काफी करीबी होता है. खासकर जब इंसान अपने पालतू प्यारे से जानवर को बचपन से पालता है.
इंसान और जानवर के बीच का रिश्ता काफी करीबी होता है. खासकर जब इंसान अपने पालतू प्यारे से जानवर को बचपन से पालता है. उसे बच्चे की तरह पाल-पोसकर बड़ा करता है.उसके साथ खेलता है. मस्ती करता है. इसके बाद एक समय के बाद जानवर अपनी जिंदगी पूरी कर मौत के मुंह में समा जाता है. ये किसी भी पेट ओनर के लिए सबसे मुश्किल समय होता हैं. जिस जानवर के साथ उसने इतना समय बिताया उसका चले जाना किसी तरह के सदमे से कम नहीं होता. आमतौर पर ज्यादातर संस्थान अपने कर्मचारियों को उनके प्रियजनों, जिसमें फैमिली मेंबर्स शामिल हैं, कि मौत पर छुट्टियां देते हैं. लेकिन अब एक पेट चैरिटी ने जानवर की मौत पर भी ऐसी छुट्टी दिए जाने की मांग की है.
इस पेट चैरिटी ने कहा है कि जब इंसान अपने चार पैरों वाले प्यारे जानवर को खो देता है, तो उसका दुःख भी बिलकुल इंसानों को खोने जैसा होता है. इस वजह से उनके जाने के गम को भुलाने के लिए भी छुट्टी मिलनी चाहिए. इसे लेकर कई कंपनियों से संपर्क किया गया है. इसमें कहा गया है कि जब कभी उनके कर्मचारी अपने पालतू जानवर को खो दें, तो उन्हें इस दुःख से उबरने के लिए छुट्टी दी जानी चाहिए. इस कैंपेन को आइरिश ब्रांच ऑफ डॉग्स ट्रस्ट ने शुरू किया है. इसकी वजह से अपने जानवर को खोने के बाद सीधे ऑफिस आने की जगह लोग उसके जाने के गम से उबरने की कोशिश करेंगे.
इंसानों को खोने जितना ही होता है दुःख
Independent में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक़, पालतू जानवर को खोने पर इंसान को उतना ही दुःख होता है जितना अपने सगे रिश्तेदार को खोने पर. इस रिपोर्ट में एक स्टडी का हवाला दिया गया, जिसके मुताबिक़, अपने प्यारे जानवर को खोने के बाद 70 प्रतिशत लोग सदमे या डिप्रेशन में चले जाते हैं. इस कैंपेन के जरिये डिमांड की गई कि अगर किसी कर्मचारी का पालतू जानवर मर जाता है तो उसे पूरे दिन की सैलरी छुट्टी के साथ दी जाए. ताकि इंसान भी इस लॉस को भरकर वापस काम पर लौटे.
की गई है गहन रिसर्च
चैरिटी ने इस बारे में गहन अध्ययन किया. इस स्टडी में उन्होंने करीब 28 सौ पालतू जानवरों एक मालिकों से सवाल-जवाब किया. इसमें सामने आया कि करीब 90 प्रतिशत लोग उसी दुःख से गुजरे जितना अपने किसी रिश्तेदार की मौत पर होता है. इसके अलावा तीन चौथाई ने माना कि उनके फोन में उनसे ज्यादा उनके कुत्तों की तस्वीर थी. इसके अलावा करीब 58 प्रतिशत लोगों को अपने पेट के जाने के गम को भूलने में सालभर का समय लगा. अब इस कैंपेन के जरिये इन लोगों को अपना दुःख भुलाने के लिए समय देने की मांग की जा रही है. देखते हैं इस कैंपेन का क्या नतीजा निकलता है?
Ritisha Jaiswal
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