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आपने ब्लूटूथ का यूज करते टाइम कभी तो ऐसा सोचा होगा कि कहीं इसका मतलब 'नीले दांत' तो नहीं है. ब्लूटूथ के जरिए लोग बिना किसी तार के फाइल ट्रांसफर कर सकते हैं
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। आपको बता दें कि ब्लूटूथ का नाम किसी टेक्नोलॉजी से जुड़ा नहीं बल्कि एक राजा के नाम पर है. वहीं, कई रिपोर्ट्स में यह भी दावा किया गया है कि ब्लूटूथ के नाम के पीछे नीला दांत भी जुड़ा हुआ है.
ब्लूटूथ की कहानी सुन चौंक जाएंगे आप
ब्लूटूथ की वेबसाइट पर उपलब्ध डाटा के मुताबिक ब्लूटूथ का नाम मध्ययुगीन स्कैंडिनेवियाई राजा के नाम पर पड़ा है. उस राजा का पूरा नाम Harald Bluetooth Gormsson था. वे 2 चीजों के लिए जाने जाते थे, 958 में डेनमार्क और नॉर्वे को एकजुट करना और दूसरा उनके मरे हुए दांत की वजह से जो गहरे नीले/भूरे रंग का था. इसके बाद उन्हें ब्लूटूथ उपनाम मिला.
इस शख्स ने रखा कनेक्टिविटी का नाम
राजा के नाम पर ही इस टेक्नोलोजी का नाम रखा गया था. आपको बता दें कि ब्लूटूथ के मालिक Jaap HeartSen, Ericsson कंपनी में Radio System का काम करते थे. Ericsson के साथ नोकिया, इंटेल जैसी कंपनियां भी इस पर काम कर रही थी. ऐसी ही बहुत सी कंपनियों के साथ मिलकर एक गठन बनाया था जिसका नाम SIG (Special Interest Group) था.
किंग हेराल्ड ने बढ़ाई थी खूब कनेक्टिविटी
कई लोगों के मन में सवाल होता है कि ब्लूटूथ के मालिक ने उस राजा के नाम पर ही इस टेक्नोलॉजी का नाम क्यों रखा. तो इसका जवाब है कि ब्लूटूथ इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसों को आपस में जोड़ने का काम करता है, वैसे ही किंग हेराल्ड ब्लूटूथ ने राज्यों को आपस में जोड़ा था. इस वजह से ब्लूटूथ बनाने वाली टीम के सदस्य जिम कार्डेक ने उस टेक्नोलॉजी के लिए ब्लूटूथ का नाम सुझाया. जो सबको पसंद भी आया था जिसके बाद उस टेक्नोलॉजी का नाम ब्लूटूथ रख दिया गया.
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