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बच्चों को टेलीफोन देने की सही उम्र?

Sonam
14 July 2023 4:42 AM GMT
बच्चों को टेलीफोन देने की सही उम्र?
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बच्चे को Smart Phone देने की ठीक उम्र क्या है? ये एक ऐसा प्रश्न है जो हर उस पेरेंट के मन में आता होगा जिसका बच्चा Smart Phone की जिद करता होगा या जिसके दोस्तों-रिश्तेदारों के हमउम्र बच्चे Smart Phone लेकर चलते हैं।

हाल के वर्षों में ये देखा गया है कि जब बच्चा जिद करता है या रोता है तो उसे चुप कराने के लिए उसके पेरेंट्स उसे टेलीफोन पकड़ा देते हैं। बच्चा कभी टेलीफोन पर वीडियोज स्क्रोल करता दिखता है या फिर गेम्स खेलते। पेरेंट्स का टेलीफोन मांगने की जिद करने वाले बच्चे धीरे-धीरे अपने लिए अपना अलग Smart Phone मांगने की जिद करने लगते हैं। कई बार जिद में बच्चे खाना-पीना तक छोड़ देते हैं।

बच्चों को टेलीफोन देने की ठीक उम्र क्या है?

अमेरिका के नॉन प्रॉफिट मीडिया संगठन नैशनल पब्लिक रेडियो यानी NPR ने बच्चों को Smart Phone देने की ठीक उम्र को लेकर एक लेख प्रकाशित किया है। इसमें स्क्रीन टाइम कंसल्टेंट एमिली चेरकिन ने अपनी राय रखी है। एमिली का बोलना है कि बच्चों को Smart Phone देने या सोशल मीडिया का एक्सेस देने में आप जितनी देरी कर सकते हैं, उतना अच्छा है।

वो कहती हैं, “मैं कई पेरेंट्स से मिलती हूं, कभी किसी पेरेंट ने नहीं बोला कि काश मैंने अपने बच्चे को टेलीफोन पहले दे दिया होता। कभी भी नहीं। इन फैक्ट पैरेंट्स कहते हैं कि काश वो थोड़ा और रुके होते, काश अभी जो उन्हें पता है वो पहले पता होता।”

बच्चों को Smart Phone देने के खतरे क्या हैं?

एक और नॉन प्रॉफिट संस्था कॉमन सें मीडिया के एक सर्वे में सामने आया था कि 11 से 15 वर्ष की 1300 में से 60 प्रतिशत लड़कियों को स्नैपचैट पर अनजान लोगों ने कॉन्टैक्ट किया और असहज कर देने वाले मैसेज भेजे। टिक टॉक यूज करने वाले 45 प्रतिशत लड़कियों के साथ ये हुआ। सोशल मीडिया ऐसे कॉन्टेंट से भरा पड़ा है जो बच्चों के लिए अनुकूल नहीं हैं। इनमें सेक्शुअल कॉन्टेंट, मारधाड़ से जुड़े कॉन्टेंटे, सेल्फ हार्म से जुड़े कॉन्टेंट शामिल हैं। इसके साथ ही हर प्लेटफॉर्म पर इनबॉक्स में आने वाले आपराधिक प्रवृत्ति के लोग भी भरे पड़े हैं जो बच्चों के साथ घिनौनी बातें करते हैं। इन सबका बच्चों की मेंटल हेल्थ पर बुरा असर पड़ता है।

स्मार्टफोन के विकल्प क्या हैं?

– बच्चों को आवश्यकता पड़ने पर अपना टेलीफोन दें, ताकि वो अपने दोस्तों से बात कर सकें या उन्हें मैसेज कर सकें।

– उन्हें Smart Phone देने की स्थान ऐसा टेलीफोन दें जिससे सिर्फ कॉल और SMS किए जा सकें। बाजार में डम्ब टेलीफोन भी उपस्थित हैं, जो दिखते Smart Phone जैसे हैं, लेकिन उनमें सर्विस बेसिक टेलीफोन की ही होती है।

स्मार्टफोन, सोशल मीडिया या वीडियो गेम बच्चों को मैग्नेट की तरह अपनी ओर खींचते हैं। एक बार ये बच्चों के हाथ में गए तो उन्हें इससे दूर करना इम्पॉसिबल हो सकता है। बच्चों का दिमाग उतना डेवलप नहीं हुआ होता है कि वो उस मैग्निटिक खिंचाव से स्वयं को बचा सकें। इसलिए बच्चों को Smart Phone देने में जितनी देरी कर सकें, करें और यदि देना ही पड़े तो पेरेंटल कंट्रोल लगाकर दें।

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