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नई दिल्ली: उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना ने जब से पदभार संभाला है तब से लगातार दिल्ली को बेहतर की दिशा में कार्य कर रहे हैं. इसी कड़ी में एलजी ने नजफगढ़ ड्रेन का दौरा किया. वैज्ञानिक प्रणाली पर आधारित 'पार्शियल ग्रेविटेशनल डी-सिल्टिंग' द्वारा किए जा रहे नाले की सफाई के कार्यों का निरीक्षण किया. हाल ही में इस प्रणाली द्वारा नाले की सफाई के लिए शुरू किया गया. यह कार्य न केवल स्थायी है अपितु पहले के मुकाबले यह प्रणाली कम लागत की है.
नजफगढ़ ड्रेन की सफाई को लेकर इस तरह की प्रणाली का प्रयोग पहली बार किया गया है. इसका सुझाव दिल्ली के एलजी द्वारा दिया गया था. इसी प्रणाली के तहत गुजरात में भी बड़ी संख्या में ड्रेन को साफ किया गया है. दिल्ली के एलजी को गुजरात के बंदरगाहों में ड्रेजिंग के कार्य का व्यापक अनुभव है. वहा पर इसी पद्धति द्वारा उन्होंने गुजरात के बंदरगाहों के ड्रेजिंग के कार्य को पारंपरिक पद्धति (मैन्युल रूप) से मुक्त कर उधारण रखा था. एलजी ने खुद पंजाबी बाग के नजदीक स्थित नाले (नजफगढ़ ड्रेन) में मोटर बोट द्वारा प्रवेश किया. जहां उन्होंने लगभग एक घंटे तक एक किलोमीटर क्षेत्र में चल रहे ड्रेजिंग के कार्यों का निरीक्षण किया. आज तक के इतिहास में नजफगढ़ ड्रेन में प्रवेश करने वाले वह दिल्ली के पहले उपराज्यपाल हैं. पदभार संभालने के तुरंत बाद से ही उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि नजफगढ़ ड्रेन की सफाई की जाए ताकि इनको ईको-टुरिज्म हब में विकसित किया जा सके.
पार्शियल ग्रेविटेशनल डी-सिल्टिंग' पद्धति के द्वारा सिल्ट को तोड़ा और मथ दिया जाता है और ड्रेन में बह रहे पानी इस सिल्ट को अपने साथ बहा कर ले जाता है. जमा/एकत्रित हुए सिल्ट को मथने का कार्य नाव में लगे रेकर और स्पाइक यंत्र द्वारा किया जाता है. नाव में लगे संशोधित उपकरण नाले के अंदर तक के सिल्ट को मथ/ तोड़ देते हैं. पानी का बहाव तेज होने पर यह सिल्ट स्वतः नाले के पानी के साथ बह जाती है. नजफगढ़ ड्रेन की लम्बाई 57 कि.मी. है, जिसमें 121 छोटे ड्रेन के सीवेज गिरते हैं. नाले में हर वर्ष 2 से 2.5 लाख घन मीटर गाद जमा होती है और वर्तमान में लगभग 85 लाख घन मीटर गाद नाले में जमा है. इसके परिणामस्वरूप नाले में पिछले 40-50 वर्षों में दो बड़े टीले भी बन गए हैं, जिनमें कुल 45 लाख क्यूबिक मीटर गाद है. नजफगढ़ नाले का सफाई और गाद निकालने के कार्य के लिए मुख्य रूप से सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण विभाग जिम्मेदार है. इस कार्य के लिए विभाग के पास सीमित संसाधन है जहां केवल 3 फ्लोटिंग उपकरण शामिल हैं, जिससे केवल 60-65 लाख क्यूबिक मीटर गाद निकाला जा सकता है. इस गति से चलते हुए नजफगढ़ ड्रेन के पूरे डी-सिल्टिंग में 50 वर्ष से अधिक का समय लग सकता है. नजफगढ़ ड्रेन का बेड स्लोप कहीं 28.5 किलो मीटर में एक मीटर है तो कहीं 2 किलो मीटर के क्षेत्र में एक मीटर है. इसके अलावा ककरोला में बेड स्लोप में छह मीटर तक की गिरावट आती है. इसी वजह से इन स्थानों पर जहां अधिक ढाल के कारण पानी का प्रवाह अपेक्षाकृत अधिक हैं. वहां पर सिल्ट को उपरोक्त प्रणाली द्वारा तोड़ने और मथने के कार्य की अवधारणा की गई है. बहाव के कारण उत्पन्न हुई ग्रेविटी से सिल्ट निकालने का कार्य किया जा रहा है.
गौरतलब है कि इससे पहले भी चार जून को दिल्ली के एलजी ने नजफगढ़ ड्रेन का दौरा किया था. उस समय एलजी ने अधिकारियों को नाले की सफाई के साथ कुछ जरूरी सुझाव भी दिए थे, जिसमें जगह को ईको-टुरिज्म हब में परिवर्तित करने और इस स्थान पर लोगों के लिए वाटर स्पोर्टस और बोट राइड जैसी मनोरंजक गतिविधियों की तर्ज पर विकसित करने का सुझाव शामिल है. इसके बाद समीक्षा बैठक मे एलजी और मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने समयबद्ध तरीके से नाले की व्यापक डी-सिल्टिंग और ड्रेजिंग करने पर सहमति व्यक्त की थी.