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जैविक खेती के लिए वर्मी कम्पोस्ट काफी महत्वपूर्ण है, जाने

Bhumika Sahu
20 Feb 2022 1:13 AM GMT
जैविक खेती के लिए वर्मी कम्पोस्ट काफी महत्वपूर्ण है, जाने
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जैविक खेती के रकबा में बढ़ोतरी के चलते वर्मी कम्पोस्ट की मांग भी तेजी से बढ़ी है. यहीं कारण है कि कुछ किसान जैविक खेती के साथ पशुपालन भी करते हैं और इस खाद को तैयार करते हैं. इससे उन्हें अच्छा मुनाफा हो रहा है.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। केंद्र सरकार जैविक खेती (Organic Farming) को बढ़ावा दे रही है. वहीं स्वास्थ्य के प्रति बढ़ते जागरूकता के कारण जैविक उत्पादों की मांग बढ़ रही है. भारत में काफी तेजी से जैविक खेती का रकबा बढ़ रहा है. कई राज्य तो जैविक खेती को प्रोत्साहित करने के लिए विशेष अभियान चला रहे हैं. मांग और समय की जरूरत को देखते हुए जैविक खेती किसानों (Farmers) के लिए आमदनी का एक बेहतर जरिया बनता जा रहा है. साथ ही जैविक खेती के लिए जरूरी वर्मी कम्पोस्ट (Vermicompost) खाद से भी किसान भरपूर कमाई कर रहे हैं.

जैविक खेती के लिए वर्मी कम्पोस्टं खाद काफी अहम है. जैविक खेती के रकबा में बढ़ोतरी के चलते इसकी मांग भी तेजी से बढ़ी है. यहीं कारण है कि कुछ किसान जैविक खेती के साथ पशुपालन भी करते हैं और इस खाद को तैयार करते हैं. इससे उन्हें अच्छा मुनाफा हो रहा है.
वर्मी कम्पोस्ट एक तरह का खाद है. इसे केंचुआ खाद भी कहते हैं. हरियाणा के रेवाड़ी जिले में कुछ किसान वर्मी कम्पोस्ट तैयार कर बिक्री करते हैं. वर्तमान में उन्हें हर महीने लाखों में कमाई हो रही है. यहां के किसानों को देश के कई राज्यों से ऑर्डर मिलते हैं. वे कहते हैं कि हम सिर्फ खाद बेचते ही नहीं हैं बल्कि किसानों को वर्मी कम्पोस्ट तैयार करने का प्रशिक्षण भी देते हैं.
वर्मी कम्पोस्ट बनाने की विधि
इस खाद को तैयार करने के लिए सबसे जरूरी अवयव गोबर है. इसे बनाने के लिए किसान गोबर को गोलाई में इकट्ठा किया जाता है और इसमें केंचुआ छोड़ा जाता है. इसे किसान जूट के बोरे से ढ़क देते हैं और ऊपर से पानी का छिड़काव करते हैं ताकि नमी की मात्रा बनी रही. कुछ दिन बाद केंचुए गोबर को वर्मी कम्पोस्ट में बदल देते हैं.
क्यों बढ़ रही है वर्मी कम्पोस्ट की मांग?
गोबर से तैयार वर्मी कम्पोस्ट में सभी पोषक तत्व मौजूद रहते हैं. इसके इस्तेमाल से मिट्टी की उर्वरा शक्ति में बढ़ोतरी होती है, जिससे किसानों को अधिक पैदावार मिलती है. वहीं इससे पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर असर नहीं पड़ता. रसायनिक खाद के मुकाबले यह सस्ता है. ऐसे में कृषि लागत में कमी आ जाती है, जिससे किसानों की आमदनी में इजाफा हो जाता है.


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