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दशकों से परंपरा को मानते आ रहे यहां के लोग, गांव में घोड़ी पर नहीं बैठने के पीछे का क्या है राज

Tulsi Rao
21 May 2022 3:38 AM GMT
दशकों से परंपरा को मानते आ रहे यहां के लोग, गांव में घोड़ी पर नहीं बैठने के पीछे का क्या है राज
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जनता से रिश्ता वेबडेस्क। यहां दूल्हा भी है और दुल्हन भी, घर में मेहमानों के लिए है लजीज पकवान भी, गाने भी हैं और नाचते बाराती भी. घर में हर तरफ खुशियों का माहौल है, क्योंकि घर में शादी है, लेकिन यह क्या? बारात निकल रही है और दूल्हा घोड़ी पर नहीं बैठा, बल्कि पैदल चलकर जा रहा है. यह मामला है राजस्थान के सरदारशहर तहसील स्थित पूलासर गांव का. इस गांव में जिसकी भी शादी होती है, सभी दूल्हे बिना घोड़ी के ही बारात निकालते हैं. ऐसा नहीं है कि यहां पर शादी करने वाले दूल्हे कोई दलित समाज से हैं, जिन पर ऊंची जाति के लोगों ने घोड़ी पर बैठने पर पाबंदी लगा रखी हैं और न ही इन दूल्हों पर कोई कानूनी बंदिश है बल्कि यह कहानी गांव के हर दूल्हे की है.

दरअसल, यह दास्तां सरदारशहर से 9 किलोमीटर दूर पूलासर गांव की है. ऐसा दावा है कि यहां पिछले 400 सालों से कोई भी दूल्हा घोड़ी पर नहीं बैठा है. गांव वालों की यह परंपरा कई सालों से चली आ रही है. कई पीढ़ियां बीत चुकी है लेकिन फिर भी इस गांव में बच्चे से लेकर बुजुर्ग ने आज तक किसी भी दूल्हे को घोड़ी पर बैठे हुए नहीं देखा है. गांव वालों का मानना है कि यह परंपरा हमारे गांव में सालों से चली आ रही है, जिसे हम निभा रहे हैं हमारे दादा-परदादा भी कभी भी घोड़ी पर नहीं बैठे थे और हम भी घोड़ी पर नहीं बैठे.
यह परंपरा गांव में बने लोक देवता दादोजी महाराज से जुड़ी हुई है. इसी के चलते यह गांव के शादी में दूल्हा घोड़ी पर नहीं बैठता है. यह परंपरा आस-पास के क्षेत्र में चर्चा का विषय बनी रहती है.
दशकों से परंपरा को मानते आ रहे यहां के लोग
ऐसा कहा जाता है कि आज से 675 साल पहले इस गांव को पुलाराम सारण नाम के व्यक्ति ने बसाया था. गांव काफी बड़ा है और ज्यादातर परिवार व्यापार करते हैं. गांव में आधी से ज्यादा आबादी ब्राह्मण जाति की है. गांव में अनेकों देवी-देवताओं के मंदिर है जो गांव की शोभा बढ़ाते हैं. इस मामले में दुल्हन ने बताया कि हमारे गांव में शादी में घोड़ी पर नहीं बैठने की परंपरा दशकों से चली आ रही है. इस चीज का अफसोस तो होता है, लेकिन खुशी भी है कि हम गांव की परंपरा को आज भी निभा रहे हैं.
गांव में घोड़ी पर नहीं बैठने के पीछे का क्या है राज
कहा जाता है कि 400 साल पहले उगाराम नाम का व्यक्ति था, उसी व्यक्ति की वजह से गांव में दूल्हे को घोड़ी पर नहीं बैठने की परंपरा जुडी हुई है. गांव के बड़े बुजुर्ग बताते हैं कि पूलासर गांव पहले स्वतंत्र गांव था लेकिन बीकानेर के तत्कालीन राजा ने पूलासर गांव से कर मांगा इस पर ग्रामीणों ने यह कह कर 'कर' देने से मना कर दिया कि यह पूरा गांव ब्राह्मणों का है और ब्राह्मण पूजा पाठ करके अपना जीवन यापन करते हैं, लेकिन राजा नहीं माना और बीकानेर से अपनी सेना लेकर गांव पर चढ़ाई कर दी. इस पर उगाराम घोड़ी पर बैठकर राजा के सामने ही चला गया. राजा से उगाराम ने निवेदन किया कि वह कर गांव से ना ले, लेकिन राजा नहीं माना. अंत में उगाराम ने अपना शीश काटकर थाली में राजा को कर के रूप में दे दिया. तभी से ग्रामीणों की उगाराम में आस्था बन गई.
सरदारशहर से पूर्व दिशा में 9 किलोमीटर दूर पूलासर है वहीं दक्षिण दिशा में 5 किलोमीटर पर छोटी सवाई गांव बसा है. इन दोनों गांवों के बीच महज 15 किलोमीटर की दूरी है, उसी घटना से दूल्हे को घोड़ी पर नहीं बिठाने की परंपरा गांव में शुरू हो गई. पूलासर गांव के लोग आज भी छोटी सवाई गांव का पानी नहीं पीते है.
दादोजी महाराज का आज भी गांव में है मंदिर
उगाराम को गांव के लोग आज दादोजी महाराज के नाम से जानते है. और श्रद्धा से दादोजी महाराज की पूजा करते हैं. दादोजी महाराज का गांव के बीचों-बीच मंदिर है, जो गांव वालों के लिए आस्था का केंद्र है. गांव के लोगों की इस मंदिर के प्रति गहरी श्रद्धा है और गांव वालों का मानना है कि दादोजी महाराज हमें हर विपदा से बचाते हैं. इस मंदिर की भी एक खास बात यह है इस मन्दिर में कोई मूर्ति या फोटो नहीं है. यहां के लोग दादोजी महाराज की चरण पादुकाओं को पूजते है, जो इस मन्दिर में स्थित है.


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