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कार्यवाही रिकॉर्ड करने पर कोर्ट सख्त,नोटिस जारी कर स्पष्ट करने का निर्देश दिया
न्यूज़ क्रेडिट:amarujala
अदालत ने बच्चों के पिता को नोटिस जारी कर स्पष्ट करने का निर्देश दिया है कि उसने क्या कार्यवाही को रिकार्ड किया है या नहीं। दरअसल, बच्चों की कस्टडी के मामले में बच्ची ने अदालत को बताया कि पिता ने चैंबर में जाते समय उसकी जेब में मोबाइल रख दिया था और उसी के डर से उसने पिता के साथ रहने की इच्छा जताई थी।
अदालत ने अपने चैंबर में दो नाबालिग बच्चों से एक मामले में पूछताछ करने की कार्यवाही को पिता द्वारा मोबाइल फोन से रिकार्ड करने के रवैये को गंभीरता से लिया है। अदालत ने बच्चों के पिता को नोटिस जारी कर स्पष्ट करने का निर्देश दिया है कि उसने क्या कार्यवाही को रिकार्ड किया है या नहीं। दरअसल, बच्चों की कस्टडी के मामले में बच्ची ने अदालत को बताया कि पिता ने चैंबर में जाते समय उसकी जेब में मोबाइल रख दिया था और उसी के डर से उसने पिता के साथ रहने की इच्छा जताई थी।
मेट्रो पॉलिटन मजिस्ट्रेट (महिला कोर्ट) दीपिका गोयल शौकीन घरेलू हिंसा के मामले की सुनवाई कर रही हैं। एक महिला ने अपने पति के खिलाफ महिला संरक्षण अधिनियम के तहत मामला दर्ज कराया और अपने दोनों नाबालिग बच्चों की कस्टडी की मांग करते हुए अंतरिम राहत के लिए अर्जी दाखिल की थी। कस्टडी का निर्णय करने से पहले अदालत ने दोनों बच्चों को उनकी राय जानने के लिए चैंबर में बुलाया।
चैंबर में बेटे ने जज से कहा कि वह मां के साथ रहना चाहता है, जबकि बेटी ने पिता के साथ रहने का फैसला किया। इसके तुरंत बाद पिता ने कहा कि उनकी तबीयत खराब है और वह कार्यवाही छोड़कर घर चला गया। कक्ष में कार्यवाही के ठीक बाद बेटी ने अपना निर्णय बदल दिया और न्यायाधीश से कहा कि वह अपनी मां के साथ रहना चाहती है। जब न्यायाधीश ने उससे पूछा कि उसने अपना फैसला क्यों बदला तो लड़की ने बताया कि उसके पिता ने उसके भाई की जेब में एक मोबाइल फोन रखा था।
हाईकोर्ट ने एक एनजीओ को दुष्कर्म पीड़िता से मिलने की अनुमति दी
उच्च न्यायालय ने यूनाइटेड सिख (संयुक्त राष्ट्र से संबद्ध संगठन) नामक एक गैर सरकारी संगठन को सामूहिक दुष्कर्म पीड़िता से मिलने की अनुमति प्रदान कर दी। साथ ही अदालत एनजीओ को चेतावनी दी कि आपराधिक न्याय प्रणाली की विकृति से बचने के लिए घटना को राजनीतिक रंग नहीं दिया जाना चाहिए, और न ही संदर्भ से बाहर कोई धार्मिक प्रतिबिंब जोड़ा जाना चाहिए। न्यायमूर्ति अनूप कुमार मेंदीरत्ता ने कहा कि वर्तमान में दिल्ली सरकार व पुलिस के रुख के अनुसार किसी भी सहायता प्रदान करने के लिए पीड़ित के साथ किसी व्यक्ति या संगठन की बैठक में कोई प्रतिबंध या रोक नहीं है।