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दुनियाभर के वैज्ञानिक अंतरिक्ष के रहस्यों के बारे में पता लगाने की कोशिश में जुटे हैं
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | दुनियाभर के वैज्ञानिक अंतरिक्ष के रहस्यों के बारे में पता लगाने की कोशिश में जुटे हैं। अंतरिक्ष को लेकर वैज्ञानिक आए दिन नए खुलासे कर रहे हैं। अब इस बीच वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि उन्होंने चांद के भाई को खोज लिया है। उन्होंने बताया है कि चांद का भाई धरती की ही कक्षा में घूम रहा है। वैज्ञानिक मानते हैं कि मंगल ग्रह के आकार की किसी वस्तु की धरती से टक्कर हुई थी जिसके बाद चांद का निर्माण हुआ था। अतंरिक्ष के खूबसूरत उपग्रहों में चांद शामिल है।
धरती के बेहद करीब मौजूद चांद पर 1969 में ही इंसानों ने कदम रखा था। अब वैज्ञानिकों ने कहा कि अंतरिक्ष में सिर्फ चांद ही अपने तरह का एक उपग्रह नहीं है। उन्होंने एक ऐस्टेरॉयड को खाजा है जिसके बारे में उनका कहना है कि वह चांद का टुकड़ा हो सकता है। आईए जानते हैं वैज्ञानिकों द्वारा खोज गए चांद के भाई के बारे में...
आकार में छोटा होने से नहीं आता है नजर
वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि यह क्षुद्रग्रह बहुत छोटे आकार है जिसके बार में बहुत अधिक जानकारी नहीं मिली है। छोटा होने की वजह से यह नजर नहीं आता है। वैज्ञानिकों ने इसको कमूआलेवा (Kamooalewa) नाम दिया है। धरती के पास 5 ऐसे ऑब्जेक्ट्स की वैज्ञानिकों ने खोज की है।
नेचर कम्युनिकेशंस की तरफ से इसको लेकर एक रिपोर्ट प्रकाशित की गई है। अंतरिक्ष यात्रियों की एक टीम ने बताया है कि यह ऐस्टेरॉयड धरती से सिर्फ कुछ समय के लिए दिखता है। यह अप्रैल में कुछ हफ्तों के लिए नजर आता है। वैज्ञानिकों ने इस ऐस्टेरॉयड की गतिविधियों पर दक्षिणी एरिजोना में एक बड़े बाइनोकूलर टेलीस्कोप से नजर रखा।
पाच साल पहले पहली बार आया था नजर
चांद के भाई यानी इस ऐस्टेरॉयड को साल 2016 में वैज्ञानिकों ने पहली बार देखा था और इसे हवैइन नाम दिया था। 150 से 190 फीट के बीच इस क्षु्द्रग्रह का व्यास है। यह धरती से लगभग 90 लाख माइल की दूरी पर स्थित है।
वैज्ञानिकों को कैसे पता चला ये चांद का भाई
इस ऐस्टेरॉयड की प्रकृति चांद की तरह है। ऐरिजोना यूनिवर्सिटी में साइंस के छात्र और इस पर रिसर्च लिखने वाले बेन शार्की ने यह बात कही है। उन्होंने कहा कि कमूआलेवा से मिलता जुलता है। यह भी रोशनी को रेफलेक्ट करता है। इसकी बनावट भी चांद की तरह है जिसकी वजह वैज्ञानिक इसको चांद का हिस्सा मान रहे हैं। शार्की ने बताया है कि धरती के पास स्थित सभी ऐस्टेरॉयड को ध्यान से देखा गया है, लेकिन यह किसी से भी नहीं मिलता है। उन्होंने बताया कि पहले इस पर शक था, लेकिन अप्रैल में इसकी काफी जांच की गई, तो पता चला कि यह वास्तविक है।
उन्होंने बताया है कि चांद से ही कमूआलेवा की उत्पत्ति हुई है जिसके संकेत मिले हैं। यह धरती के जैसे ही एक कक्षा में घूम रहा है और यह थोड़ा झुका है। इस रिसर्च में बेन शार्की की सहायक लेखिका रेनू मलहोत्रा का कहना है कि धरती के पास मौजूद ऐस्टेरॉयड अपनी कक्षा को खूद बदल लेते हैं। उनका मानना है कि जिस कक्ष में भ्रमण कर रहा है वह उसमें लगभग 300 सालों तक ही भ्रमण करेगा और इस कक्षा में यह करीब 500 साल पहले आया है।
Ritisha Jaiswal
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