हस्तिनापुर बचाने मैदान में उतरे भीष्म, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य और विदुर
रायपुर प्रेस क्लब चुनाव पार्षद चुनाव से भी छोटा चुनाव लगभग 900 मतदाता, लेकिन पे्रस क्लब की प्रतिष्ठा और रुतबे के कारण प्रत्याशी जी जान से खंदक की लड़ाई लड़ रहे हैं। क्योंकि पे्रस क्लब का चुनाव मान सम्मान के साथ और बेताशा अतिरिक्त कमाई भी कराता है। शासन-प्रशासन और अधिकारियों में रुतबा और धौंस …
रायपुर प्रेस क्लब चुनाव
पार्षद चुनाव से भी छोटा चुनाव लगभग 900 मतदाता, लेकिन पे्रस क्लब की प्रतिष्ठा और रुतबे के कारण प्रत्याशी जी जान से खंदक की लड़ाई लड़ रहे हैं। क्योंकि पे्रस क्लब का चुनाव मान सम्मान के साथ और बेताशा अतिरिक्त कमाई भी कराता है। शासन-प्रशासन और अधिकारियों में रुतबा और धौंस जमा कर अपना उल्लू सीधा कर अनाप सनाप अतिरिक्त सुविधा और लाभ लेने की प्रथा सालों से चली आ रही है। अब हाल यह है कि प्रस के पदाधिकारी नियुक्त होने बाले अपने साथी पत्रकारों के हित को नजर अंदाज कर अपने हित साधने में ही तत्पर रहते हैं।
रायपुर। इन दिनों प्रेस क्लब के चुनाव हो रहे हैं और इस चुनाव में प्रेस क्लब को बचाने का आह्वान करते हुए कभी सामाजिक स्तर पर बने दिग्गजों ग्रुप ने चुनावी कमान संभाल ली है, अपनी एकता और राजनीतिक कौशल की वजह से प्रेस क्लब के सबसे पुराने पत्रकारों का ग्रुप की भूमिका को अनदेखा नहीं किया जा सकता है एक स्थान विशेष से शुरू हुआ ये ग्रुप इन 35 -40 सालों में एक पैनल का विधिवत आकार लेकर प्रेस जगत में काम कर रहा है। प्रेस क्लब के चुनाव में अब तक इस ग्रुप का अप्रत्यक्ष दखल हर बार रहा है लेकिन पहली बार है कि इस ग्रुप में सार्वजनिक रूप से विधिवत बैठक आहूत कर,अपने पसंदीदा उम्मीदवार को जीतने का आह्वान कर दिया है, वजह बताई गई है प्रेस क्लब को बचाना है, एक धार्मिक स्थल पर सामाजिक समीकरण के आधार स्तंभ दिग्गज पत्रकार नेताओं ने यह बैठक बुलाई, जिसमें ये फरमान सुना दिया गया कि पैनल के लोगों को जिताकर प्रेस क्लब बचाना है, बैठक की खबरें सार्वजनिक की गई,,फोटो वायरल कर ताकत का एहसास कराया गया, ये सब प्रेस क्लब के चुनाव के मद्देनजर नजर किया गया। पूरे घटनाक्रम को अगर सिलसिले वार देखें तो बरबस महाभारत के युद्ध की याद आ जाता है, जिसमें अक्षौणी सेना के साथ कर्तव्य पथ का हवाला देकर भीष्म द्रोणाचार्य, कृपाचार्य युद्ध मैदान में कूद पड़ते हैं।
धर्म-अधर्म सब कुछ जानते हुए भी दिग्गज महाभारत का युद्ध लड़ते हैं उस समय उनका एक मात्र उद्देश्य हस्तिनापुर को बचाना होता है। पर महाभारत के युद्ध में लडऩे वाले इन महान लेकिन वरिष्ठतम योद्धाओं के इस शौर्य भरे कदम की आलोचना इसलिए भी होती है क्योंंकि इन योद्धाओं ने अपना यह साहस, उस समय नहीं दिखाया जब द्रोपदी को धृत क्रीड़ा मे दांव पर लगाया जा रहा था, द्रोपदी का चीर हरण होता रहा, उस समय ये दिग्गज मौन रहते है । लेकिन युद्ध लडऩे में यही लोग सामने रहते हैं। ऐसा ही घटनाक्रम इन दिनों प्रेस क्लब में भी होता दिख रहा है चुनाव है तो दिग्गजों ने अस्त्र-शस्त्र तैयार कर,सेना के साथ मैदान में उतर कर शंखनाद कर दिया है। जीत की हुंकार भरी जा रही है, पर यह लोग उस समय ऐसी बैठक करते हुए नहीं दिखाई दिए जब पिछली कार्यकारिणी का कार्यकाल खत्म होने के बावजूद एक, नहीं दो नहीं तीन नहीं चार नहीं पांच साल ऐसे गुजर गए थे।
कोई बोलने सामने नहीं आया! किसी ने एकता दिखाने की बैठक नहीं की, इन दिग्गजों की ओर से एक वक्तव्य नहीं आया! द्रोपदी की तरह हालत प्रेस क्लब की रही, लेकिन लाचार भीष्म, द्रोणाचार्य और कृपाचार्य, विदुर चुप रहे। आज सामने सत्ता सिंहासन बचाने की लड़ाई दिख रही है तो सब आ गए हैं। यही साहस अगर पहले दिखाया होता तो प्रेस क्लब 5 साल पीछे नहीं चला गया होता, ऐसे में भले ही इन दिग्गजों का उद्देश्य अपने अनुजों की सत्ता प्राप्ति का हो, पर इन दिग्गजों के इस प्रयास को देर आये पर दुरुस्त आए ही कह सकते हैं। बहरहाल सबसे मजबूत पैनल के सबसे मजबूत खिलाडिय़ों ने मोर्चा संभाल लिया है, अब देखना है कि चुनाव में जीत भीष्म की होती है या फिर अर्जुन की!